ग़ज़ल गायक पंकज उदास का सोमवार निधन हो गया। वह 72 वर्ष के थे। वह लंबी बीमारी से ग्रसित थे। उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहाँ उन्होंने अंतिम साँसें लीं। उनके परिवार ने एक बयान जारी कर इस दुखद खबर की पुष्टि की।
उनके परिवार ने सोशल मीडिया पर एक बयान में कहा, 'बहुत भारी मन से, हम आपको लंबी बीमारी के कारण 26 फरवरी 2024 को पद्म श्री पंकज उदास के दुखद निधन के बारे में सूचित करते हुए दुखी हैं। -उदास परिवार।'
17 मई 1951 को गुजरात में जन्मे पंकज उदास एक प्रसिद्ध भारतीय ग़ज़ल गायक थे जिनकी भावपूर्ण प्रस्तुतियों ने दशकों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है। उन्होंने कम उम्र में अपनी संगीत यात्रा शुरू की और 1980 और 1990 के दशक में प्रसिद्धि हासिल की। सात साल की उम्र से ही पंकज उदास संगीत की दुनिया से जुड़ गए थे।
पंकज उदास ने अपने भाई के साथ पहली बार कार्यक्रम में गाना गाया था, जिसमें उन्हें इनाम के तौर पर 51 रुपए दिए गए थे। इस कार्यक्रम में उन्होंने 'ऐ वतन के लोगों' गाना गाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इसके बाद पंकज ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उन्हें 'चिठ्ठी आई है', 'जीये तो जीयें कैसे', 'चुपके-चुपके', 'रिश्ता तेरा मेरा', 'न कजरे की धार', 'चांदी जैसा रंग है तेरा', 'मत कर इतना गुरूर', 'आदमी खिलौना है' जैसे सुपरहिट गाने के लिए जाना जाता है।
उन्होंने 1972 में फिल्म कामना से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की, लेकिन इस फिल्म के बुरी तरह फ्लॉप होने की वजह से उन्होंने गजलों की तरफ अपना रुख किया और उर्दू की तालीम हासिल की। पंकज उदास ने लगभग दस महीने तक टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाना गाया।
उन्हें 2006 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।
अपनी संगीत उपलब्धियों के अलावा उदास अपने परोपकारी प्रयासों के लिए भी जाने जाते थे, जो सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से धर्मार्थ कार्यों और पहलों का समर्थन करते थे। 1989 में उन्होंने एक एल्बम, 'नबील' जारी किया, जो उनके सबसे अधिक बिकने वाले एल्बमों में से एक बन गया। एल्बम की पहली प्रति एक नीलामी में रखी गई थी जहाँ इसे 1 लाख रुपये की भारी रक़म में बेचा गया था। यह पैसा कैंसर मरीज़ सहायता एसोसिएशन को दान कर दिया गया था।
अपने शानदार करियर के दौरान पंकज उदास ने कई एल्बम और एकल जारी किए, जिनमें से कई कालजयी क्लासिक बन गए हैं।
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