महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के बीच न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ-साथ सत्ता में किसकी क्या हिस्सेदारी रहेगी इस पर बैठकों का दौर जारी है। शिवसेना को 5 साल के लिए मुख्यमंत्री का पद दें या ढाई साल के लिए, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बीच चर्चा हो सकती है।
बताया जाता है कि शिवसेना की तरफ से जो प्रस्ताव दिया गया है उसमें मुख्यमंत्री उनका तथा एनसीपी और कांग्रेस को उप मुख्यमंत्री पद देने की बात कही गयी है। इन दोनों पदों को छोड़कर शिवसेना को 14, एनसीपी को 13 और कांग्रेस को 11 मंत्रीपद दिए जाने का प्रस्ताव है।
सूत्रों से जो ख़बरें मिल रही हैं, उसके अनुसार एनसीपी की तरफ से इस प्रस्ताव में जो संशोधन हो सकता है, वह यह कि मुख्यमंत्री पद का बंटवारा ढाई-ढाई साल के लिए हो। ऐसा तर्क इसलिए दिया जा रहा है कि दोनों दलों के विधायकों की संख्या में ज़्यादा फर्क नहीं है। एनसीपी के पास 54 विधायक हैं तो शिवसेना के पास 56। यदि ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद का बंटवारा होता है तो उप मुख्यमंत्री पद कांग्रेस को 5 साल के लिए देने की बात कही जा रही है।
कांग्रेस सत्ता में शामिल होगी या नहीं, इस निर्णय पर पार्टी के प्रदेश स्तर के नेताओं की राय को पार्टी हाई कमान महत्व देने वाला है, इस बात का संकेत वरिष्ठ नेता अहमद पटेल की तरफ से दिया गया है। लेकिन पार्टी के नेताओं की जो राय निकलकर आ रही है उसके मुताबिक़, पार्टी को उप मुख्यमंत्री पद से परहेज करना चाहिए। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि इस पद को लेकर कांग्रेस के नेताओं में आपसी गुटबाज़ी उभर सकती है जिससे पार्टी वर्तमान में बचना चाहती है।
एक ख़बर यह भी है कि शरद पवार मंत्रालयों के विभाजन में कांग्रेस को समान हिस्सा देना चाहते हैं। इसे लेकर जो तर्क दिया जा रहा है, वह है स्थिर सरकार का गठन। सत्ता के इस फ़ॉर्मूले के अलावा बुधवार को देर रात तक कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं की साझा बैठक हुई। मीडिया की भीड़भाड़ से बचने के लिए इस बैठक के स्थान को अज्ञात रखा गया था।
शरद पवार के आवास से बुधवार शाम को जब अजीत पवार बाहर निकले तो बड़ी संख्या में मीडिया कर्मियों ने उन्हें घेर लिया था। मीडिया कर्मियों से छुटकारा पाने के लिए अजीत पवार बड़ी तेजी से पवार के घर से बाहर आए और यह कहते हुए गाड़ी में बैठ गए कि वह बारामती जा रहे हैं और बैठक रद्द हो गयी है। बस, पलक झपकते ही न्यूज़ चैनल्स पर यह ख़बर छ गई कि अजीत पवार नाराज होकर बारामती चले गए और सरकार गठन की कोशिशों को झटका लगा है।
इस मामले में कुछ ही देर में शरद पवार ने भी प्रतिक्रिया जारी कर दी कि पत्रकार थोड़ा सावधानी बरतें। लेकिन बात नहीं बनती देख एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने नए बैठक स्थल पर पत्रकारों को बुलाया और बैठक से बाहर निकलकर बताया कि ‘सब कुछ ठीक है’। पाटिल ने बताया कि अजीत पवार ही नहीं दोनों दलों के सभी प्रमुख नेता बैठक में शामिल हैं और चर्चा कर रहे हैं और बैठक में साझा कार्यक्रम के लिए शिवसेना के घोषणा पत्र को आधार बनाया गया है। कांग्रेस-एनसीपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था इसलिए उनका घोषणा पत्र साझा जारी हुआ था जबकि शिवसेना-बीजेपी ने साथ चुनाव लड़ते हुए भी अलग-अलग घोषणा पत्र जारी किया था।
शिवसेना ने 10 रुपये में भरपेट भोजन और एक रुपये में स्वास्थ्य सेवा देने के दो प्रमुख वादे अपने घोषणा पत्र में किये थे। इन दोनों वादों से कितना आर्थिक भार सरकार पर पड़ने वाला है, इस बात पर भी बैठक में चर्चा हुई है। यही नहीं, समान नागरिक संहिता तथा मुसलिम आरक्षण पर शिवसेना के रुख को लेकर भी चर्चा हुई है। अयोध्या विवाद पर फ़ैसला आ गया है, लिहाजा राम मंदिर अब बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है।
किसानों की कर्जमाफ़ी, ग़रीब किसानों को 10,000 रुपये की आर्थिक सहायता, 300 यूनिट तक बिजली दर में 30 फ़ीसदी की कमी, ज्येष्ठ नागरिकों को अयोध्या, चारधाम, वैष्णो देवी, काशी और कैलाश मानसरोवर यात्रा जैसे मुद्दों पर कांग्रेस-एनसीपी को कोई आपत्ति नहीं है। मुख्य मुद्दा है - सत्ता के समान बंटवारे का और लगता है कि कुछ बैठकों के बाद कांग्रेस-एनसीपी के नेताओं की बैठक शिवसेना के नेताओं से होगी। यह भी कहा जा रहा है कि इस विषय में महत्वपूर्ण निर्णय शरद पवार और उद्धव ठाकरे के बीच होने वाली बैठक में लिया जाएगा।
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