कोरोना-युद्ध में केंद्र और दिल्ली की सरकार को उसी सख्ती का परिचय देना चाहिए था, जो इंदिरा गांधी ने 1984 में पंजाब में दिया था। दो हफ्ते तक मरकज़े-तब्लीग़ी जमात के जमावड़े को वह क्यों बर्दाश्त करती रही? अब उसका नतीजा सारा देश भुगत रहा है। मेरा अनुमान था कि देश की यह तालाबंदी दो हफ्ते से ज्यादा नहीं चलेगी। भारत में कोरोना वायरस के पिट जाने के कई कारण मैं गिनाता रहा हूं। अब भी कोरोना का हमला भारत में उतना विध्वंसक नहीं हुआ है, जितना कि यह यूरोप और अमेरिका में हो गया है।
मुझे खुशी है कि मानव-शरीर की प्रतिरोध-शक्ति बढ़ाने वाले इन नुस्खों और आसन-प्राणायाम का प्रचार देश के कुछ प्रमुख हिंदी अख़बार कर रहे हैं। लेकिन अपने आपको राष्ट्रवादी कहने वाले हमारे नेता अपनी इस राष्ट्रीय धरोहर के बारे में मौन क्यों साधे हुए हैं? उनमें आत्मविश्वास की इस कमी को देखकर मुझे उन पर तरस आता है। उन्होंने क्या देखा नहीं कि उनकी ‘नमस्ते’ सारी दुनिया में कैसे लोकप्रिय हो गई? यह सुनहरा मौक़ा था, जबकि वे सारी दुनिया को भारत की इस महान चिकित्सा-पद्धति से लाभान्वित करते!
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.inसे साभार)
अपनी राय बतायें