नक्सल प्रभावित इलाक़ों में काम करनेवाले और लगातार उन इलाक़ों का दौरा करनेवाले पत्रकारों पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की वेबिनार में साइबर हुड़दंग हुआ। दस मिनट के भीतर ही वेबिनार रद्द करनी पड़ी।
बार्क के पूर्व प्रमुख पार्थो दासगुप्ता और अर्णब गोस्वामी की वाट्सऐप चैट में मीडिया जगत से जुड़े वरिष्ठ पत्रकारों के बारे में अर्णब क्या राय रखते थे उसका खुलासा भी हुआ है। जानिए अर्णब इनके बारे में क्या सोचते हैं-
अर्णब गोस्वामी के जिस ‘रिपब्लिक भारत’ चैनल पर भारत में नफ़रत और धार्मिक घृणा फैलाने का आरोप लगता रहा है उसी पर ब्रिटेन के प्रसारण नियामक ने भारी जुर्माना लगाया है। वह भी नफ़रत और असहिष्णुता फैलाने के लिए ही।
मोदी राज में व्यक्तिगत आज़ादी पर क्यों मंडरा रहा है ख़तरा? क़ानून वापस नहीं लेने पर अड़ी सरकार बाकी पीएम किसानों के सामने सिर भी झुका रहे हैं! हाथरस मामले में योगी सरकार हुई बेनकाब? देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के साथ। Satya Hindi
सुप्रीम कोर्ट ने सूफ़ी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में अमिश देवगन को राहत देने से इनकार कर दिया है। यानी उन्हें कोर्ट में ट्रायल का सामना करना पड़ेगा।
Satya Hindi News Bulletin। सत्य हिंदी समाचार।तेलंगाना BJP अध्यक्ष: जीतने के बाद हैदराबाद पर सर्जिकल स्ट्राइक। हरियाणा: दिल्ली कूच की तैयारी में लगे किसानों को किया गिरफ्तार
क्या केंद्र सरकार मीडिया पर नकेल कसने की तैयारी कर रही है? क्या वह अब डिजिटल ही नहीं, टेलीविज़न और दूसरे प्रसार माध्यमों के जरिए स्वतंत्र व निष्पक्ष विश्लेषण का हर रास्ता बंद कर देना चाहती है?
दिल्ली हाई कोर्ट ने टेलीविज़न चैनल रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ को निर्देश दिया है कि पूरे बॉलीवुड को आरोपों के कठघरे में खड़े करने वाले ग़ैर-ज़िम्मेदाराना, अपमानजनक या मानहानि करने वाली सामग्री न चलाएं।
आपने अकसर चैनल मालिकों और संपादकों को यह कहते हुए सुना होगा कि रिमोट तो दर्शकों के हाथ में है, पसंद उनकी है, वे चाहें तो कोई चैनल देखें या न देखें। लेकिन क्या यह इतनी सीधी सी बात है? क्या यह सचमुच में दर्शकों के हाथ में है?
ऊपर से देखने से लगता है कि टीआरपी के खेल ने न्यूज़ चैनलों को अराजक और ग़ैर-ज़िम्मेदार बना दिया है। मगर सचाई यह है कि इसमें सरकारों का भी बहुत बड़ा हाथ है। केबल टीवी अधिनियम को ठीक से लागू कराया जाता तो ऐसे हालात नहीं होते।
न्यूज़ चैनलों की ओर से एनबीए अक्सर तर्क देता है कि उसके द्वारा बनाया गया आत्म-नियमन का तंत्र अच्छे से काम कर रहा है। लेकिन क्या सच में ऐसा है यह एक छलावा है? यह छलावा नहीं है तो फिर टीआरपी स्कैम कैसे हो गया?
न्यूज़ चैनलों द्वारा टीआरपी हासिल करने के लिए घटिया हथकंडे आज़माने और कंटेंट के स्तर को गिराने के संबंध में अक्सर यह दलील दी जाती है कि बेचारे चैनल भी क्या करें, उन्हें भी तो खाना-कमाना है। तो क्या उनका बिजनेस मॉडल घटिया है?
टीआरपी स्कैम के बाद न्यूज़ चैनलों की रेटिंग देने वाली एजेंसी बार्क इस समय निशाने पर है। इससे पहले टैम इंडिया रेटिंग देती थी और वह भी ऐसी ही खामियों के लिए निशाने पर आई थी। लेकिन इसके बाद से क्या कुछ बदला है?
मुंबई टीआरपी घोटाले के बाद जब बार्क ने एलान किया कि वह अगले दो से तीन महीने तक न्यूज़ चैनलों की टीआरपी नहीं देगा तो पत्रकारों ने राहत की साँस ली होगी। लेकिन क्या इससे न्यूज़ चैनलों का कंटेंट सुधर जाएगा?
न्यूज़ चैनलों के पतन में केवल टीआरपी ही ज़िम्मेदार नहीं थी या है। टीआरपी की भूमिका बहुत सीमित सी है। टीआरपी बाज़ार का एक प्रभावी अस्त्र ज़रूर है, मगर बाज़ार के पीछे खड़ी पूँजी के उद्देश्य बड़े और विविधतापूर्ण हैं।