loader

महाराष्ट्र: पहले दोषी अब बेदाग़? अजीत पवार के ख़िलाफ़ दो हलफ़नामे!

भ्रष्टाचार के आरोपियों के लिए बीजेपी में प्रवेश 'गंगा स्नान' जैसा है! कांग्रेस या दूसरे विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा सोशल मीडिया पर इस तरह की बातें सामान्य तौर पर लिखी-बोली जाती रही हैं। लेकिन महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनाने के लिए जो कुछ किया गया, वह कहीं ना कहीं ऊपर लिखी बात को सही ठहराता है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि एनसीपी के बाग़ी नेता अजीत पवार के बीजेपी को समर्थन देने के बाद 25 नवंबर को एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने सिंचाई घोटाले से जुड़े नौ केस बंद कर दिए थे।

एसीबी ने तब कहा था कि जो नौ केस बंद किए गए हैं, उनका वास्ता अजीत पवार से नहीं है। लेकिन अब मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच में जो हलफ़नामा सरकार की तरफ से दायर किया गया उसमें इस बात का साफ़-साफ़ उल्लेख है कि अजीत पवार के ख़िलाफ़ कोई भी फौजदारी कार्रवाई नहीं की जा सकती। यह हलफ़नामा एसीबी की अधीक्षक रश्मि नांदेडकर की तरफ़ से  27 नवंबर को अदालत में पेश किया गया है। जबकि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में नई सरकार का गठन 28 नवंबर को हुआ। लेकिन पिछली सरकार ने 2018 में एक प्रतिज्ञा पत्र अदालत में पेश किया था, उसमें इस मामले में अजीत पवार की भूमिका को जवाबदेह ठहराया गया था। 

ताज़ा ख़बरें

अजीत पवार के ख़िलाफ़ सिंचाई घोटाले में संलिप्तता के आरोप उस समय से ही लगने लगे थे जब प्रदेश में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी और वह उप मुख्‍यमंत्री थे। इस प्रकरण में करीब 70000 करोड़ रुपये की हेराफेरी के आरोप हैं। 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनसीपी को 'नेशनल करप्ट पार्टी' बोला था। 

2014 में मुख्‍यमंत्री बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने जो पहली कार्रवाई करने का आदेश दिया था, वह सिंचाई घोटाले में अजीत पवार की कथित भूमिका की जांच का था। लेकिन क्या 5 साल में फडणवीस सरकार अजीत पवार का कोई दोष नहीं ढूंढ पायी?

अजीत पवार के ख़िलाफ़ इस आरोप की कहानी को थोड़ा विस्तार से समझते हैं। 1999 से 2009 के बीच राज्य की विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं में करीब 35000 करोड़ रुपये की अनियमितता की बात सामने आयी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इस मामले में जांच बिठाई थी। फरवरी, 2012 में तत्कालीन मुख्य अभियंता विजय पांढरे ने इस बारे में रिपोर्ट राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सौंपी थी और उसमें इस बात का उल्लेख किया था कि सिंचाई विभाग में कुछ गड़बड़ हुई है। 

2012 में स्वयं सेवी संस्था जनमंच ने उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर की और सिंचाई विभाग में 70 हजार करोड़ का घोटाले की बात कहते हुए प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग की। 

बीजेपी-शिवसेना ने इस घोटाले को चुनावी मुद्दा बनाया और प्रदेश में सरकार बदल गयी। दिसंबर 2014 में नई सरकार बनते के बाद अदालत ने आदेश दिया था कि राज्य सरकार अपनी भूमिका स्पष्ट करे। इस प्रकरण में जांच के दायरे में अजीत पवार, सुनील तटकरे, छगन भुजबल, अधिकारियों और ठेकेदारों की जांच की जाएगी, यह बात राज्य सरकार की तरफ से अदालत में कही गयी थी। उसके बाद फडणवीस ने 12 दिसंबर 2014  को एसीबी को इस मामले की खुली जांच करने के आदेश दिए थे। 

महाराष्ट्र से और ख़बरें

जल संसाधन मंत्री विदर्भ सिंचन विकास महामंडल (वीआईडीसी) के पदसिद्ध अध्यक्ष होते हैं। इस वजह से इस घोटाले में उनकी सहभागिता है या नहीं, इस बात की जांच करने के लिए विशेष तकनीकी समिति स्थापित की गयी थी। उस समिति ने बताया कि सभी निविदाओं का अध्ययन कर उसकी जानकारी मंत्री को देने की जिम्मेदारी वीआईडीसी के कार्यकारी संचालक या विभाग के सचिव की होती है लेकिन ये बातें मंत्री के समक्ष कभी लायी ही नहीं गयी। इसलिए इस मामले में ठेकेदारों से मिलकर घोटाला करने के लिए जल संसाधन मंत्री की भूमिका नजर नहीं आती है। इस मामले में लिखित या मौखिक सबूत भी मंत्री के ख़िलाफ़ उपलब्ध नहीं हुए लिहाजा उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई का मामला नहीं बनता। एसीबी के इस हलफनामे के बाद अजीत पवार को इस पूरे प्रकरण में क्लीन चिट मिल गयी है। 

महाराष्ट्र गवर्नमेंट रूल्स ऑफ़ बिजनेस एंड इन्स्ट्रक्शन के नियम 10 (1) के अनुसार प्रत्येक विभाग के कामकाज की जवाबदेही उस विभाग के मंत्री की होती है। इसी तरह से वीआईडीसी अधिनियम की धारा 25 के अनुसार राज्य सरकार को वीआईडीसी के कार्यों में हस्तक्षेप कर आदेश देने के अधिकार हैं। जल संसाधन विभागांतर्गत प्राप्त हुए 11 नवंबर 2005 के एक दस्तावेज के अनुसार, अजीत पवार ने ‘विदर्भ की परियोजनाओं के कार्यों को गति देने के लिए तत्परता से निर्णय लेने आवश्यक हैं, इसलिए इनसे सम्बंधित सभी फ़ाइल्स कार्यकारी संचालक, अध्यक्ष के कार्यालय में सीधे भेजें’ ऐसा आदेश दिया था। सिंचाई परियोजनाओं की फ़ाइल्स सचिव के पास निरीक्षण के लिए जानी ज़रूरी थी लेकिन वे सीधे मंत्री अजीत पवार के पास गयीं और ठेका प्रक्रिया को टालकर बहुत से ठेके दिए गए। उस प्रतिज्ञा पत्र में कहा गया था कि इस कारण से परियोजनाओं की लागत बढ़ी है और इसकी जवाबदेही अजीत पवार की है। 

नांदेडकर द्वारा दिए गए प्रतिज्ञा पत्र से पहले 27 नवंबर, 2018 को एसीबी के महासंचालक संजय बर्वे ने उच्च न्यायालय में एक प्रतिज्ञा पत्र दाख़िल किया था। उस प्रतिज्ञा पत्र में सिंचाई घोटाले में अजीत पवार की जवाबदेही होने की बात अदालत के समक्ष बतायी गयी थी।
एसीबी के महासंचालक की तरफ से दाख़िल किये गए इस प्रतिज्ञा पत्र में भी जीगांव, निम्नपेढी, रायगढ़ और वाघाडी सिंचाई परियोजना के तहत ठेके देने में प्रक्रिया का पालन नहीं करना, ठेकेदार को अग्रिम राशि का भुगतान और ठेके की लागत में वृद्धि की बात कही गयी थी। लेकिन अब जो नया प्रतिज्ञा पत्र दिया गया है, उसमें यह कहा गया है कि अजीत पवार ने वीआईडीसी की फ़ाइलें सीधे भेजने का जो आदेश दिया था और यह प्रशासनिक प्रक्रिया से होकर गुजरा था। इस प्रकार की मान्यता के लिए प्रधान सचिव की अध्यक्षता में नियुक्त की गयी कार्यकारी समिति ने उसे मंजूरी दी थी। इसलिए अजीत पवार को उनके उस आदेश के लिए दोषी नहीं माना जा सकता। और इसी को आधार बताते हुए अब एसीबी ने ही इस प्रकरण में उन्हें क्लीन चिट दे दी है। लेकिन क्या इतने लम्बे चले इस प्रकरण में इतनी सहज सी बात को बताने में इतना समय लग गया? या यह सब सत्ता के समीकरण के बनने-बिगड़ने पर ही निर्भर होने लगा है। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

महाराष्ट्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें