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क्या मणिपुर में निर्वस्त्र घुमाई गईं बेटियाँ 'शक्ति का रूप' नहीं?

लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही सत्ता व विपक्षी दलों के नेताओं ने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप शुरू कर दिये हैं। राजनीति के स्वयंभू 'चाणक्यों' द्वारा बड़ी ही चतुराई से मतदाताओं का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटका कर ग़ैर ज़रूरी मुद्दों की तरफ़ खींचा जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि इस बार होने जा रहे 18वीं लोकसभा के आम चुनाव संभवतः पूर्व में अब तक हुए सभी चुनावों की तुलना में कुछ ज़्यादा ही कटु वातावरण में होने की संभावना है। इसके लक्षण भी अभी से दिखाई भी देने लगे हैं।

देश के समक्ष इस समय ताज़ातरीन मुद्दा इलेक्टोरल बॉन्ड सम्बन्धी घोटाले का है। महंगाई इस समय अभूतपूर्व रूप में अपने चरम पर है। विपक्षी दल वर्तमान केंद्र सरकार को चंद गिने-चुने उद्योगपतियों के हितों का संरक्षण करने तथा किसानों, मज़दूरों, कामगारों व ग़रीबों के विरुद्ध काम करने वाली सरकार बता रहे हैं। सत्ता पर कई प्रमुख केंद्रीय जाँच एजेन्सियों के दुरूपयोग का आरोप है। विपक्षी दल अग्निवीर योजना का विरोध कर इसे सैनिकों के जोश व उत्साह को ख़त्म करने वाली देश विरोधी योजना बता रहे हैं। विपक्षी दल पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग भी कर रहे हैं। बेरोज़गारी देश की ज्वलंत समस्या है। परन्तु इन ज़रूरी विषयों से इतर बड़ी ही चतुराई से चुनाव का रुख़ 'धर्म' की तरफ़ मोड़ा जा रहा है।

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पिछले दिनों इंडिया गठबंधन दलों की एक विशाल सभा, जो कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा की समापन सभा के रूप में  मुंबई के शिवाजी पार्क में आयोजित की गयी थी। इस सभा में राहुल गांधी ने कहा था कि ‘‘हिन्दू धर्म में शक्ति शब्द होता है। हम एक शक्ति से लड़ रहे हैं। अब सवाल उठता है कि वह शक्ति क्या है?’ बस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी द्वारा प्रयुक्त 'शक्ति ' शब्द इतना 'अनुकूल' लगा कि वे अपनी विशेष शैली के अनुसार इसी 'शक्ति शब्द' को लेकर 'उड़ पड़े'। मुंबई की इस सभा के अगले ही दिन प्रधानमंत्री ने तेलंगाना के जगतियाल में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि -"मुंबई में इंडी गठबंधन की पहली रैली हुई और उन्होंने अपना घोषणा पत्र जारी किया। वह कहते हैं कि उनकी लड़ाई 'शक्ति' के ख़िलाफ़ है। मेरे लिए हर बेटी शक्ति का रूप है और मैं अपनी माताओं-बहनों की रक्षा के लिए जान की बाज़ी लगा दूंगा, जीवन खपा दूंगा।" 

उन्होंने कहा कि 'एक ओर शक्ति के विनाश की बात करने वाले लोग हैं, दूसरी ओर शक्ति की पूजा करने वाले लोग हैं। मुक़ाबला 4 जून को हो जाएगा कि कौन शक्ति का विनाश कर सकता है और कौन शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। इंडी गठबंधन ने अपने घोषणापत्र में कहा कि उनकी लड़ाई शक्ति के ख़िलाफ़ है। मेरे लिए हर मां, बेटी और बहन 'शक्ति' का रूप हैं। मैं उनकी पूजा करता हूं। मैं विपक्ष की चुनौती को स्वीकार करता हूं।" तेलंगाना में ही एक अन्य सभा में प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘‘इंडी गठबंधन वाले बार-बार, जानबूझकर हिन्दू धर्म का अपमान करते हैं। हिन्दू धर्म के ख़िलाफ़ इनका हर बयान बहुत सोचा-समझा हुआ होता है। डीएमके और कांग्रेस का इंडी गठबंधन और किसी धर्म का अपमान नहीं करता। किसी और धर्म के ख़िलाफ़ इनकी जुबान से एक शब्द नहीं निकलता, लेकिन हिन्दू धर्म को गाली देने में ये एक सेकंड नहीं लगाते।’’

ग़ौरतलब है कि कांग्रेस स्पष्ट कर चुकी है कि राहुल गांधी द्वारा “शक्ति शब्द का अर्थ 'दुष्ट शक्तियों' से था न कि दुर्गा या शिव शक्ति से। लेकिन बीजेपी झूठ फैला रही है। स्वयं राहुल गांधी ने भी कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी बातों का अर्थ बदलने की कोशिश की है, जबकि उन्होंने जिस 'शक्ति' का उल्लेख किया था उसका 'मुखौटा' प्रधानमंत्री ख़ुद हैं। उन्होंने यह दावा भी किया कि जिस 'शक्ति' के ख़िलाफ़ वह लड़ने की बात कर रहे हैं उसने सभी संस्थाओं और संवैधानिक ढाँचे को अपने चंगुल में दबोच लिया है। परन्तु राहुल गाँधी द्वारा 'शक्ति' शब्द का प्रयोग करने को मोदी ने कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के सभी सदस्यों को हिन्दू विरोधी बता दिया। इसी सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि 'मेरे लिए हर बेटी शक्ति का रूप है और मैं अपनी माताओं-बहनों की रक्षा के लिए जान की बाज़ी लगा दूंगा, जीवन खपा दूंगा'। 
प्रधानमंत्री मोदी के 'शक्ति' शब्द पर दिये गये इस 'प्रवचन' ने मोदी पर ही कई सवाल खड़े कर दिये हैं। पहला सवाल तो यह कि जब प्रधानमंत्री के अनुसार उनके लिए देश की 'हर बेटी' शक्ति का रूप है और वे अपनी इन बेटियों-माताओं व बहनों की रक्षा के लिए जान की बाज़ी लगाने व अपना जीवन खपाने की बात करते हैं तो क्या मणिपुर में निर्वस्त्र घुमाई जाने वाली बेटियाँ 'शक्ति का रूप' नहीं थीं?
जिन बेटियों के साथ वहाँ बलात्कार की अनेक घटनाएँ हुईं उन बहनों की रक्षा के लिए क्या प्रधानमंत्री ने अपनी जान की बाज़ी लगाई? हाथरस से लेकर कठुआ तक और जंतर मंतर पर बैठी ओलम्पिक स्तर का पदक जीतने वाली कई पहलवान लड़कियाँ क्या 'शक्ति' का रूप नहीं थीं? क्या किया मोदी जी ने उनकी रक्षा के लिये? सत्ता के कई क़रीबी लोगों पर से तो मोदी सरकार के ही कार्यकाल में बलात्कार सम्बन्धी कई मुक़ददमे तक वापस ले लिए गये? उस समय 'शक्ति' का रूप और बहनों की रक्षा के लिए जान की बाज़ी लगाने व अपना जीवन खपाने जैसे डायलॉग याद नहीं आये थे? या मतदाताओं को गुमराह करने व उनमें भ्रम पैदा करने वाली ध्यान भटकाने की यह 'पुड़िया' चुनाव के समय ही खोली जाती है?
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रहा सवाल मोदी के इस आरोप का कि ‘‘इंडी गठबंधन वाले बार-बार, जानबूझकर हिन्दू धर्म का अपमान करते हैं", इस पर कांग्रेस कुछ डीएमके नेताओं के आपत्तिजनक बयानों से किनारा भी कर चुकी है और उससे असहमति भी जता चुकी है। परन्तु भाजपा ने बिहार में गया की सीट राजग के जिस उम्मीदवार के लिये छोड़ी है वे हैं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा के अध्‍यक्ष जीतन राम मांझी। जीतन राम मांझी अनेक अवसर पर हिन्दू धर्म व हिन्दू देवी देवताओं का अपमान कर चुके हैं। वे न केवल राम को भगवान मानने से इनकार कर चुके हैं बल्कि सत्‍यनारायण पूजा व हिंदू धर्म पर भी सवाल खड़े कर चुके हैं। यहां तक कि वे ब्राह्मणों के प्रति भी अपशब्द बोल चुके हैं। मांझी ने यह भी कहा था कि वे पूजा-पाठ कभी नहीं करते। परन्तु जीतन राम मांझी की पार्टी वर्तमान नीतीश सरकार में भी साझीदार है और मांझी स्वयं एनडीए के लोकसभा प्रत्याशी भी हैं। क्या मांझी का हिंदू धर्म व देवी देवताओं का विरोध मोदी या भाजपा अथवा हिन्दू धर्म के उन स्वयंभू शुभचिंतकों को दिखाई नहीं देता? दरअसल यह सब चुनावी समर के दौरान इसी तरह अर्थ का अनर्थ करने व जनसमस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने का कुटिल प्रयास मात्र है। जिससे जनता को समझने व इससे सचेत रहने की ज़रूरत है।

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निर्मल रानी
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