2014 में दी थी तरज़ीह
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सहयोगी दलों को काफ़ी तरज़ीह दी थी और उनके लिए 4 सीटें भी छोड़ी थीं। लेकिन इस बार सहयोगी दलों के नेता अपनी उपेक्षा का ज़िक्र कर रहे हैं। आरपीआई के नेता रामदास अठावले ने तो इस उपेक्षा को दलित मुद्दे से जोड़ दिया है। अठावले ने यहाँ तक कह दिया कि उनकी पार्टी के लिए सीट नहीं छोड़ना दलितों का अपमान है।
क्या पाला बदलेंगे अठावले?
उल्लेखनीय है कि अठावले मुंबई की दक्षिण मध्य लोकसभा सीट पर एक साल से दावा कर रहे थे लेकिन यह सीट शिवसेना के खाते में है, लिहाजा उनकी मुश्किलें बढ़ गयी हैं। अब अठावले परेशान हैं कि क्या करें? उल्लेखनीय है कि अठावले पूर्व में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से ही गठबंधन करते रहे हैं लेकिन 2014 में वह बीजेपी के क़रीब आए। अब ऐसे में ये अटकलें भी शुरू हो गई हैं कि क्या अठावले चुनाव पूर्व पाला बदल सकते हैं?
- सहयोगी दलों के नेताओं का कहना है कि जब पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था, उस समय वे बीजेपी के लिए काफ़ी मददगार साबित हुए थे। बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में स्वाभिमानी शेतकरी संगठन को 11, राष्ट्रीय समाज पक्ष को 6 और आरपीआई (अठावले) को 5 सीटें दी थी।
लोकसभा चुनाव के लिए हुए सीटों के बँटवारे में हिस्सेदारी नहीं मिलने के बाद अब इन दलों के नेताओं ने विधानसभा चुनाव के लिए सीटों की माँग शुरू कर दी है। ये पार्टियाँ भविष्य की रणनीति तय करने पर भी विचार कर रही हैं।
पहले से ज़्यादा सीटें माँग रहे सहयोगी
जानकारी के अनुसार, अठावले की आरपीआई विधानसभा चुनाव के लिए 18 सीटें देने की बात कर रही है। महादेव जानकर की राष्ट्रीय समाज पक्ष पार्टी 8 सीटें देने की बात कर रही है। शिव संग्राम संगठन अब स्वतंत्र रूप से 2 सीटें माँग रही है। सदाभाऊ खोत 2 सीटें माँग रहे हैं।
सदाभाऊ खोत, रामदास अठावले और महादेव जानकर अपने लिए लोकसभा की सीटों के लिए भी जद्दोजहद कर रहे हैं लेकिन वर्तमान घटनाक्रम को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे सफल नहीं हो पाएँगे।
कांग्रेस-एनसीपी साध रहे संपर्क
ये भी ख़बरें आ रही हैं कि बीजेपी के इन सहयोगी पक्षों से कांग्रेस और एनसीपी के नेता भी संपर्क में हैं। कांग्रेस-एनसीपी ने अपने गठबंधन में 8 सीटें मित्र पक्षों के लिए छोड़ी हैं। कांग्रेस के नेता राजू शेट्टी से संपर्क में हैं और उनके साथ गठबंधन की बात क़रीब-क़रीब तय भी हो चुकी है।
बीजेपी के इन सहयोगी दलों की बैचेनी बढ़ने का कारण राजनीति के गलियारों में चल रही वह चर्चा है जिसमें कहा जा रहा है कि बीजेपी-शिवसेना ने विधानसभा चुनाव में सहयोगी दलों के लिए सिर्फ़ 8 सीटें छोड़ने पर विचार किया है।
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