ब्रिटेन की धरती पर बनी डॉक्यमेंट्री भारत सरकार को बेचैन कर रही है तो यह बहुत वाजिब इसलिए है कि इस डॉक्यूमेंट्री के केंद्र बिंदु में जो पात्र हैं वह भारत के प्रधानमंत्री हैं। फिल्म से थोड़ा हटकर होती है डॉक्यूमेंट्री जिसमें मनोरंजन और काल्पनिकता से इतर सच्चाई को बयां करने का दावा किया जाता है। ऐसे में अगर इस डॉक्यूमेंट्री से यह संदेश निकलता है कि गुजरात में जब दंगे हो रहे थे तब मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी जानबूझकर अपनी पुलिस को निष्क्रिय रखे हुए थे तो यह बेहद आपत्तिजनक बात है। भारत सरकार ने खास नैरेटिव के साथ नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान बताया है।
डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध की मांग क्यों नहीं?
सवाल यह है कि भारत सरकार ने क्यों नहीं ब्रिटेन की सरकार से ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ का प्रसारण रोकने या इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की? संभवत: कूटनीतिक रूप से ऐसा करना गलत होता। अगर ब्रिटेन ने इस मांग पर ध्यान नहीं दिया तो दोनों देशों के बीच रिश्ते में खटास आ सकती थी। वैसे ब्रिटेश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने सदन में खुलकर कहा कि नरेंद्र मोदी के चरित्र चित्रण से वे सहमत नहीं हैं।
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यह मुद्दा प्रेस की अभिव्यक्ति की आजादी से भी जुड़ा है। बीबीसी दुनिया की स्थापित मीडिया है। उसके काम करने के तरीके ऐसे नहीं होते जो आसानी से कानूनी नजरिए से गलत ठहरा दिए जाएं। लिहाजा ब्रिटेन की सरकार के लिए भी बीबीसी पर कोई कार्रवाई कानूनन कर पाना आसान नहीं है। बीबीसी ने यह स्पष्ट किया है कि डॉक्यूमेंट्री में भारत सरकार का आधिकारिक पक्ष लेने की उसने कोशिश की, लेकिन उसे अधिकृत बयान नहीं मिल सका।
फांसी की सज़ा पा चुके गोडसे पर फिल्म कैसेः गंभीर प्रश्न है कि जब खुद भारत अपने देश में राष्ट्रपिता के हत्यारे को महिमामंडित करने वाली फिल्म को रोक नहीं रहा है तो उसे किसी दूसरे देश की पत्रकारीय सामग्री पर रोक लगाने की मांग करने का क्या अधिकार है?फिल्म कोई पत्रकारीय सामग्री नहीं होती। मनोरंजन की श्रेणी में आती हैं फिल्में। फिल्म सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को अश्लीलता, अपराध, नफरत, उन्माद और भेदभाव फैलाने की अनुमति नहीं देता। फिर भी गोडसे का महिमामंडन और गांधी को दोषी ठहराने वाली फिल्म पर कोई अंकुश लगाने की जरूरत ही नहीं समझी जा रही है।
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में जो बात कही गयी है उसका आधार राजनयिक की डायरी है। गुजरात दंगे की जांच से जुड़ी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था- “गुजरात जल रहा था नीरो बंसी बजा रहा था।“ बंसी बजाने का अर्थ बेफिक्री है। मगर, गुजरात में विधानसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ‘बंसी बजाने’ की जगह ‘सबक सिखाने’ का उपयोग करते हैं। वे कहते हैं कि 2002 में हमने ऐसा सबक सिखाया कि 20 साल बाद भी अब वे गर्दन नहीं उठा पाते हैं। बोलने का तरीका ऐसा होता है कि संदेश भी चला जाए और राजनीतिक रूप से बच निकलने का रास्ता भी मौजूद हो।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को एजेंडा का हिस्सा बताया तो इसे औपनिवेशिक सोच भी करार दिया। चूकि भारत इंग्लैंड का उपनिवेश रहा है इस वजह से ‘औपनिवेशिक’ शब्द का यहां विशेष महत्व है। संयोग से आज इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं और बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के बहाने भारत पर हमला बोल रहे सांसद इमरान हुसैन पाकिस्तानी मूल के हैं, इसलिए ब्रिटिश पीएम का भारत के पक्ष में खड़ा होना महत्वपूर्ण है। मगर, ‘औपनिवेशिक’ शब्द के इस्तेमाल से ऋषि सुनक की मुश्किल और चुनौती दोनों बढ़ जाती है।
भारत की प्रतिष्ठा महत्वपूर्णः भारत में सत्ताधारी दल बीजेपी के लिए मुश्किल यह है कि उसे वर्तमान प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा की चिंता तो रहती है लेकिन वह स्वयं पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की प्रतिष्ठा की जरा सी भी परवाह नहीं करती। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूर्व प्रधानमंत्रियों- पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, डॉ मनमोहन सिंह- पर लगातार आपत्तिजनक टिप्पणियां करते रहे हैं। इस बात को भुला दिया जाता है कि भारत की प्रतिष्ठा सबसे महत्वपूर्ण है। मसला गंभीर तब हो जाता है जब सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा पाए नाथूराम गोडसे के कसीदे पढ़े जाने लगते हैं, फिल्में बनने लग जाती हैं और यह सब बड़े आराम से होने दिया जाता है।
गुजरात दंगे में आधिकारिक रूप से भी हजार से ज्यादा जानें गयीं थीं। मोदी सरकार दंगा रोकने में बुरी तरह विफल रही थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म की याद दिलायी थी। इतना ही नहीं जब 2004 में बीजेपी आम चुनाव में हार गयी तो अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि अगर गुजरात दंगे में उन्होंने समय पर सही फैसले किए होते तो परिणाम कुछ और होते। इन तथ्यों को क्या झुठलाया जा सकता है?
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बिलकिस बानो के गुनहगार ‘अच्छे चरित्र’ के आधार पर छूटे!
बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार करने वाले, उनकी बेटी को उनके सामने पत्थर से कुचलकर मार डालने वाले और उनके परिजनों की हत्या करने वाले दरिंदगों को ‘अच्छे चरित्र’ के आधार पर सजामाफी भी मोदी सरकार में ही हुई है। सज़ायाफ्ता मुजरिमों को ‘अच्छा चरित्र’ घोषित करने वाले पैनल के सदस्य को विधायक बनाने का श्रेय भी बीजेपी को जाता है।गुजरात दंगे के बहुचर्चित नरोदा पाटिया नरसंहार के मुजरिम की बेटी को भी विधायक बनने का अवसर बीजेपी देती है और उसका मकसद बताने की जरूरत नहीं है।गुजरात दंगे को देश भूल नहीं सकता। नरेंद्र मोदी गुजरात दंगे से बरी हो चुके हैं यह उनके लिए व्यक्तिगत रूप से संतोष का विषय हो सकता है। मगर, गुजरात दंगे से जुड़े सवाल आगे भी उठते रहेंगे। एसआईटी से क्लीन चिट मिलने के आधार पर इन सवालों को दरकिनार नहीं किया जा सकेगा। सवाल यह है कि क्या गुजरात दंगा कभी नरेंद्र मोदी का पीछा नहीं छोड़ेगा?
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