चुनाव नतीजे आने के बाद से ही महाराष्ट्र में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है। चुनाव नतीजों में जब बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 161 सीटें मिली थीं तो यह माना गया था कि हफ़्ते भर के भीतर सरकार का गठन हो जायेगा। क्योंकि दोनों दलों ने गठबंधन में रहकर चुनाव लड़ा था। लेकिन नतीजे आने के बाद शिवसेना के 50:50 फ़ॉर्मूले को माने जाने की जिद और बीजेपी के इसके लिये तैयार न होने के कारण मामला फंस गया। और अब दो हफ़्ते हो चुके हैं लेकिन सरकार किसकी बनेगी, इसे लेकर तसवीर साफ़ नहीं है। इस सारी सियासी उथल-पुथल के बीच देवेंद्र फडणवीस आज राज्य के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाक़ात करेंगे।
महाराष्ट्र की विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को ख़त्म हो रहा है, ऐसे में तीन दिन बेहद अहम हैं। अगर इन तीन दिनों में कोई दल दावा पेश नहीं करता है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लग सकता है। इससे पहले शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत जब राज्यपाल से मिले थे तो ख़बरों के मुताबिक़ उन्होंने महाराष्ट्र में दूसरा सबसे बड़ा दल होने की हैसियत से उन्हें सरकार बनाने के लिये बुलाने का अनुरोध किया था।
क्या कम हुई तल्खी?
चुनाव नतीजे आने के बाद बुधवार को पहली बार बीजेपी-शिवसेना के नेता मिले। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना के नेताओं ने एक बैठक में हिस्सा लिया। बैठक के बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार का बयान आया कि बीजेपी और शिवसेना साथ हैं और सरकार भगवा गठबंधन की ही बनेगी। लेकिन शिवसेना की तरफ़ से झुकने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं और वह अपने 50:50 के फ़ॉर्मूले, जिसके तहत वह महाराष्ट्र की सत्ता में समान भागीदारी और राज्य में मुख्यमंत्री का पद ढाई साल के लिये चाहती है। लेकिन बीजेपी इसके लिये तैयार नहीं है।
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तो सवाल यह खड़ा होता है कि आख़िर इस विवाद का समाधान होगा कैसे? सरकार गठन के मसले पर देवेंद्र फडणवीस दिल्ली में अमित शाह और नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत से भी मिल चुके हैं लेकिन अब तक समस्या का कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है।
गडकरी को मिलेगी कमान?
राजनीतिक गलियारों में इस बात की जोरदार चर्चा है कि शिवसेना एक ही स्थिति में बीजेपी के साथ सरकार बनाने के लिए राजी हो सकती है कि जब वह फडणवीस को बदल दे। यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई दूसरा शख़्स आये और इस दौड़ में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है।
चुनाव नतीजे आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस अंदाज में फडणवीस का समर्थन किया था, उसके बाद यही लगा था कि फडणवीस ही मुख्यमंत्री बनेंगे क्योंकि चुनाव में भी उन्हीं को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया गया था। लेकिन अब जब बात फंस गई है तो यह कहा जा रहा है कि बीजेपी क्या अपनी सरकार को बचाने के लिये फडणवीस के बजाय गडकरी को कमान देगी? ऐसा वह गोवा में कर चुकी है जब बीजेपी की सरकार बनवाने के लिये केंद्र में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को गोवा जाना पड़ा था।
इससे पहले राज्य में यह चर्चा जोरों पर थी कि शिवसेना और एनसीपी मिलकर सरकार बना सकते हैं और कांग्रेस इसे बाहर से समर्थन दे सकती है लेकिन बुधवार को शरद पवार ने फिर दुहराया कि उन्हें विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है और कहा कि बीजेपी-शिवसेना को सरकार बनानी चाहिये। पवार ने एनसीपी-शिवसेना की सरकार बनने की बात को भी खारिज कर दिया था।
कांग्रेस में चल रहा मंथन
माना जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन देने के लिये सहमत नहीं दिख रहा है। हालाँकि इस मुद्दे पर पार्टी के अंदर मंथन चल रहा है और पार्टी के महासचिव मल्लिकार्जुन खड़गे बहुत जल्द महाराष्ट्र के विधायकों से मिल सकते हैं। क्योंकि कुछ दिन पहले महाराष्ट्र कांग्रेस के बड़े नेता सोनिया गाँधी से मिलने दिल्ली पहुंचे थे तो उन्होंने बीजेपी की सरकार बनने से रोकने के लिये कांग्रेस की ओर से क़दम उठाये जाने का अनुरोध आलाकमान से किया था। कांग्रेस से इस दिशा में क़दम उठाने का आग्रह सांसद हुसैन दलवई भी कर चुके हैं। दलवई शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत से भी मिल चुके हैं।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों की बृहस्पतिवार को मुंबई में अपने आवास पर बैठक बुलाई है। इससे पहले जब उद्धव ने बैठक बुलाई थी तो विधायकों ने उनसे कहा था कि ढाई साल के मुख्यमंत्री के फ़ॉर्मूले पर बीजेपी से लिखित में आश्वासन लिया जाना चाहिए।
क्या झुकेगी शिवसेना?
शिवसेना के तेवर देखकर नहीं लगता कि वह झुकेगी। लेकिन कहा जा रहा है कि नितिन गडकरी को महाराष्ट्र की कमान देने पर वह राजी हो सकती है। क्योंकि शिवसेना यहां तक कह चुकी है कि बीजेपी के पास अगर बहुमत है तो वह सरकार बनाने की कोशिश करे, हम उसे पहले विधानसभा में हरायेंगे और फिर सरकार बनाने की तैयारी करेंगे। संजय राउत ने जब 170 विधायकों के समर्थन होने का दावा किया था तो राजनीतिक गलियारों में हैरानी हुई थी कि जिस पार्टी के पास सिर्फ़ 56 विधायक हों और कुछ निर्दलीयों का समर्थन उसे हासिल हो तो वह कैसे 170 विधायकों के समर्थन का दावा कर सकती है।
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कुल मिलाकर तीन दिनों में इस बात का पता चल जायेगा कि क्या महाराष्ट्र में कोई सरकार बनेगी या नहीं? या फिर राष्ट्रपति शासन लगेगा। भगवा गठबंधन की सरकार बनना शिवसेना के रुख पर निर्भर है जबकि कांग्रेस अगर शिवसेना-एनसीपी की सरकार को समर्थन देने पर विचार करे तो भी राज्य में नई सरकार बन सकती है। फिलहाल सभी राजनीतिक दल सियासी सौदेबाज़ी में जुटे हैं और बहुत संभलकर ही पत्ते खोल रहे हैं।
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