आरोग्य उत्सव
मंडल का कहना है कि सरकार ने चार फुट तक की प्रतिमा स्थापित करने की अनुमति दे रखी है, लेकिन लाल बाग़ के राजा की प्रसिद्धि इतनी है कि दर्शन के लिए लाखों भक्त जमा होने लगेंगे और उन्हें नियंत्रित करने में बहुत दिक्क़तें आएंगी। ऐसे में लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए इस साल न कोई मूर्ति लगेगी, न ही विसर्जन किया जाएगा। मंडल ने कहा है कि इस साल गणेशोत्स्व की बजाय ‘आरोग्य उत्सव’ मनाया जाएगा।मंडल ने इस बार 11 दिनों की गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित करने की बजाय 11 दिनों तक रक्तदान शिविर और प्लाज्मा थेरेपी कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय किया है।
महाराष्ट्र इस समय देश का सबसे ज्यादा संक्रमित प्रदेश है और यहाँ कोरोना मरीजों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इस संकट को ध्यान में रखते हुए मंडल ने यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।
प्लाज़्मा दान
गणेशोत्सव मंडल के मानद सचिव सुधीर सालवी ने कहा, ‘मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अपील को ध्यान में रखते हुए हमने चिकित्सालय के साथ मिलकर प्लाज्मा थेरैपी के लिए सहयोग करने का निर्णय किया है। जो भी कोरोना से ठीक हुए हैं, उन्हें चिकित्सालय ले जाकर देखभाल के साथ उनसे प्लाज्मा दान कराया जाएगा।’'मिशन प्लैटिना'
बता दें कि महाराष्ट्र में कोरोना से लड़ने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक दिन पहले ही ‘मिशन प्लेटिना’ नामक मुहिम की शुरुआत की थी, जिसमें पाँच सौ कोरोना पीड़ितों पर प्लाज्मा थेरैपी का प्रयोग किया जाना है।करोड़ों का चढ़ावा
इस राशि का इस्तेमाल आयोजन मंडल वर्ष भर सामाजिक कार्यों में करता है। इस मंडल के कई अस्पताल और एम्बुलेंस हैं जहाँ गरीबों का निःशुल्क इलाज किया जाता है। प्राकृतिक आपदाओं में राहत कोष के लिए भी ‘लालबागचा मंडल’ आर्थिक रूप से मदद करता है। 1959 में ‘कस्तूरबा फंड’, 1947 में ‘महात्मा गांधी मेमोरियल फंड’ के लिए भी यहाँ से सहयोग दिया गया है।शिवाजी के समय शुरू हुआ उत्सव
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, महाराष्ट्र में गणेशोत्सव का प्रारंभ छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में प्रारंभ हुआ था। उन्होंने लोगों में राष्ट्रवाद और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इसका आयोजन शुरू किया था। यह पेशवाओं के शासन काल तक चला, भगवान गणेश उनके पूज्य थे।कहानी लाल बाग की
लाल बाग़ के राजा की शुरुआत को लेकर जो बताया जाता है वह कहानी इस प्रकार है। किसी जमाने में मुंबई का लाल बाग सब्जी, फल और अनाज व किराने का सबसे बड़ा थोक बाज़ार हुआ करता था। लेकिन यहाँ के व्यापारियों का कारोबार घाटे में चलने लगा तो उन्होंने एक खुली जगह पर लाल बाग के राजा के पंडाल की स्थापना की थी। लाल बाग के राजा की मूर्ति स्थापित हो जाने के बाद व्यापारियों की मनोकामना पूरी हो गयी। इसके बाद से ही यहाँ लाल बाग के राजा की स्थापना हर साल होने लगी।मुसलमान ने दी थी ज़मीन
लाल बाग के गणपति का उत्सव साल दर साल और भव्य होता गया। इस मंडल की स्थापना वर्ष 1934 में अपने मौजूदा स्थान पर (लालबाग, परेल) हुई थी।क्षेत्र के पूर्व पार्षद कुंवरजी जेठाभाई शाह, डॉ॰ वी.बी. कोरगाँवकर और स्थानीय निवासियों के लगातार प्रयासों के बाद इस ज़मीन के मालिक रजबअली तय्यबअली ने बाजार के निर्माण के लिए एक भूखंड देने का फ़ैसला किया।
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