महाराष्ट्र की राजनीति में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस क्या मोदी या गुजरात पैटर्न ला रहे हैं? इस बार विधानसभा चुनाव के लिए सहयोगी दलों से गठबंधन, पार्टी के नेताओं को टिकट देने का जो तरीक़ा फडणवीस ने अपनाया, उसे देखकर तो ऐसा ही लगता है। उन्होंने पांच मंत्रियों और 14 विधायकों के टिकट काट दिए। टिकट बंटवारे में यह भी देखने को मिला कि मुख्यमंत्री ने शिवसेना या अपने अन्य सहयोगी दलों में किस-किस को टिकट दिया जाना चाहिए इसमें भी दख़ल दिया या अपनी राय दी है।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बयान कि उन्होंने अपनी पार्टी के इच्छुकों की सूची मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भेजी है, इससे भी इस बात के संकेत मिलते हैं कि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में शक्ति केंद्र कहां रहा। बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन का औपचारिक ऐलान करने के लिए सीएम देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सीट शेयरिंग फॉर्म्युले का भी ऐलान किया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी फडणवीस ही सरकार और गठबंधन के चेहरे के रूप में दिखे।
आदित्य ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के जवाब से भी यही लगा कि शिवसेना अब किसी तरह हालात से सामंजस्य बिठा रही है। उद्धव ठाकरे ने सीएम पद के सवाल पर जवाब दिया कि 'राजनीति में पहले क़दम का मतलब यह नहीं होता कि आप इस राज्य के सीएम बन जाएं। वह अभी राजनीति में आए ही हैं और यह उनकी शुरुआत है।’
शिवसेना और बीजेपी के बीच बीते दिनों सीएम पद के लिए काफ़ी अटकलें और बयानबाज़ी चल रहीं थी। शिवसेना की तरफ़ से आदित्य ठाकरे को सीएम पद का उम्मीदवार बताया जा रहा था। संजय राउत ने भी बीते दिनों आदित्य ठाकरे के सीएम बनने का दावा किया था।
गुजरात में जब 2001 में भूकंप आया था, उस समय केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री पद पर थे। भूकंप के बाद हुए उपचुनावों में बीजेपी हार गयी तो केशुभाई पटेल की कुर्सी चली गई और नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने। उन्होंने सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता जैसे वरिष्ठ नेता को हाशिये पर धकेला। शंकर सिंह वाघेला पहले ही पार्टी छोड़ चुके थे। हरेन पाठक, नलिन भट्ट, कांशीराम राणा जैसे नेताओं को भी एक-एक कर हाशिये पर पहुंचा दिया।
एकनाथ खडसे को लगाया किनारे!
महाराष्ट्र में 2014 से पहले एकनाथ खडसे विरोधी पक्ष के नेता थे और बीजेपी के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा सबसे प्रबल था। लेकिन मोदी-शाह ने देवेंद्र फडणवीस को चुना। खडसे एक साल तक मंत्री रहे लेकिन एक घोटाले में जांच के नाम पर उनसे इस्तीफ़ा ले लिया गया और उसके बाद वापस मंत्री पद पर उनकी बहाली नहीं हुई।
राज्य सरकार द्वारा इस घोटाले को लेकर बैठाई गयी जांच समिति की रिपोर्ट में खडसे को क्लीन चिट मिल गयी लेकिन सरकार का कार्यकाल ख़त्म होने तक उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। सरकार के कार्यकाल के अंतिम विधान सभा सत्र में जिस तरह भरे सदन में खडसे ने अपने दिल का गुबार निकाला था, उससे यह स्पष्ट हो गया था कि उनका राजनीतिक भविष्य क्या होने वाला है। इस बार फडणवीस ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया। इसी तरह चंद्रशेखर बावनकुले, विनोद तावड़े, प्रकाश मेहता, दिलीप कांबले का भी टिकट काट दिया, ये सभी फडणवीस सरकार में मंत्री थे। इनके अलावा 14 विधायकों के भी टिकट काट दिए गए। बताया जाता है इनमें से तीन मंत्री केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के क़रीबी थे।
राजनीतिक पार्टियों में टिकट काटा जाना सामान्य प्रक्रिया है लेकिन उसके बाद कुछ प्रतिक्रियाएं भी बाहर आती हैं लेकिन यहां एक अजीब तरह की ख़ामोशी दिख रही है। तावड़े ने तो यह कहा कि वह आत्म चिंतन करेंगे कि उनका टिकट क्यों कटा। 2014 में फडणवीस के साथ-साथ सीएम पद की दौड़ में सुधीर मुनगंटीवार, पंकजा मुंडे भी थीं लेकिन आज वे सब महज फडणवीस सरकार के मंत्री के दायरे में ही हैं।
सारा काम फडणवीस के ज़िम्मे!
सबसे बड़ा बदलाव देखने को जो मिला वह यह है कि शिवसेना से गठबंधन हो या अन्य मित्र दलों से या फिर भारतीय जनता पार्टी के विधायकों को टिकट बांटने का काम। सब कुछ फडणवीस के अनुसार हुआ। पूरी प्रक्रिया में ऐसा लगता रहा कि केंद्रीय गृहमंत्री और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी सारा काम फडणवीस को ही दे रखा है।
शिवसेना द्वारा कई बार यह बात कही गयी कि सीटों के बंटवारे का फ़ैसला अमित शाह और उद्धव ठाकरे के द्वारा किया जाएगा। लेकिन अमित शाह यहां नहीं आये और सब कुछ फडणवीस के इर्द -गिर्द ही घूमता रहा।
अपनी राय बतायें