15 जून को गलवान घाटी में ख़ूनी झड़प के एक सप्ताह बाद 22 जून को चीनी और भारतीय सेना के कमांडरों के बीच बैठक में कई सहमतियाँ हुईं और इसके बाद इन पर मुहर लगाने के लिये 24 जून को दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के संयुक्त सचिव स्तर के आला अधिकारियों के बीच वीडियो पर लम्बी वार्ता हुई। इस बातचीत में चीन ने 15 जून की ख़ूनी गलवान झड़प के लिये भारतीय सेना को ज़िम्मेदार ठहराने वाले आरोप लगाए, लेकिन दोनों ने सहमति दिखाई कि गत छह जून को कमांडरों की पहली बैठक के चार दिनों बाद दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बातचीत की भावना का दोनों सेनाएँ आदर करेंगी और छह जून की कमांडरों की बैठक में हुई सहमति को ज़मीन पर लागू करेंगी।
लेकिन चीन का रवैया अबतक इसके पलट रहा है। चीन की रणनीति रहती है कि वह दुश्मन के इलाक़े में चार क़दम आगे बढ़े और वार्ता टेबल पर दो क़दम पीछे हट कर यह कहे कि दोनों पक्षों के बीच सम्मानजनक समझौता हुआ है। लेकिन इस प्रक्रिया में चीन को दो क़दम ज़मीन अपने पास रखने का लाभ तो मिल ही जाएगा। जून, 2017 के दौरान भूटान के डोकलम इलाक़े में 73 दिनों तक चली घुसपैठ के बाद जो सहमति बनी थी उसमें यही हुआ। चीनी और भारतीय सेनाओं को दो-दो सौ मीटर पीछे जाने को कहा गया जबकि चीनी सेना को पूरा डोकलाम इलाक़ा खाली कर देना चाहिये था क्योंकि वह भूटान का भूभाग है। अब ताज़ा रिपोर्ट है कि चीन ने डोकलाम इलाक़े में सौ मीटर और आगे तक अपने सैनिकों को बढ़ा दिया है।
इसी तरह 24 जून को जहाँ एक ओर दोनों देशों के आला राजनयिक टेबल पर बातचीत के ज़रिये एक-दूसरे को भरोसा दिला रहे थे वहीं चीन ने 3488 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नये मोर्चे खोलने के क़दम उठा कर अपने नापाक इरादों के संकेत दिये हैं। गलवान घाटी में जहाँ झड़प हुई और जहाँ से चीनी सैनिकों को पीछे धकेलने का दावा किया गया था वहाँ चीनी सेना ने अपनी क़िलेबंदी और मज़बूत कर ली है। इसके अलावा चीनी सेना द्वारा अरुणाचल प्रदेश के इलाक़े में भी घुसपैठ करने की रिपोर्टें मिली हैं।
लद्दाख के देपसांग सीमांत इलाक़े में, जहाँ 2013 में चीनी सेना 20 किलोमीटर भीतर घुसी थी और जिसे तब की सरकार ने वापस जाने को मजबूर किया था वहाँ चीनी सेना के फिर घुसने की रिपोर्टें हैं जिन पर 24 जून की शाम तक आधिकारिक स्तर पर चुप्पी बरती गई है।
बहरहाल, 24 जून को दिन भर भारतीय और चीनी विदेश मंत्रालयों के आला अधिकारियों की बातचीत के बारे में भारतीय पक्ष ने इतना ही बताया है कि भारत-चीन सीमांत इलाक़ों पर सलाह और समन्वय के लिये वर्किंग मैकेनिज़्म (डब्ल्यूएमसीसी) की 15वीं बैठक में दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि छह जून को दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच जो सहमति बनी थी इसका तेज़ी से क्रियान्वयन किया जाए। जहाँ एक ओर दोनों देशों के आला राजनयिक छह जून की सहमति को लागू करने की बातें कर रहे थे चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा के गलवान घाटी सहित दूसरे इलाक़ों में घुसपैठ कर रही थी और अपनी सैन्य तैनाती बढ़ा रही थी। साफ़ है कि चीन बातचीत का झाँसा देकर भारतीय सेना को भ्रम में रखना चाहता है और उसे जवाबी सैन्य क़दम उठाने से रोकने की रणनीति पर चल रहा है।
हालाँकि 22 जून को चीनी सेना के शिन्च्यांग इलाक़े के कमांडर मेजर जनरल ल्यु लिन और लेह स्थित 14 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह के बीच 11 घंटे तक हुई गहन बातचीत को भारत ने सकारात्मक, रचनात्मक और सौहार्दपूर्ण की संज्ञा दी लेकिन 24 जून को भारतीय विदेश मंत्रालय के देर शाम जारी बयान से इस आशय के संकेत नहीं मिलते हैं कि तनाव और टकराव के इलाक़ों से चीनी सेना अपने ढाँचागत निर्माण को तोड़ देगी।
सबसे अहम सवाल बना हुआ है- पैंगोंग त्सो झील के ऊपर आठ पर्वतीय चोटियों में से फिंगर-चार से फिंगर-आठ तक के बीच आठ किलोमीटर के इलाक़े पर चीनी सेना ने अपनी क़िलबंदी क्यों और मज़बूत कर ली है। इस इलाक़े पर गत पाँच मई को हुई झड़प के पहले तक भारतीय सेना फिंगर-चार से लेकर फिंगर-8 तक की चोटी तक गश्ती करती रही है लेकिन अब वहाँ भारतीय सैनिकों को जाने से चीनी सेना ने रोक लिया है।
दोनों देशों की सेनाओं और राजनयिकों के बीच जो बातचीत चल रही है उसमें कई जगहों से सैनिकों के पीछे हटने पर सहमति का दावा किया गया है लेकिन पैंगोंग त्सो झील इलाक़े पर फिंगर-4 से फिंगर-8 तक के आठ किलोमीटर तक के इलाक़े से चीनी सैनिकों को पीछे कर लेने के बारे में दोनों देशों के अधिकारी मौन हैं। इस इलाक़े में चीनी सेना द्वारा बड़ी तोपों और मशीन गनों के तैनात करने की रिपोर्टें हैं। इसलिये चीनी सेना द्वारा जब वास्तविक नियंत्रण रेखा के कुछ इलाक़ों से पीछे हटने की बातें की जा रही हैं तो यही शंका पैदा होती है कि कहीं चार क़दम आगे बढ़ने के बाद दो क़दम पीछे जाने की रणनीति के तहत चीन पैंगोंग झील की चोटियों के इलाक़े पर अपनी स्थायी मौजूदगी तो नहीं बनाने में कामयाब होगा? भारतीय सेना के लिये फिंगर-4 से फिंगर 8 तक की चोटी पर बैठना सामरिक तौर पर बैठना काफ़ी अहम है क्योंकि यहाँ से दोलतबेग ओल्डी मार्ग पर भारतीय सैन्य आवाजाही को निशाना बनाया जा सकता है।
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