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चुनाव के दौरान दिल्ली के आदर्श नगर में बीजेपी की एक रैली। (प्रतीकात्मक तसवीर)फ़ोटो साभार: ट्विटर/बीजेपी

बीजेपी ने वोट के लिए गंगा जल देकर क़समें खिलाईं और डराया- ‘हिंदू ख़तरे में’ है

चुनाव से पहले बैठक में तय किया गया कि ब्लॉक के स्तर पर, गाँव के स्तर पर, मुहल्ला स्तर पर और अपार्टमेंट के स्तर पर संघ के कार्यकर्ता पंद्रह-पंद्रह और बीस-बीस लोगों की मीटिंग बुलाएँगे और इनमें “हिंदू ख़तरे में है” की बात लोगों के दिमाग़ में बैठाई जाएगी! ये महज़ इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने इसी समय यह बयान दिया था, “ये लोग हमारे घरों में घुसेंगे, हमारी लड़कियों को उठायेंगे और बलात्कार करेंगे।”
आशुतोष

“हिन्दू धर्म ख़तरे में है”। अमूमन यह नारा अब तक भारत में नहीं लगाया जाता था। इस तरह का नारा “इसलाम ख़तरे में है” मुसलिम देशों में और भारत के कई हलकों में लगते रहे हैं। आज़ादी के समय मुसलिम लीग ने ये नारे ख़ूब लगाये और भारत के मुसलमानों को बरगला कर देश के विभाजन की नींव रखी और बाद में देश का विभाजन भी हो गया। “इसलाम ख़तरे में है” की तर्ज़ पर आरएसएस और बीजेपी ने “हिंदू धर्म ख़तरे में है” का नारा लगाना और इस की आड़ में चुनाव जीतने के लिए हिंदुओं के एक बड़े तबक़े को बरगलाना शुरू कर दिया है। हाल के दिल्ली चुनावों में ज़मीन पर बीजेपी और आरएसएस के लोगों ने पार्टी के पक्ष में वोट मोबिलाइज करने के लिए किसी भी हद तक जाकर लोगों के दिमाग़ को ज़हरीला करने का काम किया। इसका असर भी दिखा है। दिल्ली में बीजेपी का वोट शेयर छह फ़ीसदी बढ़ा है।

दरअसल, बीजेपी के नेतृत्व को जनवरी के महीने में ही इस बात का एहसास हो गया था कि आम आदमी पार्टी बहुत मज़बूत स्थिति में है और हो सकता है बीजेपी इस बार अपना खाता भी न खोल पाए। यह वो वक़्त था जब सी-वोटर के सर्वे ने बताया था कि “आप” और बीजेपी में तीस फ़ीसदी से ज़्यादा वोटों का फ़र्क़ है और बीजेपी का वोट शेयर 32% खिसक कर 26% पर आ गया है। बीजेपी समर्थक एक बड़ा मध्य वर्ग “आप” की तरफ़ आकर्षित हुआ है। यह बीजेपी के लिए बड़ी ख़तरे की घंटी थी। बीजेपी और आरएसएस के शीर्ष नेताओं की जानकारी में जब यह बात आयी तो फिर इसकी काट की रणनीति बनी। एक उच्च पदस्थ सूत्र के मुताबिक़ जनवरी के मध्य में इस बात चर्चा हुई थी। तमाम विकल्पों पर चर्चा के बाद यह निष्कर्ष निकला कि ज़मीन पर हिंदू-मुसलमान कराए बग़ैर सम्मानजनक वोट नहीं मिलेगा।

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बीजेपी के एक बड़े नेता ने मुझे चुनाव के दौरान ही बता दिया था कि पार्टी को मालूम है कि इस बार उसकी ज़मानत जब्त हो रही है। अभी सिर्फ़ इतनी कोशिश है किसी तरह वह 15 से 20 सीट जीत ले ताकि शीर्ष नेतृत्व के मुँह पर कालिख न पुते। जनवरी में ही बीजेपी को एक और जानकारी ने सकते में डाल दिया था। उसका अपना कैडर हतोत्साहित होकर घर बैठ गया था। उसके समर्थक “आप” को वोट देने को तत्पर थे। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व से बात कर संघ के कैडर को झोंकने का फ़ैसला किया। और फिर मतदाताओं को अपनी तरफ़ मोड़ने की जो रणनीति बनी वह भयावह थी। 

2013 से तीन चुनाव लड़ चुके या लड़ा चुके कई उम्मीदवारों और नेताओं ने बताया कि इस बार जिस तरह से बीजेपी और संघ परिवार ने प्रचार किया वैसा पहले कभी भी देखने में नहीं मिला था। रणनीति के तहत हिंदू वोटरों को धर्म के नाम पर संगठित करने का काम किया गया। हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को जगाया गया। उन्हें डराया गया। उन्हें मुसलिम तबक़े का डर दिखाया गया और यह कहा गया कि मुसलमानों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। और अगर ऐसे ही बढ़ती रही तो हिंदू अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएगा। हिंदू वोटरों को कश्मीर और भारत विभाजन की याद दिलाई गयी। यह कहा गया कि कश्मीर में पहले हिंदू बहुसंख्यक थे लेकिन अब मुसलमानों ने उन्हें अपनी ही ज़मीन से बेदख़ल कर दिया है; कश्मीरी पंडित अपने ही देश में बेघर हो गया है। अगर केजरीवाल आ गया तो दिल्ली भी कश्मीर हो जाएगी। फिर बँटवारे की भी याद दिलायी गयी और कहा गया कि जैसे तब मुसलमानों ने हिंदू घरों में घुस कर हमारी माँ-बहनों से साथ बलात्कार किया था वैसा ही दिल्ली में भी होगा। फटकार लगाते हुए पूछा जाता था कि क्या केजरीवाल के दो-तीन हज़ार रुपये लेकर आप अपना ईमान बेच दोगे? बहू-बेटियों की इज़्ज़त ख़तरे में डालोगे?

जनवरी के बीच में आरएसएस के स्थानीय नेताओं की बैठक हुई और यह तय किया गया कि ब्लॉक के स्तर पर, गाँव के स्तर पर, मुहल्ला स्तर पर और अपार्टमेंट के स्तर पर संघ के कार्यकर्ता पंद्रह-पंद्रह और बीस-बीस लोगों की मीटिंग बुलाएँगे और इन मीटिंग में “हिंदू ख़तरे में है” यह बात लोगों के दिमाग़ में बैठाई जाएगी और फिर गंगा जल देकर बीजेपी को वोट देने के लिए क़सम खिलवायी जाएगी। इसके लिए आसपास के प्रदेशों से जाति विशेष के नेताओं को भी दिल्ली बुलाया गया और उन्हें उन्हीं जाति के लोगों के बीच में दिमाग़ बदलने का काम दिया गया। जाति विशेष के संगठनों को भी मोबिलाइज कराया गया। जैसे ब्राह्मण समाज या जाट या गुर्जर समाज के संगठनों को भी अपनी-अपनी जाति व हिंदू धर्म बचाने के नाम पर दिल्ली में लगाया गया।

मतदान के आख़िरी हफ़्ते में संघ और बीजेपी के इन कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने इलाक़ों में रणनीति के हिसाब से बीस-बीस, पचीस-पचीस हिंदुओं की मीटिंग बुलाई। इनमें वे लोग भी थे जो बीजेपी समर्थक नहीं थे लेकिन ये लोग संघ और बीजेपी कार्यकर्ताओं के मित्र या रिश्तेदार या जानने वाले थे।

इन बैठकों में बताया गया, “कैसे केजरीवाल को वोट देना हिंदू धर्म को नुक़सान पहुँचाएगा; केजरीवाल शाहीन बाग़ का समर्थक है और अगर जीत गया तो पूरी दिल्ली में हर जगह शाहीन बाग़ बन जाएगा; यह देश को तोड़ने की बड़ी साज़िश है; मुसलमानों की आबादी लगातार बढ़ रही है; ये लोग हिंदू घरों में घुसकर हमारी बहन-बेटियों का बलात्कार करेंगे।” ये महज़ इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि बीजेपी के सांसद प्रवेश वर्मा ने इसी समय यह बयान दिया था, “ये लोग हमारे घरों में घुसेंगे, हमारी लड़कियों को उठायेंगे और बलात्कार करेंगे।” सारे टीवी चैनलों पर यह ख़बर ख़ूब चली थी। इसी तरह आजतक चैनल पर बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने डिबेट के दौरान चीख-चीख कर कहा था, “हिंदू जागो, हिंदू जागो।” अनौपचारिक रूप से तो बीजेपी और संघ के कार्यकर्ता इस तरह की बातें करते रहते हैं लेकिन बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद का इस तरह से बयान देना अनायास नहीं था।

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बैठकों में थैली लेकर क्यों जाते थे?

इन बैठकों में “हिंदू ख़तरे में है” को दिमाग़ में बैठाने के बाद बीजेपी और संघ का कार्यकर्ता अपनी जेब से एक थैली निकालता था। इस थैली में गंगा जल होता था। बैठक में मौजूद लोगों को ये गंगाजल अँजुरी में दिया जाता था। पहले उन्हें हिंदू होने की क़सम खिलाई जाती थी। यानी गंगा जल लेकर कहलवाया जाता था कि “हम हिंदू हैं और हिंदू धर्म की रक्षा करेंगे।” इसके बाद गंगा जल लेकर ये भी कहलवाया जाता था कि “वो बीजेपी को वोट देंगे।” यानी बीजेपी को वोट देने की क़सम दिलवायी जाती थी। ख़ासकर दिल्ली देहात के इलाक़े में यह कराया गया। पूर्वी दिल्ली और उत्तर पूर्वी दिल्ली में भी क़समें दिलायी गयीं। सूत्रों ने यह भी बताया कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों में गंगा जल के साथ-साथ काशी विश्वनाथ मंदिर की भभूत भी बैठक में आये लोगों के माथे पर लगायी गयी। और बाबा विश्वनाथ की सौगंध खिलाई गयी। अब यह साबित करना तो असंभव है कि जिस जल को गंगा जल या जिस राख को भभूत बताया गया वो वाक़ई में गंगा जल था या काशी विश्वनाथ का भभूत था। लेकिन इस बहाने लोगों की धार्मिक भावनाओं का फ़ायदा उठाने की कोशिश ज़रूर की गयी। 

इतने पर ही बस नहीं किया गया। ऐसे वोटरों की पहचान कर उनकी सूची बनायी गयी। 

जब ये लोग वोट देने के लिये जा रहे थे तब लगातार उनको गंगा की क़सम की याद दिलायी गयी। और पोलिंग बूथ में घुसने के समय या बूथ के बाहर जमकर जय श्री राम के नारे लगाये जाते थे। ताकि ऐसा वोटर भटकने ना पाये या आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बहकावे में न आ जाए।

आम आदमी पार्टी के विधायक सौरव भारद्वाज ने एक टीवी कार्यक्रम में बताया कि इस बारे में जब बूथ पर मौजूद पुलिस और चुनाव आयोग के अधिकारियों से शिकायत की गयी तो उन्होंने यह कह कर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया कि ये लोग किसी पार्टी के नहीं हैं और न ही किसी दल के लिये वोट माँग रहे हैं।

चुनाव के दौरान ये भी देखने में आया कि जहाँ-जहाँ आम आदमी पार्टी की सभा या रैली निकलती थी तब दस-पंद्रह के झुंड में कुछ लोग आते थे और “जय श्री राम” के ज़ोर-ज़ोर से नारे लगाने लगाते थे। सौरभ भारद्वाज ने बताया कि जब ये बार-बार होने लगा तो उन्होंने आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की कई टोलियाँ बनायीं और जब वो “जय श्री राम” के नारे लगाते तो उसके जवाब में “आप” के लोग “जय बजरंग बली” के नारे लगाने लगते।

विचार से ख़ास

इस प्रचार का असर देखने में आया और बीजेपी का वोट शेयर भी बढ़ा। लेकिन पढ़े-लिखे लोगों का एक तबक़ा इस प्रचार से बीजेपी से बिदका भी। नाम न छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा कि संघ के बहकावे में ग़रीब और सवर्ण जाति के लोग ज़्यादा आये। जाट और गुर्जर प्रभावी बाहरी दिल्ली में इसका असर काफ़ी दिखा। साथ ही पूर्वी और उत्तर पूर्वी दिल्ली के अनधिकृत कॉलोनियों में भी इस प्रचार ने रंग दिखाया। यह अकस्मात् नहीं है कि इन इलाक़ों में बीजेपी के आठ में से छह विधायक जीते। इस प्रचार के भुलावे में अधिकतर वे लोग आए जो बीजेपी समर्थक होने के बाद भी इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट देना चाहते थे। हाशिये पर बैठे सवर्ण, जाट और गुर्जर समाज के लोगों पर तो निश्चित तौर पर असर हुआ। दलित समाज इनके बहकावे में नहीं आया। 

अब सवाल यह उठता है कि हर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक होते हैं, उन लोगों ने मतदान के समय होने वाले धार्मिक नारों को लगाने से रोकने की क्या कोशिश नहीं की? या धार्मिक तौर ज़हरीले प्रचार को रोकने के लिए क्या कदम उठाये? ज़ाहिर है चुनाव आयोग अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में कमज़ोर साबित हुआ। लेकिन दिल्ली के मतदाताओं को शुक्रिया ज़रूर कहना चाहिए कि इस भयावह नफ़रत की राजनीति को उसने पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया। एक तरह से रिजेक्ट कर दिया। लेकिन देश के लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं है।

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