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सूचनाओं के नाम पर एजेंडा चलाता है मेन स्ट्रीम मीडिया?

आज के मेन स्ट्रीम मीडिया को देखकर ऐसा लगता है जैसे ये लोग डर की दुकान खोलना चाहते हैं! राष्ट्रवाद के नाम पर देश को नफ़रत की आग में झोंकना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि इन्होंने आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को ख़राब करने का ठेका ले रखा है। आज दर्शक और नागरिक की परिभाषा क्या होती है; वो मिटाने की कोशिश की जा रही है। लोकतंत्र के मायने क्या होते हैं, राष्ट्रवाद क्या होता है, निष्पक्षता क्या होती है, उनकी लोगों के प्रति, देश के प्रति ज़िम्मेदारी क्या होती है। इन सारे सवालों को मीडिया बहुत पीछे छोड़ चुका है। यही कारण है कि भारतीय मीडिया अपनी विश्वसनीयता को लगातार खोते जा रहा है।

माना जाता है कि मीडिया लोकतंत्र का एक मज़बूत स्तंम्भ होता है, जिसके ऊपर लोकतंत्र बचाने की जिम्मेदारी होती है। लोगों की आवाज को सत्ता तक पहुँचाने का एक जरिया होता है। लेकिन इसके रवैये को देखकर लगता है कि मीडिया सत्ताधारी दलों के एजेंडे को दर्शकों तक पहुँचाने का जरिया बनकर रह गया है। इसमें सिर्फ सत्ता की आवाज़ है, जनता और विपक्ष की आवाज मीडिया में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती।

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आज मीडिया दर्शकों के मन में धर्म को लेकर एक नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश कर रहा है। जहाँ अपने धर्म को बचाने के लिए दूसरे धर्म के लोगों को मारना, उन्हें टार्गेट करना देशद्रोही, पाकिस्तान

समर्थक बताना शामिल है। यह एक भयंकर बर्बादी की दिशा में देश के युवाओं को ले जा रहा है, जो सबको बर्बाद करके मानेगा। आज एक किसान को अपनी गाय बेचनी हो तो व्यापारी उस गाय को खरीदने से डरता है कि कहीं रास्तें में राष्ट्रवाद के नाम पर लोग उसको मार ना दें। ये नया भारत है और कहानी नए भारत की है; जिसकी कल्पना महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरु, सरदार पटेल, वीर सावरकर, दीन दयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुख़र्जी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी नहीं की होगी।

पिछले कुछ सालों में भारतीय मीडिया की कार्यशैली को देखें तो पता चलता है कि इन लोगों ने देश की जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिए खूब काम किया है। 

आज न्यूज़ चैनलों की हेडलाइंस होती है; ‘पाकिस्तान थर-थर काँप गया’, ‘पाकिस्तान झुक गया’, ‘मोदी के ऐलान से पाकिस्तान में मचा हड़कंप’, ‘मोदी ने पाकिस्तान को दी चेतावनी’, ‘अब पाकिस्तान नहीं बचेगा’। ये सबसे बड़ी चिंता की बात है।

लोग ऐसी हेडलाइंस को देखकर सच भी मान लेते हैं। लेकिन वो कभी मीडिया और नेताओं से सवाल नहीं करते कि जरा एक बात बताओ, जब पुलवामा हमला हुआ, हमारे चालीस जवान शहीद हुए, तीन सौ किलो आरडीएक्स लेकर देश के अंदर घुस गया, हमारे देश के अंदर बम ब्लास्ट कर दिया तब तुम्हें यह पता क्यों नहीं चलता कि देश के अंदर क्या हो रहा है, क्या होने वाला है? ना मीडिया को, ना पत्रकारों को, ना नेताओं को? लेकिन ‘पाकिस्तान डर गया’, ‘काँप गया’, ‘मिट जाएगा’, यह सब कहाँ से पता लग जाता है? 

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देश की ख़बर इस मीडिया को मालूम नहीं लेकिन पाकिस्तान में क्या हो रहा है वो मालूम हो जाता है। सलाम है इस मीडिया की महान पत्रकारिता को! हाल ही में एक लेखक ने अपने ब्लॉग में लिखा कि मैं कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि लोगों के पास सोचने, समझने और विचार करने की शक्ति ख़त्म हो चुकी है। जो मीडिया कहता है वही वो सच मान लेते हैं,  यह भारत को बर्बादी की ओर ले जा रहा है।

 

आज करोड़ों युवा बेरोज़गार हैं। उनकी फ़रियाद सुनने वाला कोई नहीं। लेकिन सरकार सिर्फ ये कह दे कि मदरसा बंद करेंगे तो टीवी में घंटों-घंटों डिबेट होने लगती है। सरकार कह दे राफेल ला रहे हैं, तो मीडिया उस राफेल को लेकर महीनों-महीनों तक टीवी डिबेट के जरिए ही पाकिस्तान और चीन को तबाह करते नज़र आता है। विपक्ष इस पर सवाल कर दे तो उन्हें देशद्रोही का तमगा दे दिया जाता है। आखिर कब तक ऐसे टीवी चैनलों पर देश की जनता अपने पैसे ख़र्च करेगी? जिसका हमारे मुद्दों और समस्याओं से कोई मतलब ही नहीं हैं। ये तो वही बात हो गई कि हम अपने देश को बर्बाद करने के लिए अपने पैसे से ही अपने देश में बम की फैक्टरी ख़ड़ी कर रहे हैं। जो एक दिन हमारे देश में ही फ़टेगा और हम सभी को तबाह करेगा।

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आज मीडिया का मुख्य मुद्दा है - धर्म, मंदिर, मसजिद, हलाला, तलाक, फ़तवा, राष्ट्रवाद। इसके लिए हमलोग हर महीने अपने डिश टीवी में दो सौ रुपए का रिचार्ज करवाते हैं। ज़रा सोचिये ऐसे मुद्दों पर हो रही डिबेट्स को देखकर आपके जीवन में क्या बदलाव होने वाला है? इससे आपको क्या मिलेगा? 

सोचिये और समझिये, लोकतंत्र आपका है। पैसे आप ख़र्च करते हैं, दर्शक मत बनिए। नागरिक बनिए। लोकतंत्र में अच्छे नागरिक का होना बहुत ज़रूरी है। मतदाता बनिए, भीड़ मत बनिए। वरना ये राजनीति और कॉर्पोरेट के गुलाम पत्रकार और मीडिया आपको रोबोट बना कर छोड़ेंगे, जहाँ आप अपने मर्जी से न बोल सकते हैं, न ही कुछ कर सकते हैं। 

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दीपक राजसुमन
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