महाराष्ट्र में इतिहास के पन्नों से एक और विवाद निकलकर बाहर आ रहा है और अब इसको लेकर दो पक्ष आमने-सामने खड़े हैं। यह विवाद पैदा हुआ है शिरडी के साईं बाबा के जन्म स्थान को लेकर। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 9 जनवरी को औरंगाबाद जिले के अपने दौरे के दौरान पाथरी गांव जिसे वहां के लोग साईं बाबा की जन्म स्थली के रूप में मानते हैं, इसके विकास के लिए 100 करोड़ रुपये की योजना घोषित की थी। इस घोषणा के बाद शिरडी में हलचल तेज़ हो गयी और योजना का विरोध होने लगा। क्योंकि कुछ श्रद्धालु पाथरी को साईं बाबा का जन्मस्थान मानते हैं जबकि शिरडी के लोगों का दावा है कि साईं बाबा का जन्मस्थान अज्ञात है। जन्म स्थान के इस विवाद को लेकर अब राजनीति गरमाने लगी है।
रविवार से शिरडी में अनिश्चितकालीन बंद की घोषणा की गयी है और यह पहली बार होगा जब यह शहर अनिश्चितकाल के लिए बंद रहेगा। हालांकि इस दौरान मंदिर खुला रहेगा। शिरडी में साईं बाबा ने अपना जीवन गुजारा और यहीं पर उन्होंने समाधि ली। वर्तमान में उनका जो मंदिर है उसे समाधि मंदिर के रूप में भी सम्बोधित किया जाता है। साईं बाबा की विशाल प्रतिमा के समक्ष ही समाधि भी है जिसकी भी पूजा-अर्चना की जाती है।
शिरडी में हर दिन औसतन एक लाख श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं और उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं हो, इसलिए इस बंद की घोषणा पहले ही कर दी गयी थी। तिरुपति के बालाजी मंदिर के बाद शिरडी का साईं मंदिर देश का दूसरे नंबर का मंदिर है जहां सबसे ज़्यादा दान भक्तों द्वारा किया जाता है। यहाँ पर भक्तों द्वारा औसतन प्रतिदिन 2 से 3 करोड़ रुपये दान दिया जाता है और मंदिर संस्थान द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, श्रद्धालुओं के रहने व प्रसादालय जैसी निःशुल्क सेवा पर यह दान की राशि खर्च भी की जाती है।
‘कानूनी लड़ाई’ की दी चेतावनी
अहमदनगर से बीजेपी विधायक सुजय विखे पाटिल ने चेतावनी दी है कि इस मुद्दे पर शिरडी निवासी ‘कानूनी लड़ाई’ भी शुरू कर सकते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान सरकार में मंत्री अशोक चव्हाण ने अपील की है कि जन्मस्थली के विवाद के चलते पाथरी में श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं के निर्माण का विरोध नहीं होना चाहिए। इस मामले में एनसीपी नेता अब्दुल्ला खान दुर्रानी ने दावा किया है कि साईं बाबा की जन्मस्थली पाथरी होने के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। दुर्रानी ने ‘जन्मभूमि’ व ‘कर्मभूमि’, दोनों की अपनी-अपनी अहमियत होने की बात कही है। उन्होंने आरोप लगाया कि शिरडी के लोग अपनी कमाई बंटने के डर से इस योजना का विरोध कर रहे हैं।
साईं बाबा के जन्म स्थान का विवाद नया नहीं है। लेकिन जिस तरह से इसे लेकर राजनीति गरमा रही है उससे यह आशंका हो रही है कि श्रद्धा, सबूरी और मानवता का संदेश देने वाले साईं बाबा के अनुयायी भेदभाव या सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़कर इसे नया रंग न दे दें।
शिरडी के लोग, नगरपालिका के अध्यक्ष तथा अन्य पार्टियों के नेता अब उद्धव ठाकरे से मिलकर उन्हें भी यह समझाने का प्रयास करेंगे कि पाथरी गांव में साईं बाबा का जन्म हुआ है, इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। उनका कहना है कि साईं बाबा के बारे में जो भी अधिकृत जानकारी है वह 'साईं सद्चरित्र' नामक पुस्तक में दी गयी है और उसमें उनके जन्म स्थान, धर्म-जाति के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
साईं बाबा ने अपने जीवन में ग़रीबों व मरीजों की सेवा की थी और मानवता का संदेश दिया था। साईं बाबा जिंदगी भर फ़कीर की वेशभूषा में रहे और उन्होंने कभी धर्म की बात नहीं की। लेकिन आज कुछ लोग उन पर धर्म विशेष का सिक्का लगाना चाह रहे हैं।
पाथरी के लोग भी हो रहे एकजुट
शिरडी के लोगों का कहना है कि सरकार पाथरी गांव के विकास के लिए कितना भी पैसा खर्च करे लेकिन वह उस गांव पर यह पैसा साईं जन्मभूमि के नाम पर नहीं खर्च करे। शिरडी से करीब 275 किलोमीटर दूर मराठवाड़ा क्षेत्र के परभणी जिले के पाथरी गांव के लोग भी अब शिरडी में उठे विरोध के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे हैं। उनका कहना है कि पाथरी में इस बात के बहुत से प्रमाण हैं कि साईं बाबा का जन्म यहीं हुआ था।
पाथरी के क्षेत्रीय विधायक बाबाजानी उर्फ़ अब्दुल्ला खान दुर्रानी के नेतृत्व में गांव के लोगों की कृति समिति बनायी गयी है। इस समिति में शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी के साथ-साथ सभी दल के पदाधिकारी शामिल हैं। साईं बाबा के जन्म के वर्ष को लेकर भी दो बातें कही जाती रही हैं। कुछ लोग उनका जन्म 28 सितम्बर, 1835 बताते हैं तो कुछ 27 सितम्बर, 1838। साईं बाबा के बारे में जो सामान्य बातें बतायी जाती रही हैं, वे यह हैं कि साईं बाबा को 1852 में पहली बार शिरडी में देखा गया। वह वहां से चले गए थे और चार साल बाद लौटे। ज्यादातर जगह पर लिखा है कि साईं बाबा 1854 में पहली बार शिरडी में देखे गए, तब वह किशोर अवस्था के थे। यदि उनकी उम्र उस वक्त 16 वर्ष थी तो इस हिसाब से 1838 में उनका जन्म हुआ होगा।
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