लाल टीका लगाये और लाल स्वेटर पहने आम आदमी पार्टी (आप) के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के रामलीला मैदान में जब तीसरी बार शपथ ग्रहण के भाषण की शुरुआत की तो तमाम लोगों को इससे बड़ी उम्मीदें थीं। दिल्ली में 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और 'आप' के बीच हुई जंग में केजरीवाल विजेता बनकर उभरे हैं। ऐसे में उनके भाषण से उम्मीदें होना स्वाभाविक थीं। लेकिन उनका भाषण कम से कम उन लोगों को निराश करने वाला है, जो उन्हें नरेंद्र मोदी और बीजेपी की सांप्रदायिक, विभाजनकारी राजनीति के बरक्स विकल्प के रूप में देखते हैं और ऐसा मान लेने की कई वजहें हैं।
हिंदुत्व व हिंदू ध्रुवीकरण के नारे
“भारत माता की जय”, “वंदे मातरम”, “इंकलाब जिंदाबाद” के नारों के साथ भाषण शुरू करने वाले केजरीवाल ने उन मसलों को क़तई नहीं उठाया, जिन्हें लेकर आम लोग सरकार के ख़िलाफ़ कथित रूप से आंदोलित हैं। केजरीवाल के भाषण में विकास के सपने उसी तरह दिखाए जाते रहे, जैसे नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले दिखाए थे। सबसे दिलचस्प अंश तब सामने आया, जब पूरे विपक्ष में किसी नेता का नाम न लेते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में न आ पाने को लेकर दुख जताया।
केजरीवाल ने भाषण में कहा कि वह प्रधानमंत्री का आशीर्वाद चाहते हैं। स्वाभाविक है कि केजरीवाल के इस बयान से वे लोग सदमे में होंगे, जो उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में मोदी के सामने खड़ा करके देखते हैं।
नरेंद्र मोदी के जैसा भाषण
केजरीवाल के भाषण का बड़ा अंश विकास पर केंद्रित रहा। जाति और धर्म इसी विकास के क्रम में पूरे भाषण में सिर्फ एक बार आए जब उन्होंने कहा कि कामकाज करने में जाति और धर्म नहीं देखा जाएगा। देश में धार्मिक उन्माद और दलितों-पिछ़ड़ों के दमन की राजनीति को लेकर केजरीवाल ने कुछ भी नहीं कहा। विरोधियों को माफ़ कर देने जैसा बड़प्पन दिखाने की भी कवायद उन्होंने की। उन्होंने भाषण के बीच में एक कविता के माध्यम से आरएसएस के उस नारे को भी आत्मसात किया, जिसमें भारत सर्वोपरि आता है। आरएसएस-बीजेपी व्यवहार में भारत को चाहे जितना नीचे रखें, लेकिन इंडिया फर्स्ट का नारा देते हैं। केजरीवाल ने तिरंगे की शान को ऊपर करते हुए भारत को आगे बढ़ाने की बात कही। उन्होंने कई देशों का नाम लेते हुए उन देशों में भारत का डंका बजाने की भी बात कही।
केंद्र से लोगों की नाराजगी पर चुप्पी
दिल्ली चुनाव शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ चल रहे धरने के बीच हुआ। इस दौरान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से लेकर जामिया मिल्लिया इस्लामिया तक में फ़ीस बढ़ोतरी व सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान लाठियां चलीं। उत्तर प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्य में नागरिकता क़ानून का विरोध करने वालों पर अत्याचार के जो वीडियो आए, वे आम व्यक्ति को कंपा देने वाले थे। ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि केजरीवाल इन सब चीजों से अनभिज्ञ हैं।
‘आप’ के पक्ष में मतदान करने वाले और उनकी जीत पर हृदय में गुदगुदी महसूस करने वाले लोगों ने इन सब मसलों पर भी बीजेपी के ख़िलाफ़ मतदान किया था। लेकिन केजरीवाल ने एक बार भी मुसलिमों की चिंताओं को नहीं उठाया कि नागरिकता क़ानून किस तरह से विभाजनकारी है या एनआरसी अमानवीय है।
दलित-पिछड़ों के हक़ के मसले नदारद
एससी-एसटी, ओबीसी का आरक्षण एक अहम मसला है। दिल्ली के जंतर-मंतर, मंडी हाउस से लेकर यूजीसी के भवन तक केंद्र सरकार की आरक्षण की नीति के ख़िलाफ़ बहुत बड़े-बड़े प्रदर्शन हुए। रैलियां निकाली गईं। कई बार विद्यार्थियों पर वाटर कैनन छोड़े गये और लाठीचार्ज किया गया। यह सब कुछ दिल्ली और केजरीवाल के विधानसभा क्षेत्र में ही हुआ। हाल ही में उच्चतम न्यायालय का फ़ैसला आया, जिसमें कहा गया कि आरक्षण सरकारों की दया पर निर्भर है, वह संवैधानिक हक़ नहीं है, जिस पर संसद में हंगामा भी हुआ।
ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि केजरीवाल इन मसलों से अनभिज्ञ हैं। लेकिन वह कुछ भी नहीं बोले। इससे केजरीवाल पर लगे उन आरोपों को बल मिलता है कि वह ओबीसी को आरक्षण दिए जाने के ख़िलाफ़ 2008 में हुए आंदोलन में सक्रिय सहभागी रहे हैं।
क्या डरे हुए हैं केजरीवाल?
केंद्र सरकार की आरक्षण विरोधी कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ मतदान करने वाले दलित-पिछड़े तबक़ों को भी केजरीवाल के इस भाषण से निराशा हुई होगी, जिन्हें लगता था कि वह सुधर गए हैं और अब वंचित तबक़े के लिए काम कर रहे हैं। केजरीवाल के भाषण से तमाम लोगों को यह अहसास हुआ है कि देश को एक और नरेंद्र मोदी मिल गया है, जो चांद-तारे तोड़कर लाने के सपने दिखा रहा है। उनके इस भाषण से लगता है कि केजरीवाल ख़ुद भी डरे हुए हैं और वह “केंद्र में मोदी, दिल्ली में केजरीवाल” नारे के साथ चलने में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
केजरीवाल एक भी ऐसा विवादास्पद मसला नहीं छूना चाह रहे हैं, जो उन्हें मोदी की नीतियों से इतर दिखाए। “इंसान से इंसान का हो भाईचारा” जैसे सॉफ्ट गाने से भी परहेज करते हुए “हम होंगे कामयाब” के विकास गीत और “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम”, “इंकलाब जिंदाबाद” नारों के साथ केजरीवाल का भाषण ख़त्म हो गया। बीजेपी-आरएसएस की राजनीति के ख़िलाफ़ मतदान करने वाले सिर्फ इस बात पर खुश हो सकते हैं कि कमल चुनाव चिह्न वाले दिल्ली में चुनाव हार गए हैं।
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