कोरोना ने जिस समय पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था, उसी दौरान महाराष्ट्र के एक किसान ने राज्य के किसानों के लिए एक मिसाल पेश की है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के उस्मानाबाद ज़िले के सोमेश वैद्य नाम के किसान ने लॉकडाउन में 10 एकड़ के खेत में अमरूद के पेड़ लगा दिए थे, जिससे उन्हें अब इन पेड़ों से क़रीब 25 लाख रुपये की कमाई हुई है। इसके अलावा सोमेश ने अपने इलाक़े के सैकड़ों मज़दूरों को भी रोज़गार दिया है। सोमेश ने अपने इलाक़े के हजारों किसानों को एक रोशनी की किरण दिखाई दी है।
क़रीब 2 साल पहले जब कोरोना ने महाराष्ट्र सहित पूरे देश में दस्तक दी थी और जब लॉकडाउन लग गया था तो लाखों लोगों के रोजगार उजड़ गए थे, देश में मंदी आ गयी थी। किसानों की फ़सलों को सही क़ीमत भी नहीं मिल पाई थी।
इसी बीच महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के उस्मानाबाद ज़िले के रहने वाले सोमेश वैद्य ने कोरोना के इस काल में आपदा को अवसर में बदल डाला। जिस समय महाराष्ट्र में लॉकडाउन लगा था तो उस समय सोमेश के सामने भी चुनौतीपूर्ण हालात पैदा हो गए थे लेकिन सोमेश ने हिम्मत नहीं हारी और खेती-बाड़ी में कुछ नया करने की ठान ली।
साल 2020 में मई महीने में सोमेश अपने खेतों पर टहल रहे थे तभी उनके दिमाग में आइडिया आया कि इस बार अमरूद की खेती की जाए। जून महीने में सोमेश ने अपने 10 एकड़ के खेत में अमरूद के क़रीब 10 हजार पेड़ लगा दिए। अगले एक साल में ही सोमेश ने 25 लाख रुपये के अमरूद आसपास के बाजारों में बेचकर बड़ा मुनाफ़ा कमा लिया।
जिस समय देश में लोगों के रोजगार छिन रहे थे, लोगों के सामने भूख रहने की नौबत थी, उस समय सोमेश अपने खेतों में जीतोड़ मेहनत कर रहे थे। सत्य हिंदी से बातचीत में सोमेश वैद्य ने कहा कि उन्होंने लॉकडाउन में हिम्मत नहीं हारी थी और वह लगातार मेहनत कर रहे थे।
सोमेश का कहना है कि अलग तरह की खेती करने के बारे में सोचना एक तरह से जुआ खेलने के बराबर था लेकिन उन्होंने कड़ी मेहनत और गांव वालों के सहयोग से इसे संभव कर दिखाया।
सोमेश का कहना है कि उन्होंने 10 एकड़ में अमरूद लगाने के लिए अपने गांव के आसपास के क़रीब सौ से डेढ़ सौ लोगों को रोजगार भी दिया था। जिससे लॉकडाउन में गांव के मज़दूरों को अपनी रोजी-रोटी चलाने में सहायता भी मिली। सोमेश का कहना है कि वह साल में अमरूद की दो फ़सल लेते हैं जिससे सभी खर्च काटकर उन्हें एक साल में क़रीब 10 लाख रुपये तक की बचत हो जाती है। सोमेश को खुशी है कि वह खुद तो अच्छी खेती बाड़ी कर ही रहे हैं, साथ ही अपने गांव और दूसरे लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं।
सोमेश का कहना है कि जब देश में कोरोना महामारी की शुरुआत हुई थी तो उन्हें सब कुछ ख़त्म होता हुआ दिख रहा था, लेकिन अमरूद की खेती के आईडिया ने उन्हें वापस उसी ट्रैक पर ला दिया। सोमेश ने दस एकड़ जमीन पर 10 हज़ार पेड़ लगाए थे। ड्रिप सिंचाई के माध्यम से पेड़ों को पर्याप्त खाद और पानी देकर उन्होंने चंद महीनों में ही अमरूद की फ़सल तैयार कर ली। बीते तीन महीनों में सोमेश ने तकरीबन 100 टन से भी ज़्यादा अमरूद राज्य के सोलापुर, उस्मानाबाद, लातूर, बेलगाम और अहमदनगर की मंडियों में बेच चुके हैं।
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