हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
जीत
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बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
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बिहार के खगड़िया जिले के अलौली प्रखंड के शहरबन्नी गांव का एक टोला है, जिसका नाम मंत्री जी का टोला है। राम विलास पासवान के मंत्री बनने के बाद उस टोले का यह नाम पड़ा था। अपने बेटे को खोने पर आज यह टोला सबसे अधिक उदास होगा।
शतरंज खेलने के शौकीन राम विलास पासवान के पास 23 साल की उम्र में डीएसपी और एमएलए दोनों बनने का अवसर आया तो उन्होंने एमएलए बनने को प्राथमिकता दी।
1975 में इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तार हुए मगर उसी साल उन्होंने हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव रिकाॅर्ड 4,24,545 वोटों से जीता। तब से 2014 तक वे नौ बार लोकसभा के सांसद रहे और इसके बाद राज्यसभा के सदस्य भी बने। यूपीए और एनडीए दोनों के शासन काल में मंत्री बनने को उनकी राजनीतिक पकड़ की पहचान माना जाता है।
बिहार की राजनीति की तिकड़ी, जिसके दो अन्य सदस्य लालू प्रसाद और नीतीश कुमार हैं, के सदस्य के रूप में उन्होंने राजनीति में सही समय पर सही फैसला लेने में नाम पैदा किया। राजनीति को भांपने की उनकी इस समझ के कारण ही लालू प्रसाद उन्हें मौसम वैज्ञानिक मानते थे।
सन 2005 पासवान के राजनीतिक जीवन का एक और महत्वपूर्ण साल था, जब उनकी महज पांच साल पुरानी पार्टी ने अकेले दम पर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा था और उसे 29 सीट मिली थी। तब पासवान कहते थे कि सत्ता की चाबी तो उनके पास है। उनकी पार्टी ने किसी को समर्थन नहीं देने का निर्णय लिया जिसके कारण बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था।
उस समय उन्होंने कुछ बाहुबलियों को भी टिकट दिये थे। जब उनसे इसके बारे में सवाल किया गया तो उनका जवाब बहुत ही दिलचस्प था। उन्होंने कहा था कि सिर का घाव ठीक करने के लिए पांव के घाव पर ध्यान नहीं दिया जाता।
इस मौसम वैज्ञानिक को शायद अपने आने वाले दिनों का भान हो चुका था और शायद इसी वजह से साल 2000 में स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की कमान उन्होंने अपने पुत्र चिराग पासवान को दे दी थी। वैसे, 2014 के बाद से ही एलजेपी का लगभग हर महत्वपूर्ण निर्णय चिराग पासवान ही ले रहे थे।
एमए और एलएलबी की डिग्री रखने वाले राम विलास पासवान कसरत करने और खाने-खिलाने के शौकीन आदमी थे। आप उनके साथ खाने पर बैठ जाएं तो भूख से ज्यादा खिला देना उनके बाएं हाथ का खेल था।
भारत की दलित राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में शामिल राम विलास पासवान ने 1983 में दलित सेना भी बनायी थी जिसके वे आजीवन अध्यक्ष रहे। वे न्याय चक्र के नाम से एक पत्रिका भी निकालते थे। पासवान कभी दलित-अल्पसंख्यक राजनीति में नाम पैदा नहीं कर सके लेकिन वे इंटरनेशनल दलित व माइनाॅरिटी फ्रंट के भी अध्यक्ष थे।
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