चुनाव परिणाम को आये एक सप्ताह बीत गया है लेकिन साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी-शिवसेना बहुमत मिलने के बावजूद सरकार नहीं बना पा रही हैं। दोनों ही दलों में 50-50 के फ़ॉर्मूले को लेकर खींचतान जारी है। जिस तरह से दोनों दलों के नेताओं के बीच बयानबाज़ी जारी है, उससे अब यह अंदेशा लगने लगा है कि कहीं यह गठबंधन टूट तो नहीं जाएगा?
24 अक्टूबर को जब चुनाव नतीजे आये थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा कर दी थी कि देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में महाराष्ट्र विकास करेगा। लेकिन उसी दिन जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने 50-50 के फ़ॉर्मूले की बात कही थी तो यह सवाल उठने लगा था कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा।
चुनाव प्रचार के दौरान उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस जब-जब एक मंच पर आये तब-तब उन्होंने एक ही बात कही कि उनका फ़ॉर्मूला तय है और उसी के हिसाब से सत्ता में हिस्सेदारी रहेगी। लेकिन दीपावली के दिन पत्रकारों को भोज के कार्यक्रम में फडणवीस ने ऐसे किसी भी फ़ॉर्मूले से इनकार किया तो मामला बिगड़ा गया।
उद्धव की तीख़ी प्रतिक्रिया
शुरुआत में तो यह मंत्रालयों में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए की जा रही कवायद लगता था लेकिन 31 अक्टूबर को उद्धव ठाकरे ने पार्टी विधायक दल के नेता के चुनाव के बाद जो बयान दिया उससे इस बात का पता चलता है कि यह मामला अब कितना गंभीर हो चुका है। विधायक दल की बैठक के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘कोई भी मुख्यमंत्री पद का अमर पट्टा पहनकर नहीं आया है।’ उन्होंने फडणवीस के उस बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि 50-50 के फ़ॉर्मूले की कोई बात नहीं हुई थी, उसकी भी निंदा की और कहा कि उनसे इस प्रकार के बयान की अपेक्षा नहीं थी। ठाकरे ने कहा कि मुख्यमंत्री पद के लिए शिवसेना का दावा आज भी उतना ही मजबूत है जितना पहले था। उद्धव ठाकरे ने कहा कि शिवसेना का संख्या बल अच्छा है और मुख्यमंत्री पद पर उसका हक है और ज़िद्द भी।
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सीएम का पद हमेशा एक के लिए कायम नहीं रहता। बालासाहेब ठाकरे ने जिसे जो वचन दिया उसका पालन किया। हम सत्ता के भूखे नहीं हैं, लेकिन बीजेपी से जो बात हुई है, उसका पालन होना चाहिए।
उद्धव ठाकरे, शिवसेना प्रमुख
आदित्य को सीएम बनाने पर अड़े
शिवसेना ने अपने तेवर कड़े कर लिए हैं और वह ढाई-ढाई साल के फ़ॉर्मूले पर अड़ी हुई है। उद्धव अपने बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। आदित्य ठाकरे को सीएम बनाये जाने से जुड़े पोस्टर आपको मुंबई की सड़कों पर ख़ूब दिख जाएँगे। तो क्या शिवसेना अपनी इस ज़िद के पूरा नहीं होने पर कोई दूसरा विकल्प भी चुन सकती है, जैसा कि उनकी पार्टी के प्रवक्ता संजय राउत कई बार कह चुके हैं।
शाह कब आयेंगे, पता नहीं
दरअसल, शिवसेना-बीजेपी के टकराव को सुलझाने के लिए 30 अक्टूबर को ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मुंबई आने वाले थे। लेकिन फडणवीस के 50-50 के फ़ॉर्मूले वाले बयान के बाद जब उन्होंने शिवसेना का आक्रामक रुख देखा तो उन्होंने अपना दौरा रद्द कर दिया। अमित शाह महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात पर अपनी पार्टी के नेताओं और फडणवीस से चर्चा ज़रूर करते होंगे लेकिन वह मुंबई कब आयेंगे, यह तारीख़ निर्धारित नहीं हो पा रही है। पहले यह बताया गया था कि शाह शुक्रवार या शनिवार को मुंबई आयेंगे। लेकिन अभी तक बीजेपी की तरफ़ से इस बारे में कोई ठोस जवाब नहीं मिल रहा है। ऐसे में उद्धव ठाकरे की यह भूमिका इस बात का इशारा कर रही है कि शिवसेना आज उस स्थिति में नहीं दिख रही है, जैसी वह 2014 में दिखी थी।
उद्धव ठाकरे के कड़े रुख के बाद कांग्रेस और एनसीपी में भी हलचल बढ़ गयी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, अशोक चव्हाण और प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोरात ने शरद पवार से उनके मुंबई स्थित आवास 'सिल्वर ओक' में मुलाक़ात की। मुलाक़ात के बाद यह ख़बर आई है कि पृथ्वीराज चव्हाण, सोनिया गाँधी से टेलीफ़ोन पर चर्चा करेंगे और ताजा घटनाक्रम की जानकारी देंगे।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस-एनसीपी नई सरकार बनाने की संभावनाओं को भी तलाश रही हैं। यदि शिवसेना को साथ लेकर सरकार बनती है, तब इन दोनों दलों की क्या भूमिका रहेगी, इस पर भी चर्चा चल रही है।
फिर बनेगी बीजेपी-शिवसेना सरकार!
उधर, बीजेपी के सूत्र दावा कर रहे हैं कि महाराष्ट्र सरकार का ब्लू प्रिंट तैयार हो गया है। इसके मुताबिक़, महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना की साझा सरकार बनेगी और देवेंद्र फडणवीस पूरे 5 साल के लिए मुख्यमंत्री रहेंगे। लेकिन शिवसेना जिस तरह मुख्यमंत्री पद को लेकर अड़ी है, उसका तोड़ कहीं से भी निकलता नहीं दिख रहा। ऐसे में क्या आने वाले एक-दो दिन में शिवसेना कोई बड़ा क़दम उठाने जा रही है, यह देखना होगा।
शिवसेना विधायक दल के नेता के चुनाव के बाद पार्टी के सभी विधायकों ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से राजभवन में जाकर मुलाक़ात की है। इस मुलाक़ात को शिवसेना किसानों की समस्याओं के ज्ञापन देने से जोड़ रही है लेकिन अब चूँकि राजनीति सरकार बनाये जाने को लेकर गरमाई हुई है तो इसका संबंध महज ज्ञापन से जोड़ा जाना हजम नहीं होता।
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