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चुनावी धांधलीः महाराष्ट्र में 5,04,313 'अतिरिक्त' वोटों का हिसाब कौन देगा?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के मतदाता डेटा विश्लेषण से पता चला है कि गिने गए वोटों और डाले गए वोटों के बीच काफी अंतर है। केंद्रीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के अनुसार, अंतिम मतदाता मतदान 66.05% था, जो कुल 64,088,195 वोटों का प्रतिनिधित्व करता है (30,649,318 महिला; 33,437,057 पुरुष; 1820 अन्य)। हालाँकि, गिने गए कुल वोटों का जोड़ 64,592,508 है, जो कुल पड़े वोटों से 504,313 अधिक है।

5,04,313 का यह अंतर राज्य भर में गिने गए अतिरिक्त वोटों को दर्शाता है। जबकि आठ विधानसभा क्षेत्रों में गिने गए वोटों की संख्या डाले गए वोटों से कम थी, शेष 280 निर्वाचन क्षेत्रों में, गिने गए वोट डाले गए वोटों से अधिक थे। सबसे बड़ी विसंगतियां अष्टी निर्वाचन क्षेत्र में देखी गईं, जहां मतदान से 4,538 अधिक वोट गिने गए थे। यानी जितने वोट पड़े नहीं, उससे ज्यादा गिने गए। उस्मानाबाद निर्वाचन क्षेत्र में भी अंतर 4,155 वोटों का है।

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विधानसभा चुनाव की ये गड़बड़ियां मई 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान मतदाता मतदान डेटा और फॉर्म 17सी के संबंध में उठाई गई चिंता की याद दिलाती हैं। दरअसल, फॉर्म 17सी हर मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों की संख्या को रिकॉर्ड करता है। उस समय, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने प्रारंभिक और अंतिम मतदान आंकड़ों के बीच 5-6% की विसंगतियों का हवाला देते हुए, हर मतदान चरण के 48 घंटों के भीतर मतदान केंद्र-वार मतदाता मतदान डेटा जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के तर्कों का हवाला देते हुए अनुरोध को नामंजूर कर दिया कि इस तरह के खुलासे से तार्किक कठिनाइयाँ पैदा हो सकती हैं, डेटा के दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ सकती हैं और स्पष्ट वैधानिक आधार का अभाव है। ईसीआई ने कहा कि फॉर्म 17सी डेटा उम्मीदवारों के एजेंटों को प्रदान किया जाता है, लेकिन सार्वजनिक प्रसार के लिए नहीं है। लेकिन 10 साल पहले इसी फॉर्म 17सी का डेटा सार्वजनिक किया जाता था। इस पर कभी रोक नहीं थी। चुनाव आयोग अपने पिछले रिकॉर्ड को क्यों नहीं खंगालता।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव ने चुनावी प्रक्रिया में डेटा पारदर्शिता पर नए सिरे से सवाल उठा दिया है। चुनाव आयोग ने पिछली विसंगतियों के लिए डेटा को अपडेट करने और मिलान करने की प्रक्रिया को जिम्मेदार ठहराया है। सार्वजनिक रूप से उपलब्ध, विस्तृत मतदान केंद्र डेटा का न होना, जैसा कि फॉर्म 17सी के संबंध में एडीआर की पिछली याचिका में बताया गया था, वही स्थिति अभी भी बनी हुई है। फॉर्म 17सी के जरिए न मिलने वाले डेटा और उसके सत्यापन के अभाव में सारी प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण बन गई है।

इसके अलावा, मौजूदा विसंगतियां चुनाव नतीजों पर उनके संभावित प्रभाव के बारे में सवाल उठाती है। खासकर जहां कम वोटों से हार-जीत हुई है। ऐसे विधानसभा क्षेत्रों में ये संख्याएँ डाले गए और गिने जा रहे वोटों में अंतर का कोई पैटर्न प्रकट नहीं करती हैं। लेकिन कुछ सौ या हज़ार वोटों का अंतर निर्णायक हो सकता है, और तथ्य यह है कि ऐसी विसंगतियां कई निर्वाचन क्षेत्रों में सामने आई हैं। ऐसे में नतीजे कैसे भरोसेमंद हो सकते हैं।

नवापुर का उदाहरण

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, नवापुर (अनुसूचित जनजाति) विधानसभा क्षेत्र में, मतदाताओं की कुल संख्या 2,95,786 है और मतदाता मतदान 81.15% हुआ। इसका मतलब है कि 20 नवंबर को 2,40,022 वोट पड़े। हालांकि, आयोग द्वारा प्रकाशित नतीजों के मुताबिक, कुल 2,41,193 वोट गिने गए, जो डाले गए वोटों से 1,171 वोट अधिक है। अब देखिए- यहां जीत का अंतर 1,122 वोटों का मामूली अंतर था। यानी 1171 वोट जो अधिक थे, और हार-जीत का अंतर 1122 वोटों का है तो ये जो 1171 अधिक वोट हैं, वो इस विधानसभा के नतीजे को संदिग्ध बनाते हैं, क्योंकि हार-जीत में सिर्फ 1122 वोटों का अंतर है।

मावल विधानसभा क्षेत्र

एक और निर्वाचन क्षेत्र का उदाहरण लीजिए। जहां मतदान की तुलना में कम वोट गिने गए। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, मावल विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या 3,86,172 है और मतदान 72.59% हुआ। इसका मतलब है कि 20 नवंबर, 2024 को 2,80,319 वोट पड़े। हालांकि, आयोग द्वारा प्रकाशित नतीजों के अनुसार, कुल वोटों की गिनती 2,79,081 थी, जो डाले गए वोटों से 1,238 वोट कम है। इस विधानसभा क्षेत्र के नतीजे को क्या कहा जाए।

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हालांकि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पर्चियों के ऑपरेशन के दौरान क्लर्क की गलतियों, डेटा एंट्री या तकनीकी खराबी सहित विभिन्न वजहों से विसंगतियां हो सकती हैं, लेकिन पारदर्शिता के लिए मजबूत ऑडिटिंग क्यों नहीं कराई जाती।

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क़मर वहीद नक़वी
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