प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुखी हैं कि पुलवामा हमले के बाद ‘भद्दी राजनीति’ हुई। उनका दुख तब सामने आया है जब पाकिस्तान की संसद में मंत्री फ़वाद चौधरी ने कहा है कि पुलवामा हमला ‘पाकिस्तान की उपलब्धि’ है।
फ़वाद का बयान दो देशों के बीच रिश्तों को ख़त्म करने वाला, आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला, मानवता का दुश्मन और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में एक देश की गरिमा के ख़िलाफ़ है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान एक देश के भीतर विपक्ष के साथ रिश्ते ख़त्म करने वाला और राष्ट्रीय राजनीति में गरिमा के ख़िलाफ़ है।
पाकिस्तान अगर आतंकवादी हमले को कबूल करता है तो इसकी प्रतिक्रिया पाकिस्तान के लिए होनी चाहिए या कि भारत के भीतर अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए? यह सिर्फ प्रश्न नहीं है बल्कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री के आचरण का उल्लेख भी है।
संभव है कि पुलवामा हमले के बाद विपक्ष ने जो सवाल उठाए थे, वो किसी नजरिए से उपयुक्त ना भी हों (हालांकि ऐसा नहीं है)। मगर, क्या इसके लिए विपक्ष की देशभक्ति पर सवाल उठाए जाएंगे? ऐसा बीजेपी के नेता कर रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस भावना को बढ़ा रहे हैं।
पुलवामा हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया क्या रही थी? कैबिनेट ऑन सिक्योरिटी यानी सीसीएस की बैठक बुलाने में 24 घंटे से ज्यादा का समय लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया आने में सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों बीत गये। मोदी ने अपनी शूटिंग तक रद्द नहीं की। सर्वदलीय बैठक घटना के दो दिन बाद बुलायी गयी थी।
शहीदों के नाम पर वोट मांगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम चुनाव के दौरान क्या युवा वोटरों से नहीं कहा था कि जब वो जीवन में पहली बार वोट डालने के लिए मतदान करें तो एक बार पुलवामा के शहीदों को ज़रूर याद कर लें? क्या बीजेपी ने चुनाव में पुलवामा के शहीदों की तसवीरों का इस्तेमाल नहीं किया (चुनाव आयोग के हस्तक्षेप के बाद इस पर विराम लगा था)?
प्रधानमंत्री किसी दल के नहीं होते। आज जब पुलवामा हमले के बाद राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाओं को वे याद कर रहे हैं और उसे ‘भद्दी राजनीति’ कह रहे हैं तो उन्हें उन घटनाओं को भी याद करना चाहिए जो सिर्फ विपक्ष से संबंधित न होकर खुद उनकी पार्टी से संबंधित थीं।
पीएम मोदी को पुलवामा के नाम पर वोट मांगने के लिए अपनी शर्मिंदगी का इजहार करना चाहिए था। ऐसा करने के बाद ही पुलवामा के बाद ‘भद्दी राजनीति’ वाली टिप्पणी में वजन आ सकता है अन्यथा नहीं।
अब जरा उस बयान को याद कर लें जिस वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने ही देश के राजनीतिक दलों के विरुद्ध मुंह खोलना पड़ा है। पुलवामा में आतंकी हमले का जिक्र करते हुए पाकिस्तान के मंत्री फ़वाद चौधरी ने कहा, “हमने हिन्दुस्तान को घुस के मारा”। यह ऐसा बयान है जो हर भारतीय के मन में क्रोध को भड़काता है और पाकिस्तान के लिए नफ़रत की आग को भी।
मगर, इस क्रोध और नफ़रत की आग को शोला बनाकर भारत किस तरह व्यक्त करेगा- यह बात महत्वपूर्ण है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बयान को ‘भारत में आतंकवाद के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने की पुष्टि’ बताया है।
पाक पर कार्रवाई करे भारत
सत्ताधारी बीजेपी इस बात को लेकर विपक्ष पर, खासकर कांग्रेस पर, हमलावर है कि उसने भारत की ओर से बालाकोट में की गयी एयर स्ट्राइक को लेकर सवाल पूछे थे। ऐसा संदेश देने की कोशिश की जा रही है जैसे पाकिस्तान की ओर से आतंकी हमले और विपक्ष के सवालों में कोई संबंध हो।
जबकि, आज विपक्ष का सवाल होना चाहिए कि जब पाकिस्तान ने पुलवामा हमले को नहीं स्वीकारा था, तब तो हमने बालाकोट एयर स्ट्राइक कर दी थी, आज जब वह इस हमले की जिम्मेदारी ले रहा है तो पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत क्या कर रहा है?
फ़वाद चौधरी भले ही अपने बयान से यू टर्न ले रहे हों, मगर आतंकवादी हमले को पाकिस्तान, प्रधानमंत्री इमरान खान और संसद की उपलब्धि बताकर उन्होंने भारत को जवाबी कार्रवाई का खुला निमंत्रण दे दिया है।
एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर यह सुनिश्चित करना भारत का कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि पाकिस्तान भविष्य में कभी ऐसी हिमाकत न करे। फिलहाल उसने दुस्साहस भी दिखाया है और उसे कबूल कर भारत को चुनौती भी दी है।
जवाबदेही से बचने की कोशिश
पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक हुई। इसका आधार खुफिया सूचनाएं थीं। अब पाकिस्तान खुद इसे स्वीकार रहा है। हालांकि यू टर्न लेने की कोशिश भी सामने है मगर उससे सच्चाई बदल नहीं जाती। इसका जवाब भारत कैसे देने वाला है? क्या कांग्रेस और विपक्ष पर हमला कर देने भर से पाकिस्तान को जवाब मिल जाएगा? क्या इससे पाकिस्तान का दुस्साहस और अधिक नहीं बढ़ जाएगा?
जब पाकिस्तान पर हमलावर होने की ज़रूरत है तो देश का मीडिया और सत्ताधारी दल कांग्रेस पर हमलावर है। हमले की बात पाकिस्तान कबूल करे और सवाल कांग्रेस से पूछे जाएं, तो यह सोचना पड़ेगा कि जवाबदेही से कौन बच रहा है।
पठानकोट पर क्लीन चिट क्यों दी?
क्या भारत ने पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान को क्लीन चिट देकर उरी-पुलवामा हमलों को न्योता नहीं दिया? नवाज़-मोदी मुलाकात के 7 दिन बाद हुई इस घटना में नॉन स्टेट एक्टर्स का हाथ माना गया था। अगर भारत ने पठानकोट हमले के तुरंत बाद इसका जवाब पाकिस्तान को दिया होता या फिर कम से कम उसे क्लीन चिट नहीं दी होती, तो बाद के हमलों को रोका जा सकता था।
क्लीन चिट इस मायने में कि भारत ने पठानकोट हमले को नॉन स्टेट एक्टर का नतीजा बताया था। क्लीन चिट इस मायने में भी कि घटना की जांच के लिए पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई को पठानकोट बुलाया गया था।
पठानकोट हमले की पृष्ठभूमि को याद कीजिए। 26 दिसंबर, 2015 को नवाज़ शरीफ-नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई और 2 जनवरी को पठानकोट में आतंकी हमला हो गया। दोनों देशों ने इस घटना की निंदा की। दोनों देशों ने एक जैसी प्रतिक्रिया दी कि पठानकोट हमले में पाकिस्तान के नॉन स्टेट एक्टर का हाथ है। तब न बालाकोट जैसी किसी एयर स्ट्राइक की सोच सामने थी और न ही किसी सर्जिकल स्ट्राइक जैसी सोच। बदले का भाव बिल्कुल नहीं दिखा था। शायद कोई चुनावी ज़रूरत सामने नहीं थी।
दुनिया के इतिहास में ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा जैसा पठानकोट हमले के बाद देखा गया था। पाकिस्तान की जांच एजेंसी आईएसआई पठानकोट हमले की जांच करने भारत पहुंची थी।
बीजेपी सरकार के अलावा किसी अन्य सरकार ने अगर ऐसा फैसला किया होता तो बीजेपी जमीन-आसमान एक कर चुकी होती। मगर, बीजेपी खुशनसीब है कि उसे इस किस्म के सवालों ने परेशान नहीं किया है।
जब बीजेपी नेता लगातार कह रहे थे कि पठानकोट हमले में नॉन स्टेट एक्टर का हाथ है तब शिवसेना नेता संजय राउत ने राज्यसभा में सवाल पूछा था- “क्या सरकार मानती है कि यह महज आतंकी हमला था या फिर इसे पाकिस्तानी सेना की मदद से अंजाम दिया गया?”
जवाब में तत्कालीन रक्षा मंत्री अब दिवंगत मनोहर पर्रिकर ने 1 मार्च 2016 को कहा था, “एनआईए की जांच में सभी ब्योरे सामने आ जाएंगे। इसमें पाकिस्तान के नॉन स्टेट एक्टर्स शामिल हैं...यह निश्चित है।....और कोई भी नॉन स्टेट एक्टर बगैर सरकार के समर्थन के आसानी से काम नहीं कर सकता।”
जाहिर है लिखित जवाब में मोदी सरकार ने नॉन स्टेट एक्टर पर जोर दिया, लेकिन पाकिस्तान सरकार की मिलीभगत की आशंका को भी बनाए रखा। फिर भी कभी ये बात जोर-शोर से नहीं उठायी गयी कि पठानकोट हमले में पाकिस्तान का हाथ है। पाकिस्तान से आयी एजेंसी ने तो अपनी सरकार के लिए क्लीन चिट दे दी। यहां तक कि एनाईए की रिपोर्ट में भी भारत ने पठानकोट हमले कि लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को जिम्मेदार नहीं ठहराया।
अलग-अलग रवैया क्यों?
पुलवामा और पठानकोट को लेकर मोदी सरकार का रवैया बिल्कुल अलग-अलग रहा। यह बात बिल्कुल समझ में नहीं आती कि इसके पीछे वजह क्या रही। बीजेपी सरकार से यह सबसे बड़ा सवाल बनता है कि वह दोनों हमलों के पीछे का फर्क बताए। दोनों हमलों के बाद भारत की प्रतिक्रिया में अंतर का कारण समझाए।
जब उरी और पुलवामा हमले के जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक हो सकती हैं तो पठानकोट हमले के जवाब में ऐसा अलग किस्म का व्यवहार आज भी रहस्य बना हुआ है।
जवाब दे भारत
पुलवामा हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान के मंत्री ने ली है और इसके बाद यह मामला और भी गंभीर हो जाता है। जवाब देने की जिम्मेदारी इस वक्त भारत पर ज्यादा है। अगर भारत इस समय चुप रहता है तो इससे पाकिस्तान का दुस्साहस बढ़ेगा। वह हमले को स्वीकार करने की हद तक पहली बार पहुंचा है। इस प्रवृत्ति पर तुरंत रोक लगाने की ज़रूरत है।
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