मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार को पहली चुनावी परीक्षा में निराशा हाथ लगी है। गुरुवार को महा विकास अघाड़ी यानी एमवीए ने विधान परिषद की पांच सीटों में से दो पर जीत दर्ज की। एक सीट पर कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ने वाले निर्दलीय को जीत मिली है। बीजेपी को सिर्फ़ एक सीट मिली है। एक अन्य सीट पर कांग्रेस बढ़त बनाए हुए है।
आरएसएस के मुख्यालय नागपुर में ही बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव में महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार सुधाकर अडबाले ने भाजपा समर्थित नागो गानार को हराकर नागपुर शिक्षक सीट जीत ली। यह क्षेत्र बीजेपी के कद्दावर नेता नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का गृह क्षेत्र है।
नागपुर बीजेपी का गढ़ माना जाता है। नागपुर शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में महाविकास अघाड़ी समर्थित उम्मीदवार सुधाकर अडबाले को बीजेपी समर्थित उम्मीदवार नागो गाणार से दोगुने से भी ज़्यादा वोट मिले। अडबाले को जहाँ 14 हज़ार 61 मत मिले वहीं बीजेपी समर्थित गाणार को 6 हज़ार 309 वोट ही मिले।
नासिक डिवीजन स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एमवीए की शुभांगी पाटिल के खिलाफ गुरुवार देर शाम निर्दलीय उम्मीदवार सत्यजीत तांबे को विजेता घोषित किया गया। पूर्व कांग्रेसी तांबे ने निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया था, जिसके लिए उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया था।
भाजपा कोंकण डिवीजन शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की एक सीट जीतने में कामयाब रही, जहां उसके उम्मीदवार ध्यानेश्वर म्हात्रे ने पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी के मौजूदा एमएलसी बलराम पाटिल को हराया।
पांच परिषद सदस्यों का 6 साल का कार्यकाल - शिक्षकों से तीन और स्नातक निर्वाचन क्षेत्रों से दो - 7 फरवरी को समाप्त हो रहा है। इन्हीं खाली पदों को भरने के लिए सोमवार को मतदान हुआ था। कुछ मानदंडों को पूरा करने वाले और मतदाताओं के रूप में नामांकित शिक्षक और स्नातक इन चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करने के पात्र थे।
कहा जा रहा है कि भाजपा-शिंदे सेना सरकार को पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस के खिलाफ अपने रुख के लिए नुक़सान उठाना पड़ा। फडणवीस ने राज्य विधानसभा में कहा था कि सरकार ओपीएस में कभी वापस नहीं जाएगी। हालाँकि, स्नातक और शिक्षक मतदाताओं के मिजाज को भाँपते हुए शिंदे और फडणवीस दोनों ने बाद में यह कहते हुए अपना रुख बदल लिया कि वे ओपीएस के बारे में नकारात्मक नहीं हैं।
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