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‘बीमारी के लक्षण’ और ‘बीमारी’ के बीच के अंतर को समझना तथा बीमारी के लक्षण के बजाय बीमारी से निपटने को महत्व देना, मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को सिखाई जाने वाली मूलभूत चीजों में से एक है।
बुखार विभिन्न प्रकार के संक्रमणों का एक सामान्य लक्षण हो सकता है। पैरासिटामोल या क्रोसिन की खुराक के द्वारा तात्कालिक तौर पर बुखार को कम तो किया जा सकता है, किन्तु ये दवायें किसी संक्रमण का स्थायी इलाज नहीं हो सकती हैं।
बुखार उतरने के बाद बीमार व्यक्ति भले ही यह महसूस करे कि उनकी बीमारी ठीक हो गई है, लेकिन वास्तव में उसके शरीर में संक्रमण बना रहता है तथा इलाज और उचित देखभाल के अभाव में बुखार के साथ बीमारी फिर से वापस आ सकती है।
आज की दुनिया में हम कई तरह की बिमारियों से जूझ रहे हैं। एक तरफ जहाँ कोविड-19 नामक वायरस जनित बीमारी ने पूरी दुनिया परेशानी में डाल रखा है वही दूसरी तरफ झूठे- समाचार, भ्रामक प्रचार और षड्यंत्र के सिद्धांत जैसी बीमारियाँ लोकतंत्र की हमारी मूलभूत समझ को ख़तरे में डाल रही हैं। संभवतः मानवता के लिए ये कोविड-19 से भी ज्यादा गंभीर और दीर्घकालिक समस्यायें हैं।
हाल ही में इन बीमारियों का एक गंभीर लक्षण संयुक्त राज्य अमेरिका में दिखा, जहाँ डोनल्ड ट्रंप और उसके समर्थक राजनेताओं के उकसावे पर दक्षिणपंथियों की हिंसक भीड़ ने अमेरिकी संसद भवन कैपिटल पर हमला कर दिया। इस हमले का मक़सद अमेरिका में सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करना था।
हालांकि ट्रंप तथा उनके समर्थकों ने खुद को इस हिंसक प्रदर्शन के ख़िलाफ़ बताया और इसकी निंदा की, किन्तु लोगों की भावनाओं को भड़काने और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत कार्य करने के मामले में पूर्व राष्ट्रपति और उनके समर्थकों, जिसमे अमेरिकी मीडिया का एक हिस्सा तथा ट्रंप समर्थक राजनीतिज्ञ भी शामिल है, अपनी जवाबदेहियों से बच नही सकते।
भारत के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने इस हिंसक प्रदर्शन के ख़िलाफ़ एक ट्वीट कर स्वयं को अपने प्रिय मित्र ट्रंप और उनकी भयानक विरासत से दूरी बनाने की कोशिश की है, हालाँकि, मोदी को अपने प्रिय मित्र ट्रंप की राष्ट्रपति कार्यालय से इतनी फीकी और असम्मानजनक विदाई का बड़ा दर्द हुआ होगा। तथ्य यह है कि दुर्भाग्य से भारत के पास भी राजनीति प्रेरित हिंसा और उकसावे वाली बीमारी के प्रसार को रोकने वाली कोई प्रतिरक्षा प्रणाली नहीं है।
अमेरिकी संसद भवन कैपिटल हिल पर हमला दुनिया को चौंकाने वाला था, लेकिन भारत में भी हमने उकसावे वाली हिंसा के कई चौंकाने वाले उदाहरण देखे हैं। क्या यह सच नहीं है कि 1975 के आपातकाल के बाद इन बीमारियों का सबसे गंभीर प्रभाव मोदी के कार्यकाल में देखा जा रहा है?
उदाहरण के लिए, हमने एक हिंसक भीड़ को भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय- ‘जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय’ के परिसर में घुसते तथा छात्रों और शिक्षकों को पीटते और धमकाते देखा। इस घटना की विडियो क्लिप और अन्य साक्ष्यों और रिपोर्टों से स्पष्ट पता चलता है कि इस हिंसा के प्रमुख ज़िम्मेदार लोग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के थे जो आरएसएस से जुड़ा दक्षिणपंथी छात्र संगठन हैं।
आश्चर्यजनक रूप से इन हिंसक उपद्रवियों ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। उन उपद्रवियों ख़िलाफ़ भी नहीं जिनके चेहरे कैमरों में स्पष्ट रूप से देखे गए थे!
हमने दिल्ली की चुनावी रैलियों और सभाओं में एक केन्द्रीय मंत्री को भीड़ के साथ 'देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को' जैसे हिंसक नारे लगाते हुए देखा है। उनके ख़िलाफ़ भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इसी तरह नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के दौरान एक और चौंकाने वाली घटना घटी थी, जहाँ एक व्यक्ति ने नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध कर रहे लोगों पर 50 मीटर की दूरी से कम से कम दो गोलियाँ दागी थीं। प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा कैद किए गए वीडियो में, उपरोक्त व्यक्ति को अपनी बंदूक लहराकर नारा लगाते हुए देखा जा सकता है- 'हमारे देश में किसकी चलेगी, सिर्फ हिंदूओं की चलेगी।'
बाद में उस व्यक्ति की पहचान कपिल गुर्जर के रूप में की गई। कपिल गुर्जर को इस घटना के कुछ महीने बाद बीजेपी ने गाजियाबाद के एक समारोह में पार्टी शामिल कर लिया। कपिल गुर्जर और उसके सैकड़ों समर्थकों को बीजेपी में शामिल कराने वाला व्यक्ति जिला संयोजक था। कपिल गुर्जर का इस क्षेत्र में काफी प्रभाव है।
वह बीजेपी की नीतियों, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए जा रहे कार्यों से प्रभावित हैं। गनीमत है, बीजेपी को सद्बुद्धि आई और उसे पार्टी से निकाल दिया गया और उसकी सदस्यता भी रद्द कर दी गई।
इसी प्रकार गोहत्या की एक कथित घटना को लेकर उत्तेजित हिंसक भीड़ ने बुलंद शहर में पुलिस निरीक्षक, एस. के. सिंह की हत्या गोली मार कर कर दी। ख़बरों के मुताबिक, सिंह की हत्या के मामले में पुलिस द्वारा तैयार आरोप-पत्र में बजरंग दल के स्थानीय संयोजक योगेश राज और भाजपा के युवा विंग के नेता शिखर अग्रवाल शामिल हैं।
इसके अलावा, हमने हाथरस में सत्ता के भयानक दुरुपयोग को भी देखा जहाँ यूपी पुलिस ने पहले दावा किया था कि 19 साल की एक लड़की के साथ बलात्कार का कोई सबूत नहीं है। लेकिन, सीबीआई ने बाद में 19 साल की इस पीड़िता के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोपी चार पुरुषों के खिलाफ आरोप पत्र दायर कर दिया। ये उदाहरण उन्मादी हिंसा की भयानक तसवीर पेश करते हैं। इनके मुलभूत कारण एक ही है, जो परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से एक प्रभावी लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों की स्पष्ट अवहेलना करता है।
दुर्भाग्य से हिंसा और अव्यवस्था के ये मामले केवल तभी हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं, जब वे किसी भयानक संकट के स्पष्ट लक्षण प्रस्तुत करने लगते हैं।
भारत में फ़र्जी ख़बरों और उकसावे वाले भाषणों की प्रवृति और प्रकृति बहुत कुछ वैसी ही है, जैसी अमेरिका में ट्रंप समर्थक लोगों को दिन-रात झूठी और फ़र्जी ख़बरों के माध्यम से संसद भवन पर हिंसक प्रदर्शन के लिए उकसाया जाता था और उन्हें आश्वस्त किया जाता था कि इस हिंसक क़ानूनी अवज्ञा के द्वारा वे देशभक्ति का महान काम कर रहे हैं।
हमने भारत में ऐसे लोगों को देखा है जो वैध समाचार माध्यमों द्वारा फैलाई जा रहीं फ़र्जी ख़बरों और सोशल मीडिया पर झूठी ख़बरों की अनगिनत लहरों से प्रतिदिन दो-चार होते हैं, और धीरे-धीरे मानसिक उन्माद की चरम बिंदु पर पहुँच कर हिंसक गतिविधियों को अंजाम देते हैं।
बीजेपी तथा प्रधानमंत्री मोदी ने कभी ऐसे संकेत नहीं दिए कि वे इस प्रकार के फर्जी न्यूज प्रेरित उन्माद को नापसंद करते हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री स्वयं इस तरह के भड़काऊ बयान नहीं देते हैं, लेकिन उन्मादी भाषण देने वालों खिलाफ उनकी चुप्पी, उनकी स्वीकृति को ही दर्शाती है।
अब जबकी मोदी ने ट्रंप और उनकी खतरनाक विरासत से दूरी बनाने की कोशिश की है, उन्हें देश में अपनी पार्टी की विरासत को ठीक करने के लिए बहुत कुछ करना है। वाल्टेयरके शब्दों में, जो व्यक्ति आपके मन में झूटी, गलत, और बेतुकी चीजों के प्रति विश्वास पैदा कर सकता हैं, वही व्यक्ति आपके हाँथों अत्याचार भी करा सकते हैं।
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