निज़ाम बदलते ही फ़रमान बदलने लगे! क्या अब भीमा कोरेगाँव मामले में आरोपी बनाए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं से केस वापस लिए जाएँगे? यह सवाल इसलिए कि गठबंधन सरकार में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी के नेताओं ने इसके लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा है। पत्र लिखने वालों में वरिष्ठ एनसीपी नेता और पंकजा मुंडे के चचेरे भाई धनंजय मुंडे भी शामिल हैं। इस बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी इस पर सकारात्मक संदेश दिया है। उन्होंने तो दावा किया है, ‘पूर्व की सरकार ने ही भीमा कोरेगाँव से जुड़े केसों को वापस लेने का आदेश दे दिया था। पहले हम यह देख रहे हैं कि कहीं इस पर अमल तो नहीं कर दिया गया है।’ ऐसे में मुख्यमंत्री की मानें तो इन केसों का वापस लिया जाना तय है।
महाराष्ट्र की राजनीति में फ़रमान बदलने की यह बात अब आम चर्चा का विषय बन गयी है। पिछली सरकार के आर्थिक निर्णयों की बात हो या फिर उसकी योजनाएँ या प्रोजेक्ट हों, सबको लेकर समीक्षा और सुझाव कार्य तेज़ी से चल रहा है। इन सबके बीच एक बड़ी बात यह है कि विगत कुछ सालों में पिछली सरकार में विभिन्न मुद्दों को लेकर जिन लोगों ने आंदोलन किए थे, अब यह सरकार उनके आपराधिक मामले ख़त्म करने के आदेश दे रही है। इस संदर्भ में एनसीपी विधायक धनंजय मुंडे ने भीमा कोरेगाँव प्रकरण में सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों के ख़िलाफ़ दर्ज मामले वापस लिए जाने की माँग की है।
मुंडे ने इस आशय का पत्र मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखा है। धनंजय मुंडे ने अपने पत्र में लिखा कि 'पिछली सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों व विचारकों के ख़िलाफ़ छल पूर्वक भीमा कोरेगाँव प्रकरण में आपराधिक मामले दर्ज किये हैं। सरकार ने इन लोगों को नक्सलवादी बताते हुए मुक़दमे दर्ज किए।’ मुंडे ने कहा कि दरअसल पिछली सरकार ने उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले कार्यकर्ताओं को किसी भी तरह से परेशान करने का काम किया था। उन्होंने कहा कि 1 जनवरी 2018 को हुए भीमा कोरेगाँव प्रकरण में भी ऐसा ही किया गया। बहुत से सामाजिक कार्यकर्ता आज जेल में हैं जबकि कुछ अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। एनसीपी के विधायक प्रकाश गजभिए ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर भीमा कोरेगाँव हिंसा में दलितों के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों को वापस लेने की माँग की है।
बता दें कि इस प्रकरण के बाद महाराष्ट्र पुलिस और केंद्र सरकार ने 'अर्बन नक्सल' का नेटवर्क उजागर करने की बात कही थी। इसके चलते कुछ वकीलों, पत्रकारों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए गए और उन्हें गिरफ़्तार करने की कोशिश की गई। महाराष्ट्र पुलिस घटना के बाद से अब तक दिल्ली के पत्रकार गौतम नवलखा को गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है लेकिन बार-बार उन्हें अदालत में मुंह की खानी पड़ रही है। सुप्रीम कोर्ट, मुंबई हाई कोर्ट ने गौतम नवलखा को गिरफ्तार करने की इजाज़त महाराष्ट्र पुलिस को नहीं दी है।
अर्बन नक्सल प्रकरण में महाराष्ट्र पुलिस को अदालत ने सही सबूत नहीं पेश किये जाने पर कई बार फटकार भी लगायी है। अर्बन नक्सल प्रकरण को लेकर केंद्र और राज्य सरकार पर एक एजेंडा चलाने के आरोप लगते रहे हैं।
विभिन्न संगठनों द्वारा कहा गया है कि सरकार एक विचारधारा विशेष के लोगों को निशाने पर ले रही है जो उसकी नीतियों और विचारों से सहमति नहीं रखते।
अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मांग पर क्या निर्णय करते हैं। वैसे पिछले कई दिनों में ठाकरे ने दो महत्वपूर्ण निर्णय किए हैं।
ठाकरे ने पहले के कई फ़ैसले बदले
मुंबई में आरे इलाक़े के पेड़ों को काटने का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं या आम लोगों के ख़िलाफ़ विभिन्न धाराओं में दर्ज मुक़दमे को उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के बाद हटाने के आदेश दिए हैं। शिवसेना ख़ुद इन पेड़ों की कटाई के विरोध में थी। लिहाज़ा राज्य सरकार ने यह भी आदेश दे दिए कि यहाँ बनाये जाने वाले मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट की जब तक समीक्षा नहीं हो जाए काम स्थगित रखा जाए और पेड़ों को काटने का सिलसिला बंद किया जाए। यही नहीं, कोंकण क्षेत्र में नाणार रिफ़ाइनरी लगाने का शिवसेना विरोध करती रही है।
पिछली सरकार ने इस रिफ़ाइनरी के ख़िलाफ़ आंदोलन करने वाले सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज किए थे। इन लोगों के ख़िलाफ़ भी सरकार ने मुक़दमे हटाने के आदेश दिए हैं।
इन सामाजिक मुद्दों के अलावा आर्थिक मामलों में भी फ़रमान बदले जा रहे हैं। ठाकरे सरकार ने गुजरात की एक इवेंट कंपनी लल्लू जी एन्ड संस का 321 करोड़ का ठेका रद्द करने के आदेश दिए हैं। इस कंपनी के साथ महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामंडल ने एक क़रार 26 दिसंबर 2017 में किया था। कंपनी को नंदुरबार के समीप सारंगखेड़ा चेतक महोत्सव का व्यवस्थापन का काम दिया गया था। चेतक महोत्सव घोड़ों का मेला और प्रदर्शनी जैसा आयोजन है जो साल 2016 से आयोजित किया जा रहा है। बताया जाता है कि अहमदाबाद की इस कंपनी को ठेका देते समय केंद्र सरकार द्वारा तय किए गए पैमानों की भी अनदेखी की गयी है तथा कई अन्य आर्थिक अनियमितताएँ भी पायी गयी हैं।
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