तमाम देशों में गए भारतीय अपनी मेहनत और कौशल से देश का नाम रौशन करते रहते हैं, लेकिन इस समय भारत और भारतीयों की चर्चा भ्रष्टाचार के मामलों की वजह से हो रही है। चाहे वो दक्षिण अफ्रीका हो या अमेरिका की सिलिकॉन वैली, इस वक्त सहारनपुर के गुप्ता बंधु और सिंधी परिवार के रमेश बलवानी की चर्चा हर जुबान पर है।
सहारनपुर के गुप्ता बंधुओं ने कभी अपने परिवार की सबसे महंगी शादी करके भारतीय मीडिया में सुर्खियां बटोरी थीं। भारतीय मीडिया ने उनकी सफलता की कहानियां गढ़ीं और परोस दीं। अब जब जांच रिपोर्ट आई है तो गुप्ता बंधुओं की सफलता की गढ़ी गई कहानियां फीकी पड़ गई हैं। रमेश बलवानी इस समय अमेरिकी मीडिया में विलेन बनकर छाए हुए हैं। बलवानी पाकिस्तान में पैदा हुए थे, उजड़ कर भारत आए, अमेरिका चले गए। विदेशी महिला से दोस्ती की और कंपनी खड़ी कर दी। लेकिन अब बड़े आरोपों में फंस गए हैं।
तमाम कारोबारी पुराधाओं की कहानियां जब आप सुनें या पढ़ें तो यह जरूर गौर करें कि उनके सच के पीछे कितना कुछ झूठ छिपा होगा। उनके वार्डरोब के कपड़ों से उनकी नैतिकता कभी मत तौलिए।
गुप्ता बंधुओं के जाल में फंसे जैकब जुमा
दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा का बड़ा नाम था। उन्होंने रंगभेद के खिलाफ चले आंदोलन में हिस्सा लिया था। संघर्षों ने उन्हें साफ-सुथरी छवि के साथ बड़ा किया था। जब वो दक्षिण अफ्रीका के चौथे राष्ट्रपति बने तो उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। उसकी जांच के लिए कमेटी बैठी। अब उस जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया है।
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जांच रिपोर्ट के अनुसार, जैकब जुमा ने भारतीय मूल के गुप्ता भाइयों के साथ, जिनका उन पर "काफी" प्रभाव था, ने सार्वजनिक धन की भारी मात्रा में हेराफेरी की, जिसमें अब खत्म हो चुके द न्यू एज अख़बार को आगे बढ़ाने के लिए दिए गए लाखों रुपये शामिल थे। राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने मंगलवार को आयोग के अध्यक्ष, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रेमंड ज़ोंडो से दक्षिण अफ्रीकी जांच आयोग की रिपोर्ट के तीन भागों में से पहला भाग प्राप्त किया। कमेटी ने 2009 से 2018 तक जुमा के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के मामलों की जांच की है।
द न्यू एज (TNA) अखबार की शुरुआत तीन गुप्ता भाइयों - अजय, अतुल और राजेश (टोनी) ने की थी - जो उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर से दक्षिण अफ्रीका चले गए थे। इसी अखबार के जरिए गुप्ता बंधु जैकब जुमा के करीब आए थे। हुआ यह था कि जब जुमा विपक्ष के नेता थे तो टीएनए अखबार ने उनकी खबरों को प्रमुखता देना शुरू किया। उस समय टीएनए लोकप्रिय अखबारों में शामिल हो गया। जुमा जब राष्ट्रपति बने, तब गुप्ता बंधुओं का असली खेल शुरू हुआ। सारी पत्रकारिता और अखबार को भूल कर वो जुमा की सरकार को साधने में लग गए। जुमा की सरकार की वजह से गुप्ता बंधुओं का वर्चस्व साउथ अफ्रीका की सरकार में बढ़ता चला गया। उनके इशारे पर सरकारी अफसर रखे जाते और निकाले जाते थे।
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तीनों किसी देश में छिपे हैं। कभी दुबई तो कभी लंदन का जिक्र इस सिलसिले में आता है। अधिकारियों ने उनकी तलाश की है। लोकेशन मिलते ही भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने के लिए उनका प्रत्यर्पण होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि गुप्ता बंधुओं ने जैकब जुमा पर बहुत प्रभावित किया हुआ था।देश से भागने से पहले साउथ अफ्रीका की सरकारी कंपनियों से उन्होंने अरबों रुपये की लूट की थी।
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जुमा ने मसेको की जगह फैसिलिटेटर के रूप में मज़्वानेले मन्नी को नियुक्त किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि जीसीआईएस के महानिदेशक के रूप में मन्नी के कार्यकाल के दौरान, " गुप्ता बंधुओं के अखबार टीएनए पर लाखों रैंड खर्च किए गए थे, ऐसी परिस्थितियों में जब देश में टीएनए अखबार को पढ़ने वाला कोई नहीं था।
आयोग ने यह भी पाया कि एसओई में बोर्ड के कुछ सदस्य सहित वरिष्ठ अधिकारी, अनुबंधों के माध्यम से टीएनए को बड़ी मात्रा में धन के अनियमित हस्तांतरण में शामिल थे, जिन्हें संसद और पब्लिक प्रोटेक्टर जैसे वॉचडॉग को सौदों के मूल्य को गलत तरीके से पेश करने के लिए समायोजित किया गया था।
आयोग ने कहा कि सार्वजनिक वित्त प्रबंधन अधिनियम (पीएफएमए) ने स्पष्ट रूप से और निश्चित रूप से प्रत्येक टीएनए अनुबंध को गैरकानूनी बना दिया है। आयोग ने सिफारिश की कि ब्रायन मोलेफ की भूमिका (राष्ट्रीय रेल परिवहन प्रदाता ट्रांसनेट के पूर्व अध्यक्ष कोलिन मटजीला और राष्ट्रीय बिजली आपूर्तिकर्ता एस्कॉम के पूर्व अध्यक्ष) की टीएनए के साथ अनुबंधों की राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण द्वारा जांच की जानी चाहिए। दक्षिण अफ्रीकी एयरवेज बोर्ड के पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष वुइसाइल कोना की गवाही के आधार पर टोनी गुप्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार के संभावित मामले की जांच करनी चाहिए। कोना ने आयोग को बताया था कि टोनी ने उन्हें शुरू में अक्टूबर 2012 में करोड़ों डॉलर की पेशकश की थी। रिश्वत लेने से इनकार करने के बाद कोना को उनकी नौकरी से निकाल दिया गया था।
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रमेश बलवानी की कहानी
1965 में एक सिंधी परिवार में पैदा हुए रमेश बलवानी देश के बंटवारे के बाद भारत चले आए। लेकिन भारत से 1986 में वो अमेरिका चले गए। वहां से उन्होंने पढ़ाई की और वहां पाकिस्तान स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े रहे। उनके तमाम पाकिस्तानी दोस्त वहां पढ़ रहे थे। वक्त बीतता गया। 36 साल के बलवानी जब यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया, बर्कले में पढ़ रहे थे तो उनकी 18 साल की एलिजाबेथ ऐनी होम्स से मुलाकात हुई।
छोटे-मोटे संघर्षों, साफ्टवेयर डेवलेपमेंट के क्षेत्र में ठीकठाक कमाई के बाद रमेश बलवानी और होम्स ने 2009 में थेरानोस कंपनी खड़ी की। बलवानी उसके अध्यक्ष बने। 2018 में अमेरिकी जांच एजेंसियों ने बलवानी और होम्स को भ्रष्टाचार के आरोपों में लिप्त पाया। इन पर आरोप लगा कि इन्होंने कंपनी की तकनीक के बारे में, कारोबार के बारे में झूठ बोलकर निवेशकों से 700 मिलियन डॉलर (52,06,42,50,000 रुपये) जमा कर लिए।
आरोप है कि बलवानी एक जापानी महिला से विवाहित थे लेकिन थेरानोस कंपनी में उनके और होम्स के भी संबंध बन गए। निवेशकों से यह बात छिपा ली गई। दरअसल, दोनों के संबंध 2002 से ही चल रहे थे, जब होम्स कम उम्र की थीं।
एलिजाबेथ होम्स और बलवानी पर चल रहे भ्रष्टाचार को सिलिकॉन वैली का शताब्दी का भ्रष्टाचार का केस बताया गया है। वहां का मीडिया इसे लगातार रिपोर्ट कर रहा है।
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