महाराष्ट्र की सियासत के बेहद ज्वलंत मुद्दे मराठा आरक्षण पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने तमाम दलीलों को सुनने के बाद सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है और उनसे इस बात पर जवाब मांगा है कि क्या 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण दिया जा सकता है। मामले में अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक़ आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी से ज़्यादा नहीं हो सकती।
पिछले साल 9 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर स्थगन का आदेश दिया था, उसके बाद बीजेपी ने इस मुद्दे पर ठाकरे सरकार को घेर लिया था। ठाकरे सरकार ने महाराष्ट्र सरकार की नौकरियों में मराठा समाज के लिए 13 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था। मुंबई हाई कोर्ट ने इसे वैध भी करार दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।
मराठा आरक्षण का मुद्दा हमेशा से ही महाराष्ट्र की सियासत को प्रभावित करता रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मराठा समाज ने पिछले साल 10 अक्टूबर को इस मुद्दे पर महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया था। उस दौरान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण गत ने मराठा समाज के नेताओं से मुलाक़ात की थी और उन्हें मनाया था।
सरकार में ही अलग राय
ठाकरे सरकार में सहयोगी कांग्रेस और राष्ट्रवादी की तरफ़ से भी मुख्यमंत्री पर दबाव डाला जा रहा है कि वह मराठा समाज को आरक्षण दे, लेकिन ओबीसी आरक्षण कोटे पर उसका प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। यानी मराठा आरक्षण का अलग से ही प्रावधान हो। जबकि ठाकरे सरकार का तर्क है कि तमिलनाडु में जब आरक्षण की सीमा बढ़ाकर आरक्षण दिया जा सकता है तो महाराष्ट्र में क्यों नहीं।
कई राज्यों में अहम है मुद्दा
अगर महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण 50 फ़ीसदी से ऊपर होता है तो दूसरे राज्यों में भी आरक्षण आंदोलन तेज़ हो सकता है। जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू आरक्षण की मांग फिर से जोर से पकड़ सकती है। मराठाओं की तरह जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू जाति के लोग भी आंदोलन करते रहे हैं। मराठा आरक्षण के लिए जिन विशेष परिस्थितियों को आधार बताया गया है वही आधार दूसरी जातियां भी देती रही हैं।
कई राज्यों में कई जातियां आरक्षण की मांग करती रही हैं और राज्य सरकारें और अलग-अलग दल भी इसका समर्थन करते रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फ़ीसदी तक आरक्षण की सीमा इसमें आड़े आ जाती है, क्योंकि ओबीसी, एससी और एसटी का आरक्षण क़रीब 50 फ़ीसदी हो जाता है। यही कारण है कि कभी गुजरात तो कभी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आरक्षण की अधिकतम सीमा को पार करना चाहते हैं।
कर्नाटक 70, आंध्र प्रदेश 55 और तेलंगाना 62 फ़ीसदी तक आरक्षण बढ़ाना चाहते हैं। राजस्थान और हरियाणा में भी कुछ जातियां आरक्षण की ज़ोरदार मांग करती रही हैं और यहां हिंसक प्रदर्शन तक हो चुके हैं।
महाराष्ट्र में बहुत पुरानी है मांग
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग साल 1980 से चल रही है और 2009 के विधानसभा चुनाव में विलासराव देशमुख ने यह घोषणा की थी कि यदि कांग्रेस की सरकार आयी तो मराठा समाज को आरक्षण देने पर विचार किया जाएगा। 25 जून 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठा आरक्षण को मंजूरी दे दी। लेकिन नवम्बर 2014 में इस आरक्षण को अदालत में चुनौती दी गयी। इस दौरान राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और बीजेपी-शिवसेना की सरकार आ गयी।
इसके बाद नवंबर, 2018 में आंदोलन शुरू हुआ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने आनन-फानन में बैठक बुलाकर मराठा समाज को 16 फ़ीसदी आरक्षण देने के क़ानून को मंजूरी देने की घोषणा कर दी। लेकिन इसको फिर से बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी। हाई कोर्ट के आरक्षण को सही ठहराने के फ़ैसले को 2019 में अधिवक्ता जयश्री पाटिल ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और क़रीब एक साल बाद 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया।
अपनी राय बतायें