महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों इस बात की चर्चा काफी गर्म है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों विपक्ष के प्रमुख चेहरे शरद पवार और उद्धव ठाकरे को एनडीए में आने की सलाह क्यों दे दी थी। पीएम ने सलाह दी थी कि एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के प्रमुख शरद पवार को अजित पवार की एनसीपी और शिवसेना(यूबीटी ) के प्रमुख उद्धव ठाकरे को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में अपनी पार्टी का विलय कर एनडीए का हिस्सा बन जाना चाहिए।
इसको लेकर तरह-तरह की अटकले लगाई जा रही हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजित पवार को अपनी तरफ मिलाने के बाद भी मजबूत नहीं कर पाई है। उसे इस बात का भी एहसास है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे को चुनाव में जनता की सहानुभूति मिल सकती है।
पार्टी में विभाजन के बाद भी ये दोनों नेता आज भी काफी ताकतवर माने जाते हैं। भाजपा को लगता है कि अगर ये एनडीए में आ जाए तो महाराष्ट्र में उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है। प्रधानमंत्री ने इन नेताओं को ऐसा प्रस्ताव क्यों दिया इसको लेकर अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों ने क्रमशः अजित पवार वाली एनसीपी और शिंदे की शिवसेना के साथ अपनी पार्टियों का विलय करने की पीएम की सलाह को खारिज कर दिया है। महा विकास अघाड़ी या एमवीए खेमे ने पीएम की इस सलाह को जमीन खोने पर बीजेपी की 'घबराहट' बताया है।
राज्य में अपने चुनाव अभियान के दौरान पीएम ने इन नेताओं पर ये टिप्पणी की थी और एनडीए में आने की सलाह दे डाली थी। उन्होंने ऐसा तब कहा था जब द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में शरद पवार ने बयान दिया था कि अगले कुछ वर्षों में, कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस के करीब आ जाएंगे, या इसमें विलय भी कर लेंगे।
शरद पवार के इस बयान का जिक्र करते हुए, मोदी ने पिछले शुक्रवार को नंदुरबार में एक रैली को संबोधित करते हुए उनकी पार्टी को "नकली एनसीपी" और उद्धव की पार्टी को "नकली शिवसेना" कहा था। उन्होंने कहा था कि, कांग्रेस में विलय करने और चार दिन बाद मरने के बजाय, गर्व के साथ अजित पवार और एकनाथ शिंदे से हाथ मिला लें, आपके सभी सपने पूरे होंगे।
इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट कहती है कि कांग्रेस के साथ ही एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) दोनों विपक्षी इंडिया ब्लॉक के प्रमुख घटक हैं। महाराष्ट्र में, तीनों दल महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के हिस्से के रूप में एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। जिसमें भाजपा, एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना और अजित पवार वाली एनसीपी के सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन का मुकाबला है।
राज्य की 48 सीटों में से, शिवसेना (यूबीटी) 21 सीटों पर, कांग्रेस 17 और एनसीपी (एसपी) 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। महायुति खेमे में, भाजपा 28 सीटों पर, शिंदे वाली शिवसेना 15 और अजीत पवार वाली एनसीपी चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं एक सीट राष्ट्रीय समाज पार्टी को आवंटित की गई।
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पीएम के हर बयान के पीछे होते हैं निश्चित कारण
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि पीएम की टिप्पणी पर टिप्पणी करते हुए, भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि “मोदी ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो आकस्मिक टिप्पणी करते हैं। उनका हर बयान सोच-समझकर और निश्चित कारणों के साथ दिया गया होता है।राज्य भाजपा के कुछ अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि मोदी का पवार और उद्धव को एनडीए में शामिल होने का निमंत्रण उनकी पार्टी के उन कार्यकर्ताओं के बीच भ्रम पैदा करने की एक राजनीतिक रणनीति है जो उनके प्रति वफादार रहते हैं।
हालांकि,महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़नवीस कहते हैं कि विलय पर पीएम मोदी के बयान की गलत व्याख्या नहीं की जानी चाहिए। यह कोई ऑफर नहीं बल्कि सिर्फ एक सलाह है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों डूबती नाव में हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें अभूतपूर्व हार का सामना करना पड़ेगा।
वहीं प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चन्द्रशेखर बावनकुले का मानना है कि पीएम मोदी का बयान शरद पवार की उस टिप्पणी के जवाब में था जिसमें उन्होंने कहा था कि सभी क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस में विलय करेंगी। इस पर ही पीएम ने कहा कि 'कांग्रेस क्यों? इसके बजाय, अपनी असली एनसीपी और शिवसेना में लौट आएं।
बावनकुले यह भी कहते हैं कि भाजपा हमेशा विस्तार में विश्वास करती है। तो, अगर कोई मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए हमारे साथ जुड़ना चाहता है, तो दरवाजा बंद करने का कोई कारण नहीं है।
महाराष्ट्र में पांच चरणों में चुनाव होने हैं, पहले दो चरणों में विदर्भ क्षेत्र शामिल था जिसमें मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई देखी जा रही है। मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र, उत्तरी महाराष्ट्र और कोंकण सहित क्षेत्रों में बाद के चरणों में एनडीए को शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से भी मुकाबला करना पड़ेगा।
मोदी की सलाह को खारिज करते हुए, पवार ने कहा था कि वह कभी भी नेहरू-गांधी विचारधारा को नहीं छोड़ेंगे और न ही कभी मुस्लिम विरोधी रुख अपनाने वालों से हाथ मिलाएंगे।
उद्धव की शिवसेना ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि मोदी की टिप्पणियां भाजपा की घबराहट को दर्शाती हैं। उद्धव ठाकरे ने कहा है कि अब उन्हें (बीजेपी को) ठाकरे और पवार की कीमत का एहसास हो गया है।
उन्होंने कहा कि लोग उनकी तानाशाही वाली राजनीति, पार्टियों को तोड़ने की उनकी राजनीति को नापसंद करते हैं। हमारी पार्टी की ताकत मोदी को मुंबई में रोड शो करने के लिए मजबूर कर रही है।
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संजय राउत का दावा बैकफुट पर है बीजेपी
शिवसेना (यूबीटी ) नेता संजय राउत ने दावा किया है कि बीजेपी बैकफुट पर है। नहीं तो जिस व्यक्ति ने शिवसेना (यूबीटी ) और शरद पवार वाली एनसीपी को नकली कहकर खारिज कर दिया, वह उसके साथ क्यों जुड़ना चाहेगा?कांग्रेस ने भी अपने इन सहयोगियों के विचारों को दोहराया है। कांग्रेस ने कहा है कि पीएम मोदी की टिप्पणियां भाजपा के इस अहसास को दर्शाती हैं कि वह अपनी कांग्रेस मुक्त भारत परियोजना को कभी हासिल नहीं कर पाएगी।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने दावा किया है कि भाजपा को एहसास हो गया है कि वह लोकसभा चुनाव हार रही है। अब उसे बहुमत हासिल करने का भरोसा नहीं रह गया है। इसलिए, इसने छोटी पार्टियों तक पहुंच बनाना शुरू कर दिया है।
पिछले कुछ वर्षों में, महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर हुआ है, जिससे मौजूदा लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए एक जटिल चुनौती पैदा हो गई है। यह स्थिति तब है जब इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती अपने चुनाव प्रचार में, पवार और उद्धव दोनों पीएम मोदी के खिलाफ तीखे हमले करते रहे हैं। इन दोनों का आरोप है कि उनके "निरंकुश शासन" ने भारत के संविधान और लोकतंत्र के लिए "खतरा" पैदा किया है।
महाराष्ट्र में अपनी हर रैली में मोदी भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे पर हमला बोलते रहे हैं। शरद पवार पर एक कटाक्ष करते हुए मोदी ने कहा था कि , जब शरद पवार अपने परिवार को नहीं संभाल सकते, तो वह महाराष्ट्र को कैसे संभालेंगे।
कुछ भाजपा नेताओं का मानना है कि पीएम मोदी ने एनडीए में शामिल होने का "नरम इशारा" करके शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति जनता की सहानुभूति को बेअसर करने" की कोशिश थी।
भाजपा विधानसभा चुनावों के लिए भी तैयारी कर रही है, जो पार्टी के लिए एक कठिन चुनौती हो सकती है।
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