विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने उद्धव ठाकरे खेमे को बड़ा झटका दिया है। उन्होंने विधायकों की अयोग्यता की याचिका को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने उद्धव ठाकरे द्वारा वर्तमान सीएम एकनाथ शिंदे को शिवसेना के समूह नेता के पद से हटाने के फैसले को भी पलट दिया है। नार्वेकर ने कहा, 'यह ध्यान रखना उचित होगा कि शिवसेना के संविधान में पक्ष प्रमुख नामक कोई पद नहीं है (जो कि उद्धव ठाकरे के पास था)। पक्ष प्रमुख की इच्छा राजनीतिक दल की इच्छा का पर्याय नहीं है। पार्टी अध्यक्ष के पास किसी को भी पद से हटाने का अधिकार नहीं है।' स्पीकर ने यह फ़ैसला शिवसेना के संविधान को आधार बनाकर दिया।
नार्वेकर ने फ़ैसला देने से पहले शिवसेना के संविधान की व्याख्या भी की। उन्होंने 2018 में शिवसेना के संविधान में किए गए संशोधन को मानने से इनकार कर दिया। स्पीकर ने कहा है कि शिवसेना का 2018 का संविधान स्वीकार्य नहीं है और चुनाव आयोग में 1999 में जमा किया गया संविधान ही मान्य होगा। उन्होंने कहा, 'प्रतिद्वंद्वी समूहों के उभरने से पहले ईसीआई को आखिरी बार प्रासंगिक संविधान 1999 में सौंपा गया था। मेरा मानना है कि ईसीआई द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को दिया गया शिवसेना का संविधान यह तय करने के लिए शिवसेना का प्रासंगिक संविधान है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी असली है।'
स्पीकर ने आख़िर फ़ैसला सुनाने से पहले दलील रखते हुए कहा कि 1999 के संविधान के आधार पर पार्टी के नेतृत्व ढाँचा पर फ़ैसला लिया जा सकता है और विधायकों की अयोग्यता का फ़ैसला भी उन्हीं नियमों को ध्यान में रखकर होगा।
स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिवसेना के नेतृत्व ढांचे पर कहा, 'मुझे लगता है कि फरवरी 2018 के पत्र में दिखा नेतृत्व ढांचा प्रासंगिक है और यह निर्धारित करने के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कौन सा गुट वास्तविक राजनीतिक दल है। प्रासंगिक नेतृत्व ढांचे की पहचान करने के लिए शिवसेना का संविधान प्रासंगिक है। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि 21 जून, 2022 से दो गुटों के उभरने का अनुमान था और 22 जून, 2022 को विधानमंडल सचिवालय के आधिकारिक रिकॉर्ड में भी यही बात सामने आई।'
महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, 'मेरा मानना है कि 21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट ही असली राजनीतिक पार्टी थी। जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट के पास 55 में से 37 विधायकों का भारी बहुमत था।' नार्वेकर ने आगे कहा,
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प्रतिद्वंद्वी गुट के उभरने के बाद से सुनील प्रभु पार्टी के सचेतक नहीं रहे। भरत गोगावले को वैध रूप से सचेतक नियुक्त किया गया। एकनाथ शिंदे को वैध रूप से शिव सेना राजनीतिक दल का नेता नियुक्त किया गया।
राहुल नार्वेकर, विधानसभा अध्यक्ष, महाराष्ट्र
अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने अपने फ़ैसले में कहा कि 2018 में नेतृत्व संरचना शिवसेना के संविधान के अनुरूप नहीं थी। उन्होंने कहा, '2018 नेतृत्व संरचना में शिवसेना पक्ष प्रमुख को सर्वोच्च पद के रूप में वर्णित किया गया है। हालाँकि, शिवसेना संविधान में सर्वोच्च पद शिवसेना प्रमुख है और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सर्वोच्च प्राधिकारी है।' नार्वेकर ने कहा, 'इसे यह निर्धारित करने के लिए मानदंड के रूप में नहीं लिया जा सकता है कि प्रासंगिक समय में कौन सा गुट वास्तविक राजनीतिक दल था। उन्होंने कहा, '(शिवसेना) यूबीटी गुट ने कहा कि पक्ष प्रमुख का निर्णय दरार की स्थिति में राजनीतिक दल की इच्छा का पर्याय है। इस दलील में दम नहीं है।'
अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने कहा कि विधायिका, राजनीतिक दल और पार्टी के नेताओं के बीच भी प्रतिद्वंद्वी गुट उभर आए हैं। उन्होंने कहा, 'यह प्रस्तुत करना कि नेतृत्व संरचना के निर्णय को पार्टी की इच्छा का पर्याय माना जाना चाहिए, केवल तभी लागू किया जा सकता है जब पार्टी के नेता और सदस्यों के बीच विवाद हो। दोनों खेमों में सीधी दरार होती है और दो गुट उभरते हैं, तो दोनों गुटों के नेता ठाकरे और शिंदे राजनीतिक दल की इच्छा का समान रूप से दावा कर सकते हैं।'
फ़ैसले से पहले महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने कहा था कि फैसला कानून के अनुसार दिया जाएगा और यह सभी पक्षों को न्याय देगा।
अदालत ने नार्वेकर को चेतावनी दी कि वह ज़िम्मेदारी से भागते नहीं रह सकते हैं और यह जानना चाहा कि अदालत के 11 मई के फ़ैसले के बाद क्या कार्रवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में उन्हें सही समय के भीतर याचिकाओं पर फैसला देने के लिए कहा था।
बागियों ने तब अयोग्यता की कार्यवाही के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि असली शिवसेना वे ही हैं।
इस बीच, राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे से विश्वास मत हासिल करने को कहा। हालाँकि, विश्वास मत से ठीक पहले उद्धव ने इस्तीफा दे दिया और राज्यपाल की कार्यवाही पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। हालाँकि बाद के फ़ैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्योंकि उद्धव ने इस्तीफा दे दिया था इसलिए उस मामले में कुछ और फ़ैसला देना ठीक नहीं है।
शिवसेना में विभाजन हो गया और महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई। उद्धव गुट की संविधान पीठ के समक्ष याचिकाओं में 22 जुलाई के फ्लोर टेस्ट को रद्द करने की मांग की गई, जिसने एकनाथ शिंदे को सीएम की कुर्सी पर बिठाया था। उन्होंने यह भी मांग की कि विधायकों को पार्टी विरोधी गतिविधि की तारीख से अयोग्य माना जाए और इसलिए शिंदे को सीएम नहीं बनाया जा सकता था। जून 2022 में विद्रोह के बाद शिंदे भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे।
विधायकों की इसी अयोग्यता वाले मामले में फ़ैसला लिया जाना है। यदि इन विधायकों को अयोग्य भी घोषित किया जाता है तो भी सरकार गिरने की संभावना नहीं है। संभव है कि सीएम को इस्तीफा देकर फिर से कार्यभार संभालना पड़े या सीएम बदल भी जाएँ।
ऐसी संभावनाओं के बीच हाल ही में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच बैठक का मुद्दा भी उछला है। शिवसेना के यूबीटी गुट ने इसी पर आपत्ति जताई और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। शिवसेना ने स्पीकर को लेकर सवाल उठाया है कि क्या जज उस आरोपी से फ़ैसले सुनाने से पहले मिल सकते हैं जिसके ख़िलाफ़ फ़ैसला देना हो।
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