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महाराष्ट्र की बदलती फ़िजा में भावनात्मक राजनीति का दौर!

महाराष्ट्र की राजनीति में उफान आया हुआ है। कुछ दिन पहले तक यह लग रहा था कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना की सरकार आसानी से एक बार फिर सत्तासीन हो जाएगी लेकिन इस राह में अब हर दिन एक नया समीकरण बन रहा है। शुक्रवार को ईडी प्रकरण में शरद पवार को प्रदेश भर में मिले व्यापक समर्थन ने राजनीतिक फ़िजा में बदलाव के संकेत दिए हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) पवार को मिले इस समर्थन के बाद अब भावनात्मक दांव खेलने लगी है। 

शरद पवार पिछले कुछ दिनों से अपने भाषणों में छत्रपति शिवाजी महाराज का जिक्र करने लगे हैं कि कैसे उन्होंने संघर्ष किया लेकिन दिल्ली में औरंगजेब की सल्तनत के सामने शीश नहीं झुकाया। पवार बार-बार यह कहते हैं कि वह भी दिल्ली की मोदी-शाह सरकार के सामने नहीं झुकेंगे और ना ही महाराष्ट्र का मान झुकने देंगे। 

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पवार को इस बात के चलते बड़ी संख्या में युवाओं का समर्थन मिल रहा है जो उनकी सभाओं में नजर भी आ रहा है। इन युवाओं से वह मार्मिक अपील करते हैं तथा उनसे आगे आकर प्रदेश की राजनीति में शामिल होने का आह्वान भी करते हैं। 

एनसीपी ने इस समर्थन को देखते हुए अपने प्रचार कैम्पेन का जो स्लोगन दिया है वह भी काफ़ी तेजी से लोगों की जुबान पर चढ़ रहा है। ‘मी साहेबांच सोबत’ (मैं शरद पवार के साथ)। मराठी भाषा में यह स्लोगन लिखी गांधी टोपी जो सालों बाद अन्ना आंदोलन के दौरान देश भर में लोकप्रिय हुई थी,  अब शरद पवार समर्थकों और खासकर युवाओं के सिरों पर देखी जा सकती है। 

दूसरी ओर, शनिवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की पार्टी नेताओं के साथ हुई खुली बैठक ने कुछ अलग ही संकेत दिए हैं। उद्धव ठाकरे की बैठक ख़त्म होने के क़रीब एक घंटे बाद ही अजित पवार मीडिया के समक्ष आये और उन्होंने ना सिर्फ़ अपने इस्तीफ़े के कारण का ख़ुलासा किया अपितु कथित 25000 करोड़ के सहकारी बैंक घोटाले की हक़ीक़त के बारे में भी अपना पक्ष रखा। 
इन नए-नए घटनाक्रमों के बीच एक बात जो दिखाई दे रही है, वह यह कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बैकफुट पर चली गयी है।

अपनी महाजनादेश यात्रा के दौरान सभाओं में यह दावा करने वाले फडणवीस कि आने वाले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इतनी सीटें मिलेंगी, जितनी वे कल्पना भी नहीं कर पा रहे हैं या अगले मुख्यमंत्री वे ही बनेंगे, फिलहाल खामोश बैठे हैं? 

शायद भारतीय जनता पार्टी इस नयी परिस्थिति से निपटने की कोई रणनीति बना रही हो? लेकिन अब समय बहुत कम है और प्रचार के केंद्र बिंदु में शरद पवार ही छाये रहे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा कि तमाम नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना को वह आंकड़ा नहीं मिले जिसकी वे चाह रखते हैं। 

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शनिवार दोपहर को मुंबई के रंग शारदा रंगमंच में हुई शिवसेना की चुनावी बैठक में उद्धव ठाकरे के भाषण से तो यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि लड़ाई इतनी आसान नहीं है जितनी वह लोकसभा चुनावों के बाद नजर आती थी। उद्धव ठाकरे ने बहुत ही मार्मिक भाषण दिया और शिव सैनिकों को पार्टी के इतिहास से लेकर भविष्य तक के बारे में बताया। 

अपने पिता और सेना प्रमुख स्व. बाल ठाकरे को दिए गए एक बयान का हवाला भी उद्धव ने दिया जिसमें उन्होंने कहा, ‘यह मेरा वचन है कि एक ना एक दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई शिव सैनिक ही बैठेगा।’ उद्धव ठाकरे ने यह भी कहा कि उनकी आगे की रणनीति इसी आधार पर बनायी गयी है और वह जो फ़ैसला लेने वाले हैं वह पार्टी हित में ही रहेगा। 

उद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी के प्रदेश की सभी 288 विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ने के इच्छुकों को इस बैठक में बुलाया ज़रूर था लेकिन बात गठबंधन तोड़ने की नहीं बल्कि गठबंधन में रहकर ही चुनाव लड़ने की कही।

उद्धव के पूरे भाषण का लब्बोलुआब यह था कि वह पार्टी के नेताओं को विश्वास में लेना चाहते थे। वह इस बात पर जोर देते रहे कि जिसको जो सीट मिलेगी उसी पर लड़ना है बग़ावत या गद्दारी नहीं करनी है। इसका मतलब यही निकाला जा रहा है कि क्या शिवसेना को इस बात का अंदेशा है कि बड़ी संख्या में उसके विधायक या नेता बाग़ी के रूप में मैदान में उतरेंगे? 

जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस व एनसीपी के विधायकों और नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया है, उसी समय से दो बातों के कयास लगाए जा रहे थे कि या तो बीजेपी-शिवसेना गठबंधन नहीं होगा या फिर टिकट बंटवारे के बाद दोनों दलों के अनेकों नेता चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस-एनसीपी या निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ने का फ़ैसला करेंगे। 

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अब गठबंधन को लेकर उद्धव ठाकरे ने सार्वजनिक रूप से पार्टी का मत स्पष्ट कर दिया है तो आने वाले एक-दो दिन में तसवीर स्पष्ट होने लगेगी। शिवसेना की इस बैठक के बाद ही एनसीपी के नेता अजीत पवार भी मीडिया के समक्ष आये और पार्टी कार्यकर्ताओं और अपने सहयोगियों से माफ़ी मांगी। अजीत पवार ने कहा कि उनके इस्तीफ़ा देने से सभी लोग हैरान थे और पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें कभी इस्तीफ़ा नहीं देने देते। 

पवार ने कहा, मैं पार्टी के कार्यकर्ताओं और सहयोगियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए माफ़ी मांगता हूं। आपको बता दें कि शुक्रवार शाम  शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था। अजीत पवार के इस्तीफ़े को महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष हरिभाऊ मंजूर भी कर चुके हैं। 

अजीत पवार महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड घोटाले में अपना और अपने चाचा शरद पवार का नाम आने से आहत थे। 

बैंक घोटाले को लेकर अजीत पवार ने कहा कि जब बैंक में 11,500 करोड़ रुपये जमा किए गए, तो 25,000 करोड़ रुपये का घोटाला कैसे हो सकता है? इतने बड़े घोटाले के बाद बैंक का कामकाज कैसे जारी रह सकता है?
अजीत पवार ने कहा कि इस बैंक में भारतीय जनता पार्टी से सम्बन्ध रखने वाले 17 डायरेक्टर भी थे लेकिन सिर्फ़ उनका और शरद पवार का नाम मीडिया में चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चीनी मिलों या जिनिंग मिलों का कामकाज किसानों के दम पर चलता है, इसलिए राज्य सरकार की जवाबदेही प्रदेश के किसानों के प्रति बनती है। ये उद्योग अगर संकट में आते हैं तो सरकार उन्हें तारने के लिए सस्ती दरों में बिना ब्याज का कर्ज भी देती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने पिछले महीने सैकड़ों करोड़ का बिना गारंटी वाला कर्ज चीनी मिलों को बांटा है वह भी इसी श्रेणी में आता है लेकिन उसके बारे में कोई कुछ नहीं बोल रहा। 
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संजय राय
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