महाराष्ट्र में शिवसेना -कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस की सरकार मुसलमानों को सरकारी स्कूल-कॉलेजों में प्रवेश के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कह रही है। क्या वाकई उसकी यह मंशा है और क्या वह वाकई ऐसा कर पाएगी? या पहले की तरह इस बार भी यह सिर्फ घोषणा बन कर रह जाएगी?
यह घोषणा साल 2014 में चुनाव से पूर्व कांग्रेस -राष्ट्रवादी कांग्रेस की सरकार ने भी की थी। यही नहीं, पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली कांग्रेस -राष्ट्रवादी कांग्रेस सरकार ने मराठा समाज के लोगों को भी 16% आरक्षण देने की घोषणा की थी। बाद में यह मामला अदालत में पहुँच गया और उसके प्रारूप को लेकर रोक लग गयी थी।
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बाद में इस आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने के लिए बाद में हाईकोर्ट ने मंजूरी दे दी थी। लेकिन देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की और सिर्फ यह कहा था कि वह इस आरक्षण को लागू करने के पक्ष में है।
न्यूनतम साझा कार्यक्रम?
अब प्रदेश में एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर सरकार बनी तो उसमें इस बात का उल्लेख किया गया था कि आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलिम समाज के लोगों को विद्यालयों में प्रवेश के लिए 5% आरक्षण का जो प्रस्ताव पृथ्वीराज चव्हाण सरकार का था उसे लागू किया जाएगा।प्रदेश में विधानसभा का अधिवेशन चल रहा है और विधायक शरद रणपिसे ने जब इस आरक्षण को लागू करने को लेकर सवाल पूछा तो अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नवाब मलिक ने जवाब दिया कि इस बारे में शीघ्र ही अध्यादेश निकाला जाएगा। उन्होंने कहा कि जो दिशा निर्देश हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए हैं उसके आधार पर विधेयक बनाया जाएगा।
नवाब मलिक ने कहा कि मुसलिम और मराठा समाज को आरक्षण की घोषणा हमारी पिछली सरकार के कार्यकाल में किया गया था। लेकिन देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने जितनी तत्परता मराठा आरक्षण को लागू कराने में दिखाई थी, उतनी मुसलिम आरक्षण को लेकर नहीं दिखाई।
सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी जो पिछले तीन महीनों से बार -बार हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर शिवसेना को घेरती रही है, इस मुद्दे पर भी घेरेगी?
वैसे इस आरक्षण के प्रावधान को लेकर अभी तक बीजेपी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है और उसका कारण यह भी हो सकता है कि फडणवीस सरकार ने भी इसे लागू करने की बात मानी थी, लेकिन लागू नहीं किया था।
एनपीआर होगा खारिज?
ओबीसी जनगणना मुसलिम आरक्षण के अलावा एक और चर्चा अब ज़ोर पकड़ रही है कि क्या महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार भी बिहार की नीतीश कुमार सरकार की तरह केंद्र सरकार के नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को नकारने वाली है।शुक्रवार को विधानसभा में मंत्री छगन भुजबल ने विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले को एक ज्ञापन देकर ओबीसी समाज की पृथक जनगणना कराने की माँग की है। इस माँग पर विधानसभा अध्यक्ष पटोले ने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री से कहा है कि वे तय करें।
जाति जनगणना
ओबीसी समाज की पृथक जनगणना का मुद्दा साल 1990 में उठा था। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब उन्होंने यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था।भुजबल ने कहा कि देश में करीब 54% ओबीसी की जनसंख्या है और महाराष्ट्र को इस बारे में पहल कर देश के सामने आदर्श स्थापित करना चाहिए। भुजबल का यह दाँव जाति के आधार पर जनगणना कराने की दिशा में है।
इस दाँव से उद्धव ठाकरे सरकार एनपीआर को लेकर अपनी दुविधा से बाहर भी निकल सकती है। वैसे भुजबल के इस दाँव के आगे बीजेपी भी चित नजर आयी। विरोधी पक्ष नेता फडणवीस ने कहा कि उनकी पार्टी को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है।
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