महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर फिर से सुर्खियों में हैं। उन्होंने शिवसेना के बाग़ी खेमे के विधायकों की अयोग्यता की याचिका को रद्द करने का फ़ैसला सुनाया है। सीएम एकनाथ शिंदे को शिवसेना के समूह नेता के पद से हटाने के फैसले को पलट दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रतिद्वंद्वी गुट के उभरने के बाद से सुनील प्रभु पार्टी के सचेतक नहीं रहे, भरत गोगावले को वैध रूप से सचेतक नियुक्त किया गया और एकनाथ शिंदे को वैध रूप से शिव सेना राजनीतिक दल का नेता नियुक्त किया गया।
ऐसा फ़ैसला देने से पहले स्पीकर को सुप्रीम कोर्ट की ख़ूब डाँट भी पड़ी थी और इस वजह से वह लगातार सुर्खियों में रहे। इस मामले में फ़ैसला लेने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा कई बार चेतावनी जारी किए जाने के बाद भी स्पीकर द्वारा समय पर फ़ैसला नहीं लिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने समय-सीमा तय की थी। सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाने की समय सीमा पहले 31 दिसंबर 2023 तय की थी, लेकिन उससे कुछ दिन पहले 15 दिसंबर को कोर्ट ने 10 दिन की मोहलत देते हुए फैसले की नई तारीख 10 जनवरी तय की थी।
पिछले साल सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने उन विधायकों की अयोग्यता पर फ़ैसला देने में देरी को लेकर महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर को कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही को अनिश्चितकाल तक विलंबित नहीं कर सकते हैं और कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए। अदालत ने नार्वेकर को चेतावनी दी थी कि वह ज़िम्मेदारी से भागते नहीं रह सकते हैं।
नार्वेकर को 2022 के जुलाई महीने में स्पीकर चुना गया था। शिवसेना को विभाजित करने वाली बगावत के बाद एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद नार्वेकर को स्पीकर चुना गया था।
नार्वेकर 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले कोलाबा से बीजेपी में शामिल हुए थे। उन्होंने कांग्रेस के अशोक जगताप को हराकर कोलाबा से विधानसभा चुनाव जीता था।
नार्वेकर का जन्म और पालन-पोषण दक्षिण मुंबई के कोलाबा इलाके में हुआ है। उनके भाई मकरंद कोलाबा से पार्षद हैं।
नार्वेकर एनसीपी के वरिष्ठ नेता रामराजे नाइक-निंबालकर के दामाद हैं। वो शुरुआती वर्षों में शिवसेना की युवा शाखा के प्रवक्ता थे। उन्होंने 2014 में पार्टी छोड़ दी और एनसीपी में शामिल हो गए। नार्वेकर ने दावा किया कि पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों की वजह ने उन्हें शिवसेना छोड़ने के लिए प्रेरित किया था। राहुल नार्वेकर ने 2014 का लोकसभा चुनाव मावल से लड़ा, वह शिवसेना के श्रीरंग अप्पा बार्ने से हार गए थे।
बता दें कि नार्वेकर का शिवसेना में एक अहम कार्यकाल रहा था। वह पार्टी के चेहरे के रूप में और आदित्य ठाकरे के विश्वासपात्र के रूप में जाने जाते थे। आदित्य ने एक बार विधानसभा में भाषण के दौरान उनकी नजदीकियों का जिक्र किया था।
हालांकि 2014 में, नार्वेकर ने लोकसभा चुनाव से पहले एनसीपी में शामिल होने के लिए शिवसेना छोड़ दी। उन्हें राकांपा ने मावल संसदीय सीट से मैदान में उतारा था। वह हार गए लेकिन बाद में उन्हें विधान परिषद की सीट दी गई।
फिर 2019 में एक आश्चर्यजनक कदम उठाया और वह भाजपा में शामिल हो गए। पार्टी ने राज पुरोहित जैसे वफादारों को दरकिनार कर उन्हें कोलाबा से टिकट दिया। उन्होंने यह सीट 57,000 से अधिक वोटों से जीती।
दिसंबर 2022 में उनका एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल के साथ विवाद हो गया था, जब पाटिल ने नार्वेकर पर उन्हें सदन में बोलने नहीं देने का आरोप लगाया था। उस समय पाटिल को विधानसभा के पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने कहा था कि नार्वेकर को 'एक बेशर्म व्यक्ति की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए'। कांग्रेस ने सदन की कार्यवाही में पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाते हुए नार्वेकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया था।
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