loader

पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का क्या हुआ प्रधानमंत्री जी? 

देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन की बनाने की नरेन्द्र मोदी की घोषणा याद है? प्रधानमंत्री ने पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाने वालों को आड़े हाथों लिया था और ऐसे लोगों को ‘पेशेवर निराशावादी’ बताया था। उन्होंने कहा था कि लक्ष्य तक पहुंचने के लिये आशा और उत्साह ज़रूरी है। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा था, इसी के सहारे हमने पांच साल में देश को एक ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था तक पहुंचा दिया, जबकि इतना करने में पहले की सरकारों को 50 से 55 साल लगे।

कहने की जरूरत नहीं है कि यह एक तथ्य था (नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने होते तो ‘है’ लिखता) जिसे प्रचार बना दिया गया था। 

पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने  इस पर कहा था और आजतक डॉट इन की खबर थी, "मोदी के सपने पर चिदंबरम की मुहर, कहा, मुमकिन है 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी"। लेकिन क्या हुआ? अब इसकी कोई चर्चा नहीं है। क्यों? आइए समझते हैं।

ताज़ा ख़बरें

नरेन्द्र मोदी ने जिसे 'लक्ष्य' कह कर प्रचार किया था और पांच साल में एक ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का श्रेय लिया था उस पर पूर्व वित्त मंत्री ने कहा था, हर 6-7 साल में अर्थव्यस्था दूनी हो जाती है। यह साधारण गणित है। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। 

इसे और स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था,  5 ट्रिलियन डॉलर कोई चंद्रयान लॉन्च करने जैसी बात नहीं है, यह बहुत ही साधारण गणित है। 

चिदंबरम का तर्क 

राज्यसभा में चिदंबरम ने बजट पर चर्चा के दौरान कहा, “साल 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 325 अरब डॉलर का था, साल 2003-04 में यह डबल होकर 618 अरब डॉलर का हो गया। अगले चार साल में यह फिर डबल हो गया। 1.22 ट्रिलियन डॉलर 1 सितंबर2017 तक यह फिर डबल हो गया, 2.48 ट्रिलियन डॉलर तक। यह फिर डबल हो जाएगा अगले पांच साल में। इसके लिए किसी प्रधानमंत्री या वित्तमंत्री की जरूरत नहीं है। यह कोई साधारण साहूकार भी जानता होगा। इसमें बड़ी बात क्या है।” 

जो काम अपने आप हो रहा था उसके लिए प्रधानमंत्री ने श्रेय लिया पर जो उनकी वजह से या उनके सत्ता में रहने पर नहीं होगा उसकी चर्चा मीडिया में कितना है आप जानते हैं। आपको याद होगा और पुराने लोग जानते हैं कि पहले बैंकों में पांच साल में धन दूना हो जाता था। सावधि जमा का ब्याज इतना था कि पांच साल बैंक में पैसा छोड़ दीजिए, समय पूरा होने पर दूना ले लीजिये । बाद में ब्याज दर कम होती गई और यह अवधि बढ़ती गई।

अब बैंक में या सामान्य तौर पर कहीं भी इतना ब्याज नहीं मिलता जितनी मुद्रास्फीति होती है। लेकिन उसकी चर्चा नहीं होगी। ना राजनीति में ना मीडिया में।

2014 के बाद से ब्याज दर ही नहीं, बैंकों और नोटों का हाल आप जानते हैं। लेकिन प्रचारक प्रधानमंत्री ने कभी उसकी चर्चा नहीं की। और अब जब पांच साल में अर्थव्यवस्था के दूनी होने या पांच ट्रिलियन डॉलर का होने की संभावना कम हो गई है और संभव है बैंक में धन के दूने होने की तरह यह भी पांच की जगह सात-आठ साल में हो तो उसकी चर्चा नहीं हो रही है। हालांकि सात या आठ साल बाद भी कोई प्रचारक प्रधानमंत्री ही रहे और मीडिया का यही हाल रहा तो दावा किया जा सकेगा कि 70 साल में अर्थव्यवस्था 2.50 ट्रिलियन की थी हम प्रचारकों ने या सात या आठ साल में ही उसे दूना या 5 ट्रिलियन का कर दिया। 

जहां तक प्रचारक सरकार के काम की बात है, एक फरवरी, 2020 को जब 2020-21 का बजट पेश किया गया, तो पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने तीन प्रमुख आंकड़ों की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठाया था। उन्होंने इन तीनों आंकड़ों को संदिग्ध बताया था, यानी इनकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में थी। उनकी आलोचना इस तथ्य पर आधारित थी कि लगातार सात तिमाहियों में 2018-19 की चार तिमाहियां और तीन 2019-20 की) से जीडीपी नीचे आ रही थी और 2019-20 की चौथी तिमाही में यह और गिरने  वाली थी।इसलिए मैंने 2020-21 के अनुमानों को आशावादी और महत्वाकांक्षी बताने को चुनौती दी थी। वित्तमंत्री ने आवेश में मेरी आलोचनाओं को खारिज कर दिया था। बाद में कोविड के कारण स्थिति बदल गई और इसकी ज्यादा फजीहत नहीं हुई। प्रधानमंत्री इसे अपनी किस्मत मान सकते हैं। 

five trillion dollar economy announced by pm Modi - Satya Hindi

कोविड के दौरान 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य का ख्याल प्रधानमंत्री को ही रखना था और यह उतना ही जरूरी था जितना पीएम केयर्स या शायद उससे भी जरूरी। लेकिन प्रधानमंत्री या उनकी सरकार ने जो किया उसका असर यह है कि प्रति व्यक्ति जीडीपी एक लाख रुपए से गिर कर अट्ठानबे हज़ार नौ सौ अट्ठाईस रुपए पर आ गई।

गरीबी बढ़ी 

जाहिर तौर पर इसका निष्कर्ष यह है कि हरेक व्यक्ति अपेक्षाकृत गरीब होता चला गया (सिर्फ अरबपतियों को छोड़ कर जिनकी दौलत में 2020 में चालीस फीसद का इजाफा हुआ), करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए। जो पहले ही से गरीबी रेखा के नीचे थे, वे अभाव में घिर गए और साथ ही पहले से ज्यादा कर्ज में डूब गए। मंदी और महामारी ने अर्थव्यवस्था को चौपट करने से भी ज्यादा नुक़सान पंहुचाया है, इसने शिक्षा, पोषण और लोगों के स्वास्थ्य और गरीबों व उनके बच्चों पर गंभीर असर डाला है। 

प्रति व्यक्ति जीडीपी कम होगी?

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की अक्तूबर 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी 1,888 डॉलर (करीब 1.38 लाख रुपये) रह सकती है, जबकि भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 1877 (करीब1.37 लाख रुपए) ही रहने का अनुमान है। रुपए में वृद्धि डॉलर के बढ़े मूल्य के कारण है पर सच यह है कि भारत में प्रति व्यक्ति जीडीपी 10.5 प्रतिशत कम होने की आशंका है। 

इस रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में भारत प्रति-व्यक्ति जीडीपी के मामले में सिर्फ नेपाल और पाकिस्तान से आगे रहेगा। इस मामले में वह मालदीव, भूटान और श्रीलंका से भी पिछड़ सकता है। रोजगार के मामले में यह पाकिस्तान से नीचे और सोमालिया से ऊपर है।

वाधवानी फाउंडेशन का अनुमान है कि देश में एसएमई क्षेत्र को जो सहायता चाहिये वह नहीं दी गई तो भारत 2027 तक अपने जीडीपी में एसएमई योगदान का करीब $0.75 ट्रिलियन खोने का जोखिम ले रहा है। जहां तक सरकारी काम और उसकी सार्थकता का सवाल है कृषि कानून उदाहरण है। सरकार ने बिना मांगे किसानों की सेवा की और विरोध को समझने या उससे प्रभावित होने में एक साल लग गया। प्रधानमंत्री ने इससे हुए नुकसान को तपस्या कह कर प्रचार पाने की कोशिश की और सात सौ लोगों की मौत को उनके समर्थकों ने यह कहकर खारिज कर दिया कि गोली तो चली नहीं, मौत के लिए सरकार कैसे जिम्मेदार हुई।

ऐसी व्यवस्था और ऐसे प्रचार के बीच यह जानना दिलचस्प है कि दुनिया भर में तंबाकू उत्पादों पर टैक्स ज्यादा रखा जाता है ताकि महंगा होने के कारण आम लोगों की आसान पहुंच में न हो। वैसे भी, माना जाता है कि धूम्रपान से कोविड तेजी से फैल सकता है। इन कारणों से इसपर टैक्स बढ़ाने की मांग के बावजूद टैक्स नहीं बढ़ाया जा रहा है और तथ्य यह है कि जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से तंबाकू पर कर में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है और गुजरे तीन वर्षों में सभी तंबाकू उत्पाद किफायती हुए हैं या आसान पहुंच में आ गए हैं। 

five trillion dollar economy announced by pm Modi - Satya Hindi
दुनिया भर के कई देशों में जीएसटी के साथ या बिक्री कर लगता है तथा इन्हें लगातार संशोधित किया जा रहा है। इसके बावजूद तंबाकू पर उत्पाद शुल्क बेहद कम है।
विचार से और ख़बरें

वालंट्री हेल्थ एसोसिएशन की एक विज्ञप्ति के अनुसार, इस समय तंबाकू उत्पादों पर कुल कर भार (खुदरा कीमत समेत अंतिम टैक्स के प्रतिशत के रूप में टैक्स) सिगरेट के लिए करीब 52.7%, बीड़ी के लिए 22% और बगैर धुएँ वाले तंबाकू पर 63.8% है। यह सभी तंबाकू उत्पादों पर खुदरा मूल्य का कम से कम 75% कर भार रखने के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अनुशंसा के मुकाबले बहुत कम है।

डब्ल्यूएचओ के मुकाबले टैक्स बढ़ाकर तंबाकू उत्पादों की कीमत बढ़ाना तंबाकू का उपयोग कम करने की सबसे प्रभावी नीति है। इससे उपयोगकर्ता सेवन छोड़ने के लिए प्रेरित होते हैं, गैर उपयोगकर्ताओं को शुरुआत करने से रोकता है और जो उपयोग जारी रखते हैं उनमें खपत कम होती है। इसके बावजूद टैक्स नहीं बढ़ाया जा रहा है और पेट्रोल पर टैक्स बढ़ाने की सीमा ही नहीं है। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय कुमार सिंह
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें