अजीत पवार को आख़िरकार सिंचाई घोटाले में क्लीन चिट मिल गई। वह भी तब जब देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था लेकिन उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी नहीं ली थी। यह क्लीन चिट सिंचाई घोटाले की जाँच करने वाली एजेंसी महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी ने ही दी है। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के सामने 27 नवंबर को हलफ़नामा देकर एसीबी ने कहा है कि पूर्व जल संसाधन मंत्री अजीत पवार का इस घोटाले में कोई हाथ नहीं है।
एसीबी ने अपने 16 पेज के हलफ़नामे में नागपुर एसीबी एसपी रश्मी नांदेडकर ने कहा है कि 'एजेंसियों के काम के लिए वीआईडीसी/जल संसाधन विकास मंत्री को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि उन पर इसको लेकर कोई क़ानूनी कर्तव्य नहीं बनता है।' इस पत्र में वीआईडीसी/जल संसाधन विकास मंत्री के रूप में अजीत पवार का हवाला दिया गया है।
बता दें कि अजीत पवार का नाम सिंचाई घोटाले में भी आया था। माना जाता है कि महाराष्ट्र में 1999 से 2009 के बीच कथित तौर पर 70 हजार करोड़ रुपये का सिंचाई घोटाला हुआ। यह घोटाला राजनेताओं, नौकरशाहों और कॉन्ट्रैक्टर्स की मिलीभगत से हुआ। पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र एंटी-करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी ने अजीत पवार को इस घोटाले में आरोपी बनाया था। यह कार्रवाई तब हुई जब महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार थी। इस घोटाले की जाँच जारी है।
अजीत पवार पर से आरोप हटाए जाने का यह मामला फडणवीस के इस्तीफ़े के बाद आया है, लेकिन इसकी पूरी जाँच प्रक्रिया फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी-शिवसेना की गठबंधन सरकार के दौरान चली।
हालाँकि, विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान फडणवीस सिंचाई घोटाले और इसमें अजीत पवार के शामिल होने का मुद्दा उठाते रहे थे। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार एसीबी ने अजीत पवार का नाम कभी नहीं लिया था, लेकिन 26 नवंबर 2018 में तब के एसीबी प्रमुख रहे संजय बार्वे ने नागपुर बेंच में हलफ़नामा देकर कहा था कि सिंचाई परियोजनाओं के लिए दिए जाने वाले कॉन्ट्रैक्ट की प्रक्रिया में पवार ने हस्तक्षेप किया था।
बता दें कि राजनीतिक उठापटक के बीच 26 नवंबर को ही फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया था और 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे ने इसकी शपथ ली थी। फडणवीस के साथ एनसीपी से बग़ावत कर बीजेपी का साथ देने वाले एनसीपी नेता अजीत पवार ने भी उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और उन्हें भी 26 नवंबर को ही इस्तीफ़ा देना पड़ा था। इस्तीफ़े के बाद वह एनसीपी में लौट आए थे। उपमुख्यमंत्री बनने के दौरान सरकार बनाने में बीजेपी का साथ देने वाले अजीत पवार के ख़िलाफ़ सिंचाई घोटाले के केस बंद किए जाने की अपुष्ट ख़बर ने तहलका मचा दिया था। इसके बाद सवाल उठने लगे थे कि क्या सच में अजीत पवार उप मुख्यमंत्री बनते ही सिंचाई घोटाले के आरोपों से पाक-साफ़ हो गए?
एसीबी से जुड़ी यह ख़बर अजीत पवार के उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के दो दिन बाद ही आयी थी। उनके बीजेपी सरकार में शामिल होने के साथ ही सवाल उठने लगे थे कि एनसीपी नेता अजीत पवार पार्टी से बाग़ावत कर बीजेपी की सरकार बनाने क्यों चले गए? शिवसेना नेता संजय राउत ने आरोप लगाया था कि अजीत पवार ईडी से डरे हुए हैं।
कई मीडिया रिपोर्टों में तो दावा किया गया था कि एसीबी द्वारा उनके ख़िलाफ़ केस बंद कर दिया गया है और इसके लिए बतौर एक एसीबी के नाम से जारी पत्र का हवाला भी दिया गया था। लेकिन इस ख़बर के आने के तुरंत बाद ही एसीबी के अधिकारियों ने सफ़ाई दी थी कि अजीत पवार के ख़िलाफ़ कोई केस बंद नहीं किया गया है।
महाराष्ट्र एंटी-करप्शन ब्यूरो के डीजी परमबीर सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि वे सिंचाई से जुड़े मामलों में क़रीब 300 टेंडरों की जाँच कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'ये सब रूटीन एन्क्वायरी का हिस्सा हैं जिन्हें बंद किया जा रहा है और बाक़ी की जाँच जारी रहेगी जैसा कि पहले की जा रही थी। जिन केसों को आज बंद किया गया है उन केसों का अजीत पवार से कोई लेना-देना नहीं है।'
लेकिन अब इसी एसीबी ने कोर्ट में हलफ़नामा देकर साफ़ कहा है कि इस घोटाले में उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है और वह पाक-साफ़ हैं।
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