loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
56
एनडीए
24
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
233
एमवीए
49
अन्य
6

चुनाव में दिग्गज

कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय

जीत

पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व

जीत

गांधी का ख़ौफ़ है कि उन्हें बार-बार मारने की कोशिशें होती हैं!

राष्ट्रपिता की छाती को गोलियों से छलनी कर देने और उसके बाद अंबाला सेंट्रल जेल में फाँसी पर लटकाए जाने की अवधि के बीच नाथूराम गोडसे एक वर्ष नौ महीने सोलह दिन इसी यक़ीन के साथ जीवित रहा कि उसने गांधी को अंतिम रूप से देश और दुनिया से समाप्त कर दिया है। गोडसे परिवार के जो भी सदस्य नाथूराम से इन 655 दिनों के दौरान अंबाला सेंट्रल जेल में मिले होंगे उसे यही यक़ीन दिलाते रहे होंगे कि (तब) तैंतीस करोड़ की जनसंख्या वाले आज़ाद भारत में केवल कुछ अनुयायियों के अलावा गांधी का कोई और नामलेवा नहीं बचा है। गांधी के शरीर के साथ उसका विचार भी नेस्तनाबूत किया जा चुका है। अपनी इस उपलब्धि को लेकर गोडसे को निश्चित ही गर्व की अनुभूति होती होगी।

पंद्रह नवम्बर 1949 के दिन अंबाला सेंट्रल जेल में फाँसीघर में पहुँचकर गोडसे और गांधी हत्या के सह-अभियुक्त नाना आपटे ने ‘अखंड भारत अमर रहे ‘ तथा ‘वंदे मातरम्’ का घोष किया और फिर ( संघ की ) इस प्रार्थना को उच्चारित किया :’नमस्ते सदा वत्सले मात्रभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखम वर्धितोअहम्। महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते-नमस्ते। उस समय के दृश्य का वर्णन किया गया है कि :’ एक बार कारागार के वायुमंडल में यह स्वर गुंजायमान हुआ और फिर फाँसी देने वालों ने फाँसी का फंदा खींचा कि दो हिंदू वीर पंचत्व में विलीन हो गए।’

ताज़ा ख़बरें
अपनी चर्चित पुस्तक ‘गांधी वध और मैं‘ में नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे ने लिखा है कि :’’मैंने स्वयं देखा कि गांधी जी की मृत्यु पर सेना में जो शोक प्रदर्शित किया गया वह प्रदर्शन मात्र था, उसमें वास्तव में कहीं दुःख का लेश भी नहीं था। गांधी-वध के बाद चार-पाँच दिन तक, जब तक मैं पकड़ा नहीं गया था, उस अवधि में सैनिक शिविर के लोगों से मेरा मिलना-जुलना जारी था। अंग्रेज़ी शासन की ईसाई पद्धति के अनुसार दिन भर वे बाँह पर शोक चिन्ह के रूप में काली पट्टी बांधते थे, किंतु रात्रि के समय इन शोक चिन्हों को अपनी जेबों में ठूँस लेते थे और दिन भर जिन भावनाओं को दबाकर रखते थे उन्हें मुक्त रूप से व्यक्त करने लग जाते थे। वे कहते थे ‘ कश्मीर में लड़ने वाली अपनी सेनाओं का अब उत्साह भंग नहीं होगा।”

गांधी हत्याकांड के सह-अभियुक्त होने के आरोप में गोपाल गोडसे को आजीवन कारावास की सजा हुई थी। गोपाल गोडसे का निधन 86 वर्ष की आयु में 26 नवम्बर 2005 के दिन पुणे में हुआ था। गांधी की हत्या के सत्तावन वर्ष से अधिक समय और अपनी पुस्तक के लेखन के कोई चार दशक बाद तक भी गोपाल गोडसे को गांधी के प्रति अपने नज़रिए पर कोई अफ़सोस नहीं रहा पर यह दुःख शायद अवश्य रहा होगा कि जिस गांधी और उसके विचार को भाई नाथूराम के जीवित रहने के समय ही मृत करार दिया गया था वह गांधी तो कभी मरा ही नहीं था।

एक काल्पनिक सवाल है कि गांधी को बजाय गोलियों का शिकार बनाने के, नाथूराम और सभी सह-अभियुक्त अगर राष्ट्रपिता से समय लेकर मिल लेते और उनसे ही पूछ लेते कि उन्हें किस तरह मारा जा सकता है तो किस तरह का उत्तर राष्ट्रपिता से प्राप्त होता? गांधी (शायद) उन्हें ख़त्म करने के ऐसे कई निर्दोष उपाय बता देते कि हत्यारों का काम भी हो जाता और वे फाँसी तथा आजीवन कारावास की सजाओं से भी बच जाते। 

गोडसे द्वारा पिस्तौल का इंतज़ाम करने तक तो बापू स्वयं ही एक सौ पच्चीस साल तक जीवित रहने के मोह से अपने आपको मुक्त कर चुके थे और अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे थे। तीस जनवरी 1948 के पहले भी पाँच बार गांधी को ख़त्म कर देने की असफल कोशिशें हो चुकीं थीं।

गांधी को चूँकि उनकी सहमति से और उनसे पूछकर नहीं मारा गया इसीलिए राष्ट्रपिता के तमाम दुश्मनों को पिछले पचहत्तर सालों से उनकी बार-बार हत्या करने के षड्यंत्र रचना पड़ रहे हैं। किसी स्थान पर गांधी का पुतला बनाकर उस पर गोलियाँ बरसाने का नाटक किया जा रहा है तो कहीं पर नाथूराम गोडसे की मूर्तियाँ स्थापित कर पूजा-अर्चना की जा रही है। उल्लेखनीय है कि उक्त सब निर्विघ्न कर पाना भी भारत देश में ही सम्भव है।

गांधी की हत्या के पीछे के कई कारणों में एक कट्टर हिंदूवादियों की कल्पना के ‘अखंड भारत’ का 1947 में विभाजन होना भी है जिसके लिए वे राष्ट्रपिता को ही दोषी मानते हैं। गोपाल गोडसे ने इस संबंध में लिखा है कि :” विभाजन के कारण घर-घर में अत्याचार, नरसंहार और पलायन तथा उसके बाद भी गांधी जी द्वारा किया गया अनशनरूपी दुराग्रह, इन सबके कारण उत्पीड़ितों के मन में उनके प्रति कटुता भर गई थी।”

Hate against mahatma gandhi by hindu outfit - Satya Hindi

अखंड भारत की कल्पना

वर्ष 1947 में अविभाजित भारत की कुल जनसंख्या 39 करोड़ थी जो कि विभाजन के बाद 33 करोड़ रह गई । तीन करोड़ मुसलमान तब के (पश्चिमी) पाकिस्तान और शेष तीन करोड़ मुसलमान पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश ) में रहने लगे थे। वर्तमान की अनुमानित 140 करोड़ की भारत की जनसंख्या में बाईस करोड़ मुसलिम बताए जाते हैं। इनमें अगर आज के पाकिस्तान के कोई तेईस करोड़ और बांग्लादेश के सत्रह करोड़ मुसलमानों को भी शामिल कर लिया जाए तो कट्टर हिंदुत्व की कल्पना के ‘अखंड भारत’ में हिंदुओं की जनसंख्या 110 करोड़ और मुसलमानों की 62 करोड़ मान ली जानी चाहिए।

हरिद्वार जैसी धर्म संसदों में मुसलमानों का हथियारों की मदद से ख़ात्मा कर देने के डरा देने वाले आह्वानों के परिप्रेक्ष्य में अगर 172 करोड़ से अधिक की हिंदू-मुस्लिम आबादी वाले अविभाजित अखंड भारत की सम्भावित हालत की कल्पना करना हो तो गांधी समेत 1947 में देश-विभाजन के कथित तौर पर दोषी सभी लोगों के प्रति देश को कृतज्ञता का ज्ञापन करना चाहिए । क्या पता दूरदृष्टा गांधी ने 2021-22 में प्रकट होने वाले भारत और उसमें होने वाले देश के नए विभाजनों की कल्पना स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही कर ली हो।

विचार से और
राष्ट्रपिता की छवि और उनके विचारों की हत्या करने के योजनाबद्ध प्रयासों, बापू के द्वारा स्थापित आश्रमों के आधुनिकीकरण के नाम पर किए जा रहे विनाश और गांधी को समाप्त करने के षड्यंत्रों के प्रति सत्ता के शिखरों का रहस्यमय मौन बताता है कि गांधी के नामोल्लेख मात्र से कट्टरपंथी हिंदुत्व कितना ख़ौफ़ खाता है।गांधी को समाप्त करने के लिए इतनी सारी ताक़तें एक साथ जुटी हुईं हैं और उन्हें बचाने के लिए कोई संगठित प्रयास गांधी-सर्वोदय समाज या नागरिकों के स्तर पर प्रकट नहीं हो रहे हैं तो निश्चित ही कोई अदृश्य शक्ति ही उपस्थित होगी जो गांधी को मरने नहीं दे रही है। वह शक्ति न सिर्फ़ ख़त्म किए जाने की तमाम घृणित कोशिशों से गांधी को बचा रही है बल्कि उनके प्रकाश का दुनिया भर में विस्तार भी कर रही है।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें