पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के रूप में मराठा समुदाय की पात्रता तय करने के लिए मंगलवार को पूरे महाराष्ट्र में एक अनिवार्य सर्वेक्षण शुरू होने जा रहा है। इसके लिए महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएससीबीसी) एक नई तैयार सॉफ्टवेयर प्रणाली का उपयोग करने जा रहा है। सर्वेक्षण में मराठा समुदाय और ओपन कैटेगिरी को शामिल किया गया है। यह ओबीसी सर्वे 31 जनवरी तक पूरा हो जाएगा। सर्वे के लिए करीब डेढ़ लाख कर्मचारी लगाए गए हैं।
मराठा कोटे के लिए राज्य में लंबे समय से आंदोलन हो रहा है। सर्वेक्षण ऐसे समय में शुरू होने जा रहा है जब मराठा कोटा आंदोलन के नेता मनोज जारांगे-पाटिल मुंबई की ओर मार्च कर रहे हैं, जहां वह अपने समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में शामिल करने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने की योजना बना रहे हैं। कहा जा रहा है कि मनोज जारांगे पाटिल के आंदोलन की वजह से सरकार को सर्वे की घोषणा करना पड़ी। मनोज के साथ भारी भीड़ है, अगर वो मुंबई आते हैं, तो सरकार के लिए भीड़ को संभालना एक चुनौती हो सकती है। कम से कम सर्वे की घोषणा के बाद लोगों में नरमी आएगी और मनोज के साथ चल रही भीड़ कम हो सकती है।
महाराष्ट्र सरकार ने मराठा कोटा कानून (2021 में कानून रद्द होने के बाद ओबीसी आरक्षण की मांग बढ़ी) को रद्द करने के अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक सुधारात्मक याचिका दायर की है। समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ता के लिए सुधारात्मक याचिका अंतिम विकल्प है। अदालत इस पर बुधवार को सुनवाई करने वाली है।
सरकार के लिए, राजनीतिक रूप से विस्फोटक स्थिति बन गई है। क्योंकि प्रमुख ओबीसी समूह अपने आरक्षण में से कुछ भी प्रमुख मराठों को नहीं देना चाहते हैं। किसी भी समूह का विरोध करना सत्तारूढ़ गठबंधन शिवसेना, भाजपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) के लिए बुरी खबर हो सकती है। क्योंकि जिन ओबीसी समूह को महाराष्ट्र में आरक्षण मिला हुआ है, उसने पहले ही साफ कर दिया है कि वे अपना कोटा घटना बर्दाश्त नहीं करेंगे।
राज्य में 31 जनवरी तक चलने वाला यह सर्वे सभी 36 जिलों, 27 नगर निगमों और सात छावनी बोर्डों में किया जाएगा। सरकार ने जनता से सहयोग की अपील की है। दूसरी तरफ रिटायर्ड जज संदीप शिंदे की अध्यक्षता में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त समिति ने 28 अक्टूबर से 17 जनवरी के बीच राज्य में ओबीसी के 57 लाख रिकॉर्ड पाए हैं। इसमें से 1.50 लाख लोगों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र भी मिल चुका है।
महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन कानून व्यवस्था के लिए परेशानी खड़ी करता रहा है। कई मंत्रियों के घरों, वाहनों पर हमले हो चुके हैं। पिछले साल अक्टूबर और नवंबर में काफी हिंसा हुई थी। चार युवकों की इस मुद्दे पर खुदकुशियों के बाद महाराष्ट्र दहल उठा था। उन युवकों ने अपने स्यूसाइड नोट में आत्महत्या की वजह मराठा कोटा लागू नहीं करने को बताया था। बहरहाल, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय न सिर्फ तादाद में सबसे बड़ा, बल्कि राजनीतिक रूप से सबसे प्रभावशाली वर्ग है। पिछले कई दशकों से राज्य मंत्रिमंडल में मराठों की हिस्सेदारी 52% से कभी कम नहीं हुई। 1960 में महाराष्ट्र बनने के बाद अधिकांश समय तक, मराठा मुख्यमंत्री रहा है। कई रिपोर्टों के मुताबिक मराठा राज्य के लगभग 50% शैक्षणिक संस्थानों, 70% सहकारी संस्थानों और 70% से अधिक कृषि भूमि को नियंत्रित करता है।
कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष देशभर में जाति जनगणना की मांग कर रहा है। बिहार में ऐसा सर्वे हो भी चुका है और उस पर भाजपा की काफी छीछालेदर भी हो चुकी है। भाजपा सैद्धांतिक रूप से जाति जनगणना के विरोध में है। नवंबर में पांच राज्यों के चुनावों में विपक्ष ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन मोदी की गारंटी के आगे सब मुद्दे नाकाम हो गए।
विपक्ष उससे नाउम्मीद नहीं हुआ, उसने जाति जनगणना की मांग फिर से रख दी है। लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्ष इसे फिर से मुद्दा बनाना चाहता है। उसी की काट के लिए महाराष्ट्र में मंगलवार से ओबीसी जनगणना शुरू कराई जा रही है। यूपी (80) के बाद महाराष्ट्र ही ऐसा राज्य है, जहां लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें हैं। अगर विपक्ष का यह मुद्दा लोकसभा चुनाव में चल निकला तो महाराष्ट्र में शिंदे सेना को अस्तित्व बचाना मुश्किल हो जाएगा, वैसे भी वो भाजपा के सहारे है। यही वजह है कि विपक्ष का कोई मौका नहीं देने की वजह से सर्वे की घोषणा कर दी गई है। यह अलग बात है कि सर्वे के नतीजों के आधार पर शिंदे सेना और भाजपा जनता से जनादेश मांगें।
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