शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की संयुक्त याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। याचिका में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सरकार बनाने को लेकर आमंत्रण देने के फ़ैसले का विरोध किया गया है। जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच इस मामले में सुनवाई करेगी। शिवसेना की ओर से दायर याचिका में बीजेपी और एनसीपी के अजित पवार गुट की साझा सरकार बनाने को चुनौती दी गई है। शिवसेना ने इस याचिका में राज्यपाल को निशाने पर लिया है और उनकी भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
शिवसेना ने याचिका में कहा है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ‘भेदभावपूर्ण तरीके’ से काम किया और राजभवन में दो नेताओं को शपथ दिला दी है। शिवसेना ने कहा :
“
सच यह है कि महामहिम राज्यपाल ने राज्यपाल के संवैधानिक पद का अपमान किया है और ग़ैरक़ानूनी तरीके से सत्ता हथियाने की बीजेपी की कोशिश में ख़ुद का इस्तेमाल होने दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर शिवसेना की याचिका का अंश
याचिका में कहा गया है कि ‘महामहिम राज्यपाल ने भेदभावपूर्ण तरीके से काम किया है और राज्यपाल के पद का मजाक बना दिया है। हम यह पूरे सम्मान के साथ कहना चाहते हैं कि 22 और 23 नवंबर के बीच की रात राज्यपाल की कार्रवाई और 23 नवंबर को शपथ ग्रहण समारोह इस बात का उदाहरण है कि कैसे राज्यपाल केंद्र की सत्ता में बैठे राजनीतिक दल की ओर से काम कर सकते हैं।’
शिवसेना ने इसके साथ ही विधानसभा के विशेष सत्र की माँग भी कर दी। याचिका में कहा गया है कि 14वें महाराष्ट्र विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए। इसमें कहा गया है कि विधायकों को शपथ दिलाई जाए और उसके तुरन्त बाद फ़्लोर टेस्ट होना चाहिए।
बता दें कि शनिवार को शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की सरकार बनने की चर्चाओं के बीच राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजीत पवार को डिप्टी सीएम के पद की शपथ दिला दी।
विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं और ये दोनों ही दल आसानी से राज्य में सरकार बना सकते थे। लेकिन शिवसेना के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी को लेकर अड़ जाने को लेकर दोनों दलों के बीच मतभेद पैदा हो गए थे। शिवसेना का कहना था कि 50:50 के फ़ॉर्मूले के तहत उसे राज्य में ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहिए लेकिन बीजेपी मुख्यमंत्री पद के बंटवारे के लिए तैयार नहीं थी। इस मुद्दे पर शिवसेना ने बीजेपी और एनडीए से नाता तोड़ लिया था।
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