शिवसेना के मुखपत्र सामना में ‘ऑपरेशन लोटस’ को लेकर बीजेपी पर जोरदार वार किया गया है। सामना में ‘ऑपरेशन लोटस’ की तुलना आतंकवादी संगठन अलकायदा से की गई है और कहा गया है कि सरकारें चुनकर लाने के बजाय विरोधियों की सरकारों को गिराना, पार्टी तोड़ने की वजह से विष्णु का पसंदीदा फूल ‘कमल’ बदनाम हो गया है और ऑपरेशन लोटस अर्थात ‘कमल’ अलकायदा की तरह दहशतवादी शब्द बन गया है।
बता दें कि जून महीने में शिवसेना के विधायकों ने बगावत की थी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के समर्थक विधायकों ने बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में नई सरकार बनाई है। नई सरकार बनने के बाद शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट के विधायक कई बार आमने-सामने आ चुके हैं।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की ओर से उसके विधायकों को खरीदे जाने के आरोप का जिक्र भी शिवसेना ने सामना के ताजा संपादकीय में किया है। पार्टी ने अपने मुखपत्र में लिखा है, ‘दिल्ली की सरकार को गिराने के लिए शुरू किया गया ‘ऑपरेशन लोटस’ ‘फेल ’ हो गया है। भाजपा की पोल खुल गई है।’ ऐसी घोषणा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने की है।
बिहार में भी ‘ऑपरेशन लोटस’ नहीं चला तथा तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.सी. चंद्रशेखर राव ने अमित शाह को खुली चुनौती दी कि ‘ईडी, सीबीआई आदि लगाकर मेरी सरकार गिराकर दिखाओ।’ महाराष्ट्र में ईडी के डर से शिंदे गुट घुटनों के बल बैठ गया, जबकि अन्य राज्यों में कोई भी झुकने को तैयार नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम दिल्ली में घटित हुआ। ईडी, सीबीआई का इस्तेमाल करके केजरीवाल की सरकार को गिराने का प्रयास चल रहा है।
सिसोदिया के घर पर छापेमारी
संपादकीय में लिखा गया है कि दिल्ली सरकार की आबकारी नीति के मामले में फैसला व्यक्तिगत नहीं था, बल्कि पूरी सरकार का था और इसमें दिल्ली के उप राज्यपाल का भी समावेश होता है, लेकिन कैबिनेट के निर्णय का ठीकरा उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर फोड़कर उनके खिलाफ सीबीआई ने छापेमारी की। उन्हें इस प्रकरण में एक नंबर का आरोपी बनाया और यह प्रकरण अब ईडी के पास मतलब भाजपा की विशेष शाखा के सुपुर्द कर दिया गया है और मनीष सिसोदिया पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
सामना में लिखा गया है कि ‘आप’ के विधायकों को तोड़ने के लिए बीस-बीस करोड़ रुपयों का ‘ऑफर’ दिए जाने का आरोप तो खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ही लगाया है। इसलिए ‘ऑपरेशन लोटस’ लोकतंत्र और आजादी के लिए कितना घातक है यह घिनौने ढंग से सामने आया है। महाराष्ट्र में इसी तरह से ऑपरेशन चलाया गया, परंतु बड़ा राज्य होने के कारण व शिवसेना को तोड़ना यही मुख्य एजेंडा होने की वजह से ईडी की धौंस, अतिरिक्त पचास खोखे इस तरह की रसद दी गई, ऐसा खुलकर कहा जा रहा है।
संपादकीय में कहा गया है कि महाराष्ट्र की भेड़ें घबराकर भाग गईं, लेकिन उस तरह से दिल्ली के विधायक और उनके नेता नहीं भागे। वे भाजपा और ईडी के खिलाफ दृढ़तापूर्वक खड़े रहे। महाराष्ट्र में शिवसेना नेता संजय राउत ने बेखौफ होकर ईडी का सामना किया। वे मराठी स्वाभिमान के साथ लड़े, लेकिन झुके नहीं और सच्चे शिवसैनिक की तरह जूझे। इसी तरह की सख्त नीति सिसोदिया ने अपनाई। सिसोदिया छत्रपति शिवराय के मावलों की तरह दहाड़े। स्वाभिमान की तलवार हाथ में लेकर उन्होंने कहा, ‘साजिश करनेवाले भ्रष्ट लोगों के समक्ष बिलकुल भी नहीं झुकेंगे।’
ईडी, सीबीआई वालों से सवाल
महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार को गिराने में मदद करो, अन्यथा ईडी के जाल में फंसा देंगे, ऐसी धमकियां राउत को भी दी गई थीं। महाराष्ट्र में गृहमंत्री अनिल देशमुख, मंत्री नवाब मलिक, सांसद संजय राउत की आवाज को दबाने के लिए उन्हें उठाकर जेल में डाला गया। दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक वाले मंत्री सत्येंद्र जैन को पुराने प्रकरण में पकड़ा। आबकारी नीति में सरकारी तिजोरी को नुकसान हुआ इसलिए मनीष सिसोदिया पर कार्रवाई चल रही है।
फिर इन ईडी, सीबीआई वालों से हमारा सवाल है, बीते सात-आठ वर्षों में जिस जल्दबाजी से सार्वजनिक कंपनियां, हवाई अड्डों की बिक्री की गई, उसमें सरकार को क्या नफा-नुकसान हुआ और इस पर इन जांच एजेंसियों ने कौन-सी कार्रवाई की?
सामना में कहा गया है कि बिहार में सत्ता परिवर्तन होते ही राष्ट्रीय जनता दल पर सीबीआई, ईडी के छापे पड़ना, यह महज संयोग कैसे हो सकता है? परंतु तेजस्वी यादव ने सीधे कहा, ‘महाराष्ट्र में जो हुआ वह बिहार में नहीं होगा, बिहार डरेगा नहीं। जो डरपोक हैं उन्हें ईडी, सीबीआई का डर दिखाओ।’ असल में केंद्र सरकार और उनके प्रमुखों को 2024 को लेकर डर लग रहा है। यह डर केजरीवाल, ममता, उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार और शरद पवार का है। इन प्रमुखों को अपने साये से भी डर लगता है। इसलिए नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान के भी पीछे पड़ गए, ऐसा लगता है। इतना बड़ा बहुमत होने के बावजूद इन लोगों को डर क्यों लगता है? इसका एक ही उत्तर है उनका बहुमत पवित्र नहीं है। वह चुराया गया है।
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