अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल (WSJ) में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि बीजेपी दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक दल है। लेकिन इसे सबसे कम समझा गया है। इस लेख को पत्रकार रसेल मीड ने लिखा है। भारतीय न्यूज एजेंसी एएनआई ने आज इस लेख को खबर के रूप में जारी किया है। हालांकि इस लेख में भारतीय संसद में घट रही घटनाओं का जिक्र नहीं है।
रसेल मीड ने लिखा है -भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी, अमेरिकी राष्ट्रीय हितों के नजरिए से, दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण विदेशी राजनीतिक पार्टी है। इसे सबसे कम समझा गया है। 2014 और 2019 में लगातार जीत के बाद बीजेपी अब 2024 चुनाव में फिर से जीत की ओर बढ़ रही है। इसमें यह भी कहा गया है कि जापान और अमेरिका के साथ भारत एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है।
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इसमें कहा गया है- निकट भविष्य में बीजेपी एक ऐसे देश में अपना दबदबा बनाएगी, जिसकी मदद के बिना बढ़ती चीनी शक्ति को संतुलित करने के अमेरिकी प्रयास विफल हो जाएंगे। यानी चीन को काबू रखने के लिए भारत अमेरिका की मजबूरी होगा।
लेखक रसेल मीड का मानना है कि बीजेपी को कम समझा गया है क्योंकि यह अधिकांश गैर-भारतीयों के लिए अपरिचित राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास से निकली है। बीजेपी का चुनावी प्रभुत्व एक विशिष्ट 'हिंदू पथ' से तैयार हुआ है। जिसमें इसके सामाजिक विचारकों और कार्यकर्ताओं की पीढ़ियों का प्रयास शामिल है। यह इसके सामाजिक आंदोलन की सफलता को दर्शाता है। यानी लेखक ने आरएसएस का नाम लिए बिना कहा है कि आरआरएस की सफलता से बीजेपी का राजनीतिक रास्ता आसान हुआ है।
रसेल मीड लिखते हैं - मुस्लिम ब्रदरहुड की तरह, बीजेपी पश्चिमी उदारवाद के कई विचारों और प्राथमिकताओं को खारिज करती है। हालांकि यह आधुनिकता को भी अपनाए हुए है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तरह, बीजेपी एक अरब से अधिक लोगों के साथ एक ग्लोबल पावर बनने के लिए एक राष्ट्र का नेतृत्व करने की उम्मीद करती है। इजराइल की लिकुड पार्टी की तरह बीजेपी भी पारंपरिक मूल्यों के साथ मूल रूप से बाजार समर्थक है।
वामपंथी-उदारवादी विचारधारा वाले अमेरिकी विश्लेषक विशेष रूप से अक्सर नरेंद्र मोदी के भारत को देखते हैं और पूछते हैं कि यह डेनमार्क जैसा क्यों नहीं है। उनकी चिंता पूरी तरह गलत नहीं है। सत्तारूढ़ गठबंधन की आलोचना करने वाले पत्रकारों को उत्पीड़न और इससे भी बदतर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। धार्मिक अल्पसंख्यक खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। हिंदू गौरव को समर्पित बीजेपी भीड़ की हिंसा की बात करने वाली पार्टी के रूप में पहचानी जा रही है। धर्मांतरण विरोधी कानूनों के साथ-साथ इसे भीड़ की हिंसा जैसे मामलों के साथ जाना जा रहा है। इसमें कहा गया है कि बहुत से लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस की ताकत से डरते हैं, जो एक राष्ट्रव्यापी हिंदू राष्ट्रवादी संगठन है, जिसका बीजेपी नेतृत्व से घनिष्ठ संबंध है।
हालांकि, पत्रकार रसेल मीड का मानना है कि भारत एक जटिल जगह है और जहां कई और कहानियाँ भी हैं।
लेख में कहा गया है कि ईसाई बहुल नॉर्थ ईस्ट राज्यों में बीजेपी को कुछ उल्लेखनीय हालिया राजनीतिक सफलताएँ मिली हैं। लगभग 200 मिलियन की आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार को शिया मुसलमानों का मजबूत समर्थन प्राप्त है। ओपिनियन पीस में कहा गया है कि आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने जातिगत भेदभाव से लड़ने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
रसेल मीड ने लिखा- बीजेपी और आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं, साथ ही उनके कुछ आलोचकों के साथ गहन बैठकों के बाद, मुझे विश्वास है कि अमेरिकियों और पश्चिमी लोगों को आम तौर पर एक जटिल और शक्तिशाली आंदोलन के साथ और अधिक गहराई से जुड़ने की जरूरत है। उनके मुताबिक आरएसएस शायद "दुनिया का सबसे शक्तिशाली नागरिक-समाज संगठन" बन गया है। इसके ग्रामीण और शहरी विकास कार्यक्रम, धार्मिक शिक्षा, नागरिक सक्रियता, हजारों स्वयंसेवकों द्वारा संचालित कार्यक्रम लाखों लोगों को जोड़ने में सफल रहे हैं।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ अपनी मुलाकात को पत्रकार रसेल मीड ने याद किया है। मीड ने लिखा है, ऐसा लगता है कि आंदोलन एक चौराहे पर पहुंच गया है। जब मैं योगी आदित्यनाथ से मिला तो वो राज्य के विकास और निवेश लाने के बारे में बात करते नजर आए। योगी को राज्य के मुख्यमंत्री के अलावा हिन्दू आंदोलन की सबसे कट्टरपंथी आवाजों में से एक माना जाता है। उन्हें कभी-कभी 72 वर्षीय पीएम मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में भी देखा जाता है। इसी तरह, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझसे भारत के आर्थिक विकास में तेजी लाने की आवश्यकता के बारे में बात की और इस विचार को खारिज कर दिया कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव या नागरिक अधिकारों पर हमला हो रहा है।
अमेरिकी पत्रकार रसेल मीड ने लिखा - शीर्ष नेताओं द्वारा एक विदेशी पत्रकार को दिए गए ये बयान जमीनी स्तर तक कैसे पहुंचेंगे, इसका अनुमान लगाना असंभव है। लेकिन मुझे यह आभास हुआ कि एक बार हाशिए पर चले गए आंदोलन का नेतृत्व खुद को एक उभरती हुई शक्ति की स्वाभाविक स्थापना के रूप में स्थापित करना चाहता है और अपने सामाजिक और राजनीतिक आधार से संपर्क खोए बिना बाहरी दुनिया के साथ गहराई से से जुड़ना चाहता है।
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भाजपा और आरएसएस के साथ जुड़ने का निमंत्रण ऐसा है जिसे अमेरिकी अस्वीकार नहीं कर सकते। जैसे-जैसे चीन के साथ तनाव बढ़ रहा है, अमेरिका को आर्थिक और राजनीतिक दोनों भागीदारों के रूप में भारत की जरूरत है। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा कि हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन की विचारधारा समझना व्यापारिक नेताओं और निवेशकों के लिए भारत के साथ आर्थिक रूप से जुड़ने के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि राजनयिकों और नीति निर्माताओं के लिए है।
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