सुंदरलाल बहुगुणा जी का अवसान एक युग के समाप्त होने जैसा है। आज ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में प्रख्यात पर्यावरणविद पद्म विभूषण वृक्ष मित्र नाम से विख्यात सुंदरलाल बहुगुणा ने 94 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। इसकी जानकारी उनके पुत्र वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा ने सोशल मीडिया के द्वारा दी।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे देश के वरिष्ठतम गांधीवादियों में शुमार बहुगुणा को 1970 के दशक में अविभाजित उत्तर प्रदेश के गढ़वाल मंडल में शुरू किए गए चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है। चिपको आंदोलन पेड़ों को बचाने की एक अनूठी विश्व व्यापी जागरूकता की मुहिम बन गया था। यहाँ मनुष्य और प्रकृति के बीच अनूठे प्रेम को दर्शाता पहाड़ की महिलाओं द्वारा वृक्षों से चिपक कर उनको बचाने की पहल का दृश्य बहुत मार्मिक था।
1927 में टिहरी गढ़वाल में जन्मे सुंदरलाल जी प्राथमिक शिक्षा के बाद लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किया। अपने युवाकाल में ही दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने और उनकी शिक्षा दीक्षा हेतु टिहरी में ठक्कर बापा होस्टल खोलकर वह चर्चित हुए। चिपको आंदोलन के दौरान उनका नारा ‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार... ज़िन्दा रहने के आधार’ बेहद लोकप्रिय हुआ और जनगीत जैसा पहाड़ों में गाया जाने लगा।
बहुगुणा चाहते थे कि वनों को काटने की बाजए वृक्षरोपण पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। मैंने पूर्व में उनके कुछ इंटरव्यू किये। उनके पुत्र राजीव दा से क़रीबी सम्बन्ध होने के कारण बहुगुणा जी के प्रति अधिक सम्मान और लगाव रहा।
कल ही महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी जी ने बहुगुणा जी के स्वास्थ्य का हालचाल राजीव जी से जान चिंता जाहिर की थी लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था। उनकी पत्नी विमला देवी हमेशा एक प्रेरणा के रूप में उनके साथ हर आंदोलन में खड़ी रहीं।
विश्व भर के मंचों पर बोलने वाले बहुगुणा जी बहुत ही विनम्र थे। प्रकृति के उपासक सुंदरलाल बहुगुणा ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित किया। इसीलिए उन्हें वृक्षमित्र और हिमालय के रक्षक के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।
टिहरी बांध निर्माण के ख़िलाफ़ उन्होंने लंबा संघर्ष किया और वह कई बार जेल गए। ज़िंदगी की तमाम मुश्किलों को सहते हुए वह अपने कर्तव्य पर डटे रहे और आदर्शों से डिगे नहीं और सादा जीवन जीते रहे। विश्व के अनेकों मंच पर उन्होंने पर्यावरण और इसकी रक्षा में ख़ूब भाषण दिए जो काफी सराहे भी गये।
बहुगुणा जी ने कई अख़बारों के लिए भी लिखा और उनकी कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं जिनमें ‘धरती की पुकार’ काफी प्रसिद्ध हुई। उन्होंने मेधा पाटकर के साथ जहाँ नर्मदा बचाओ आंदोलन में साथ दिया वहीं उनके साथ मिलकर एक पुस्तक भी लिखी। एक बांध के विरोध में लगातार 74 दिनों तक राजघाट पर किया गया अनशन भी एक मिशाल बना और केंद्र सरकार को बहुगुणा जी के सामने झुकना पड़ा।
अपनी राय बतायें