कल रात लंदन के एक वेबिनार में मैंने भाग लिया। उसमें चर्चा का विषय कश्मीर था और भाग लेनेवालों में दोनों तरफ़ के कश्मीरी और पाकिस्तानी सज्जन भी थे। सभी का एक राग था कि भारत में हिंदू और मुसलमानों के रिश्ते बेहद ख़राब हो गए हैं और मुसलमानों पर बहुत ज़ुल्म हो रहा है। मैंने नम्रतापूर्वक उन बंधुओं से पूछा कि भारत में मुसलमानों की दशा क्या चीन के उइगर मुसलमानों से भी बुरी है? मैंने कभी किसी पाकिस्तानी नेता- इमरान ख़ान, मियाँ नवाज़ शरीफ़ या आसिफ़ जरदारी- को उइगरों के बारे में एक शब्द भी बोलते हुए नहीं सुना।
इसी तरह से भारतीय मुसलमानों की हालत क्या अमेरिका के काले लोगों की तरह है? क्या पाकिस्तान में आज तक कोई राष्ट्रपति, कोई राज्यपाल, कोई मुख्यमंत्री, कोई सर्वोच्च न्यायाधीश या कोई सेनापति ऐसा व्यक्ति बना है, जो हिंदू हो या अल्पसंख्यक हो? जबकि भारत में इन सब पदों पर कई मुसलमान या अल्पसंख्यक रहे हैं और बड़े सम्मान व शक्ति के साथ रहे हैं।
जहाँ तक मुसलमानों पर ज़ुल्म का सवाल है, सरकार ने कश्मीर में ज़रूर बहुत सख़्ती बरती है लेकिन यदि वह वैसा नहीं करती तो वहाँ ख़ून की नदियाँ बहतीं। उस सख़्ती की निंदा भी भारत के विरोधी दल डटकर करते रहे। जहाँ तक पड़ोसी देशों से आनेवाले शरणार्थियों पर बने क़ानून का सवाल है, उसमें मुसलमानों के साथ जो भेद-भाव रखा गया है, उसकी निंदा किसने नहीं की है? सरकारी दलों को छोड़कर देश के सभी दलों ने उसे रद्द किया है। कई बीजेपी-समर्थकों ने उसका मौन और किसी-किसी ने उसका खुलकर भी विरोध किया है।
भारत के स्वभाव में लोकतंत्र ऐसा रम गया है कि कोई नेता अपने आप को कितना ही बड़ा तीसमार खाँ समझे, भारत की जनता उसे सबक़ सिखाना जानती है।
जहाँ तक हिंदू-मुसलमानों के आपसी संबंधों का सवाल है, भारत में ग़जब की मिसालें मिल रही हैं। लुधियाना के पास मच्छीवाड़ा गाँव के एक मज़दूर अब्दुल साजिद ने अपने दोस्त वीरेंद्र कुमार की बेटी की शादी ख़ुद उसका बाप बनकर हिंदू रीति से करवा दी। वीरेंद्र वगैरह तालाबंदी के कारण उत्तर प्रदेश में फँसे रह गए थे। इसी तरह केरल की एक मसजिद में हवन करके एक हिंदू वर-वधु ने फेरे पड़े। मुसलिम जमात ने दहेज का इंतज़ाम किया और इमाम के पाँव छूकर वर-वधु ने उनसे आशीर्वाद लिया।
इसी प्रकार गुजरात के एक मुसलिम परिवार ने पिछले दिनों अपने एक हिंदू मित्र पंडयाजी का दाह-संस्कार करवाया। पंडयाजी उसी परिवार के साथ रहते थे। इस मुसलिम परिवार के बच्चे अरमान ने बाल मुंडाए, धोती-जनेऊ पहनी और अपने बड़े अब्बा के दोस्त की कपाल-क्रिया भी की। ऐसा कब होता है? जब परस्पर सद्भाव होता है। यही सच्ची धार्मिकता है।
अपनी राय बतायें