एनसीपी के बाग़ी नेता अजीत पवार जब शनिवार रात करीब पौने बारह बजे अपनी गाड़ी से अपने भाई श्रीनिवास पवार के नेपियन्सी रोड स्थित घर से बाहर निकले तो मीडिया की नजरें उन पर थी। सबको यही इंतज़ार था कि 'ऑपरेशन लोटस' में आज रात कुछ नया एपिसोड तो नहीं होने वाला है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं और इधर-उधर घूम कर अजीत पवार दक्षिण मुंबई स्थित अपने घर पहुंच गए। शनिवार सुबह हुए राजनीतिक भूकंप का असर मुंबई में दिन भर दिखाई देता रहा। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के जिन विधायकों के टूटने की ख़बर आई, वे एक-एक करके देर शाम तक शरद पवार के पास पहुंचते रहे। विधायकों के अलावा बड़ी संख्या में एनसीपी के कार्यकर्ता मुंबई के वाईबी चव्हाण प्रतिष्ठान के बाहर जमा थे और नारेबाज़ी करते रहे। माहौल क़रीब-क़रीब वैसा ही बन गया था जैसा विधानसभा चुनाव से पहले ईडी के नोटिस के बाद शरद पवार के समर्थन में था। लेकिन अजीत पवार के बग़ावत करने के इस क़दम की परतें अब एक-एक खुलकर सामने आने लगी हैं।
बताया जाता है कि बीते रविवार (17 अक्टूबर) को सरकार बनाने के लिए पुणे में एनसीपी की जो निर्णायक बैठक हुई थी उसमें एनसीपी विधायक धनंजय मुंडे और सुनील तटकरे ने यह बात रखी थी कि हमें शिवसेना-कांग्रेस के साथ जाने के बजाय बीजेपी के साथ जाना चाहिए। यह बात इन नेताओं ने अजीत पवार के समर्थन के दम पर कही थी। अजीत पवार ने शनिवार को शपथ ग्रहण के बाद एक न्यूज़ एजेंसी के समक्ष पहली प्रतिक्रिया में कहा था कि उन्होंने शरद पवार से पहले भी बीजेपी के साथ जाने की बात कही थी और इस बयान का संबंध पुणे की बैठक से ही था।
शरद पवार का होर्डिंग हटाया
एनसीपी के बहुत से विधायक शुक्रवार रात की बैठक में उपस्थित रहे लेकिन बारामती के मुख्य चौराहे पर शरद पवार के समर्थन में लगाया गया होर्डिंग देर शाम होते-होते जब अजीत पवार के समर्थकों ने हटा दिया तो यह संकेत गया कि सब कुछ ठीक नहीं है। एक और बात जो शनिवार को चर्चा का विषय बनी रही कि अजीत पवार के साथ कितने विधायक हैं?
अजीत पवार ने धनंजय मुंडे को बैठक में भेजकर शरद पवार को यह सन्देश भी भेजा कि पार्टी को टूट से बचाना है तो बीजेपी के साथ चलो। लेकिन उस संदेश के बाद भी एनसीपी ने एक स्वर में निर्णय कर अजीत पवार को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया। विधायकों को तोड़ने का खेल धनंजय मुंडे के घर बैठकर खेला गया यह भी बातें अब सामने आ गयी हैं।
वैसे ये ख़बरें अब पुख्ता होने लगी हैं कि एनसीपी में इस स्थिति के लिए क्या बीजेपी द्वारा किसी सोची-समझी रणनीति के तहत काम किया जा रहा था?
‘ऑपरेशन लोटस’ पर जारी था काम
मीडिया में इस बात का बार -बार जिक्र हो रहा था कि आखिर महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में बीजेपी अपनी सरकार बनाने के लिए इतनी बैचेन क्यों नहीं दिख रही जैसी वह गोवा, मेघालय और मणिपुर जैसे छोटे राज्यों में दिखी थी? इस सवाल का जवाब ‘ऑपरेशन लोटस’ ही है जिस पर बड़ी खामोशी के साथ दिल्ली में काम जारी था और शायद उसी की वजह से देवेंद्र फडणवीस, नितिन गडकरी, सुधीर मुनगंटीवार, चन्द्रकांत पाटिल जैसे वरिष्ठ नेताओं का बार-बार यही बयान आ रहा था कि सरकार तो बीजेपी की ही बनेगी। 4 नवम्बर को देवेंद्र फडणवीस दिल्ली में पार्टी प्रमुख अमित शाह से मिलने गए थे और बताया जाता है कि उसी दिन अजीत पवार भी दिल्ली में ही थे।
धनंजय, राणा जगतजीत की भूमिका अहम
‘ऑपरेशन लोटस’ को आगे बढ़ाने में मुख्य भूमिका धनंजय मुंडे और राणा जगतजीत सिंह की मानी जा रही है। धनंजय मुंडे ने इस चुनाव में देवेंद्र फडणवीस के लिए पार्टी में चुनौती गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे को हराया है, धनंजय रिश्ते में पंकजा के चचेरे भाई भी लगते हैं। बताया जाता है कि धनंजय के फडणवीस से अच्छे सम्बन्ध हैं। दूसरे शख्स राणा जगतजीत सिंह, अजीत पवार के साले पद्मसिंह पाटिल के बेटे हैं जो चुनाव के ठीक पहले बीजेपी में चले गए थे और विधायक बन गए हैं।
‘ऑपरेशन लोटस’ का यह पूरा खेल दिल्ली में चला और रात के अँधेरे में होता रहा। यह बहुत ही ख़ामोशी से चला और इसके तहत विधायकों को तोड़ने के लिए प्रत्यक्ष तौर पर किसी विधायक से बात नहीं हुई, लिहाजा यह मीडिया या एनसीपी के बड़े नेताओं यानी शरद पवार तक नहीं पहुंचा। अब जब इस खेल के अधिकाँश पत्ते खुल चुके हैं ऐसे में देखना है कि एनसीपी में इसका असर कितना गहरा है और शरद पवार उसे किस तरह से अपने पक्ष में करने में कामयाब होते हैं।
अजीत पवार ने इस खेल में अपने क़रीब रहे साथियों को भी शरद पवार के पास वापस भेज दिया है लेकिन इससे यह अनुमान लगाना ग़लत होगा कि अजीत पवार का असर ख़त्म हो गया। दरअसल, कहानी अभी बाक़ी है और वह विधानसभा के पटल पर लिखी जानी है।
शरद पवार के साथ आज जितने विधायक खड़े हैं उसमें से कितने उस दिन बीजेपी के खिलाफ वोट डालते हैं, सारा दारोमदार इसी पर टिका है। क्या सुनील तटकरे, प्रफुल पटेल अपनी जांच के डर से बीजेपी के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए अजीत पवार के लिए काम करेंगे या उन्हें इस बात का भरोसा अब भी है कि जब तक शरद पवार उनके साथ हैं उन्हें डरना नहीं चाहिए?
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