‘मैं ही मुख्यमंत्री बनूँगा’ के देवेंद्र फडणवीस के बयान के बाद बुधवार को उन्हें भारतीय जनता पार्टी के विधायक दल का नेता चुन लिया गया है। फडणवीस का नाम प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष ने प्रस्तावित किया था और बाकी विधायकों ने सर्वसम्मति से उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लिया। इससे एक बात का संकेत स्पष्ट मिल रहा है कि मुख्यमंत्री का पद बीजेपी अपने ही पास रखने वाली है। इस कड़ी में केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले का बयान भी आया है कि विधायकों की संख्या को देखते हुए मुख्यमंत्री बीजेपी का ही होना चाहिए।
मंगलवार को मुख्यमंत्री के बयान के बाद शिवसेना-बीजेपी में टकराव तेजी से बढ़ा था। यह चर्चा थी कि विधायक दल का नेता बन जाने के बाद फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करेंगे लेकिन जो टकराव की स्थिति बनी हुई है उसके चलते फिलहाल यह होता नहीं दिख रहा है।
बीजेपी के नेता अब यह बयान दे रहे हैं कि सरकार बीजेपी और शिवसेना गठबंधन की ही बनेगी। इस गठबंधन को तय करने के लिए तथा टकराव को सुलझाने के लिए अब एक बार फिर से अमित शाह मध्यस्थता करने वाले हैं।
अमित शाह बुधवार को मुंबई आने वाले थे लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए शिवसेना के रुख और फडणवीस के बयान के बाद जो राजनीति गरमाई थी, उसे देखते हुए उन्होंने अपना दौरा रद्द कर दिया था। अब शाह फिर से इस मामले में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से चर्चा करने वाले हैं। शाह की इस मध्यस्थता की जानकारी मीडिया के समक्ष आकर सरकार में मंत्री रहे गिरीश महाजन ने दी। महाजन फडणवीस के सारथी के रूप में जाने जाते हैं और चुनाव से पहले उनके प्रयासों से ही एनसीपी और कांग्रेस के अनेक नेता अपनी-अपनी पार्टियों को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे।
महाजन ने कहा कि पिछली बार (2014) की तरह पार्टी विधानसभा के पटल पर अकेले बहुमत सिद्ध नहीं करने वाली है। उन्होंने कहा कि फडणवीस और प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से बात कर सकते हैं और यह बात दिल्ली में भी हो सकती है। इस बातचीत के आधार पर ही पार्टी आगे की रणनीति तय करेगी।
महाजन ने कहा कि अमित शाह गुरुवार या शुक्रवार को मुंबई आने वाले हैं और इस दौरान वह उद्धव ठाकरे से भेंट कर नयी सरकार के गठन पर बातचीत करेंगे। महाजन ने कहा कि अगले दो-तीन दिन में तसवीर स्पष्ट हो जाएगी। महाजन के मीडिया में आकर इस प्रकार के बयान देने से एक बात तो यह साफ़ नज़र आ रही है कि बीजेपी अब कहीं ना कहीं इस विवाद का हल निकालने के मूड में है।
यह भी ख़बरें आ रही हैं कि बीजेपी महाराष्ट्र के मंत्रिमंडल में शिवसेना को 40% हिस्सा तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल में अतिरिक्त स्थान देने का प्रस्ताव देने वाली है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो मुख्यमंत्री पद का है। फडणवीस के नेता चुने जाने के बाद यह बात तो स्पष्ट सी हो गयी है कि बीजेपी मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ने वाली है। अब अमित शाह क्या राह निकालेंगे, इस पर सभी की नज़रें लगी हुई हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री के कार्यकाल के बंटवारे की जो बात कही जा रही है, वह अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच हुई बैठक की है। लिहाजा हल भी इन दोनों ही नेताओं को निकालना है।
सरकार बनाने के दूसरे विकल्पों की जो बात हो रही थी, उस पर एनसीपी के वरिष्ठ प्रवक्ता नवाब मलिक ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। बुधवार को शरद पवार की मौजूदगी में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई। इस बैठक में निर्णय किया गया कि यदि बीजेपी अकेले दम पर विधान सभा के पटल पर बहुमत सिद्ध करने की कोशिश करती है तो उसमें शिवसेना की भूमिका को देखकर ही अगली रणनीति अख्तियार की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि साल 2014 में बीजेपी ने यही दाँव खेला था और शोर-शराबे के बीच यह घोषित करा लिया था कि बहुमत उसके पक्ष में है। इसके बाद शिवसेना को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी दी गई थी और वह विपक्ष में बैठी थी। एनसीपी का कहना है कि इस तरह के दाँव में यदि फडणवीस सरकार बहुमत सिद्ध करने में विफल रहती है तो प्रदेश को नयी सरकार देने के लिए प्रयास किया जाएगा।
पिछली बार एनसीपी के बिना शर्त समर्थन के बयान पर बीजेपी ने वह दाँव खेला था और सफल भी रही थी। लेकिन इस बार कांग्रेस और एनसीपी किसी प्रकार के समर्थन के बजाय शिवसेना से प्रस्ताव लाने या विधानसभा पटल पर बहुमत सिद्ध करने तक के इंतज़ार की बात कर रहे हैं। बीजेपी और शिवसेना का यह टकराव किस स्तर तक पहुंचता है, यह आने वाले एक-दो दिन में पता चलेगा।
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