नागरिकता क़ानून पर देश भर में हो रहे प्रदर्शन को लेकर 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने ख़बर की है। इसने नरेंद्र मोदी सरकार के हाल के फ़ैसलों का ज़िक्र करते हुए 'प्रदर्शन बढ़ रहे हैं तो क्या हिंदू राष्ट्र बनने के क़रीब पहुँच रहा भारत?' शीर्षक से ख़बर प्रकाशित की है। इसमें अनुच्छेद 370 में बदलाव करने के बाद से जम्मू-कश्मीर में लगी पाबंदी, असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी लागू करने और अब नागरिकता क़ाननू का हवाला दिया गया है।
'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने लिखा है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कश्मीर में हज़ारों मुसलमानों को हिरासत में ले लिया है, इस क्षेत्र की स्वायत्तता को रद्द कर दिया है और पूर्वोत्तर भारत में एक 'नागरिकता परीक्षण' लागू किया है जिसमें लगभग 20 लाख लोग संभावित रूप से राज्यविहीन हो गए हैं, जिनमें से कई मुसलिम हैं।"
इसके साथ ही इसने लिखा कि लेकिन मोदी ने नये नागरिकता क़ानून पर दाँव लगाया जो दक्षिण एशिया में मुसलिमों को छोड़कर सभी धर्मों के पक्ष में है। और यही कारण है कि कई दिनों से बड़े स्तर पर प्रदर्शन हो रहे हैं।
बता दें कि नागरिकता संशोधन क़ानून में 31 दिसंबर 2014 तक देश में आने वाले इसलामिक राष्ट्र पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसमें से मुसलिमों को बाहर रखा गया है। इसी बात को लेकर इसका भारत में भी ज़बरदस्त विरोध हो रहा है। जामिया मिल्लिया इसलामिया, अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों और देश के कई हिस्सों में ज़बरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं।
'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने लिखा है कि हाल में ‘कई आघातों’ के दौरान भारत के मुसलमान अपेक्षाकृत शांत रहे, यह सब जानते हुए कि चुनावी गणित में उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया है। इसने लिखा है कि भारत में क़रीब 80 प्रतिशत हिंदू और 14 प्रतिशत मुसलिम हैं, मोदी और उनकी पार्टी ने मई में एक ज़बरदस्त चुनावी जीत हासिल की और संसद में उसका नियंत्रण है।
उन्होंने यह भी लिखा है कि ‘लेकिन भारतीय मुसलमान तेज़ी से हताश महसूस कर रहे हैं, और ऐसा ही वे लोग भी महसूस कर रहे हैं जो प्रगतिशील हैं और दूसरे धर्मों के कई भारतीय जो एक धर्मनिरपेक्ष सरकार को भारत की पहचान और उसके भविष्य के लिए मौलिक मानते हैं।’
इस रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि पूरी दुनिया इसको देख और परख रही है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिकी प्रतिनिधि, अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों और धार्मिक संगठनों ने तीखा बयान जारी किया है कि नागरिकता क़ानून भेदभावपूर्ण है। कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने तो प्रतिबंध तक की बात की है।
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग यानी यूएससीआईआरएफ़ ने कहा था कि यह विधेयक 'ग़लत दिशा में एक ख़तरनाक मोड़' है। इसके साथ ही इसने यह भी कहा था कि यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा 'धार्मिक आधार' वाले इस विधेयक को पास कर दिया जाता है तो इसके लिए अमित शाह और दूसरे प्रमुख भारतीय नेताओं पर प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जाए।
अमेरिका के विदेश विभाग ने भी कहा था कि संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए भारत अपने देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, ‘आलोचक इस बात से चिंतित हैं कि मोदी भारत को उसकी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक जड़ों से दूर करने और 1.3 अरब लोगों के इस देश को धार्मिक राज्य, हिंदुओं के लिए एक मातृभूमि में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।’
अख़बार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्ण का बयान भी दिया है जिसमें वह कहते हैं, "वे एक धर्मशासित राज्य चाहते हैं, यह देश को अराजकता के कगार पर ला रहा है। यही वह वजह है जिससे देश में सांप्रदायिक हिंसा के ज्वार उठे।"
देश की अर्थव्यवस्था कमज़ोर होने के बावजूद सत्ता पर मोदी की पकड़ अभी भी मज़बूत है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अभी बीजेपी की अपेक्षा काफ़ी कमज़ोर और अव्यवस्थित नज़र आ रही है। मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह के साथ मिलकर बीजेपी को काफ़ी मज़बूत स्थिति में ला खड़ा किया है।
अख़बार ने यह भी लिखा है “एक व्यापक धारणा यह है कि भारत सरकार इन दोनों उपायों- नागरिकता परीक्षण और नए नागरिकता क़ानून - का उपयोग उन मुसलमानों से अधिकार छीनने के लिए करेगी जो पीढ़ियों से भारत में रह रहे हैं। कई मुसलिम भारतीय डरते हैं कि जिस तरह से ऐसा होगा वह यह है कि उन्हें नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक पुराने जन्म प्रमाण पत्र या संपत्ति के कागजात देने के लिए कहा जाएगा और वे ऐसा करने में असमर्थ होंगे। ऐसा लगता है कि जबकि एक ही स्थिति में हिंदू निवासियों को पास दिया जाएगा, मुसलिम निवासियों को समान क़ानूनी सुरक्षा नहीं होगी।”
अपनी राय बतायें