महाराष्ट्र में जोड़-तोड़ कर बनी बीजेपी-एकनाथ शिंदे गुट की सरकार का विस्तार एक बार फिर टलता दिख रहा है। गुरुवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि दो से तीन दिन के अंदर कैबिनेट विस्तार होगा लेकिन उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस बारे में कोई तारीख तय होने की बात से इनकार किया।
30 जून को बनी यह सरकार लगभग एक महीने बाद भी कैबिनेट का विस्तार नहीं कर पाई है। सिर्फ मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री इतने बड़े महाराष्ट्र का कामकाज किस तरह संभाल रहे हैं, यह समझ पाना बेहद मुश्किल है।
शपथ लेने के बाद से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस 5 बार दिल्ली का दौरा कर चुके हैं। यहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं से मुलाकात की है।
लेकिन कैबिनेट का विस्तार क्यों नहीं हो पा रहा है, यह समझ से परे है। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कैबिनेट विस्तार ना होने की वजह से शिंदे गुट के नेताओं में बेचैनी है।
बीजेपी के एक पूर्व मंत्री ने अखबार से कहा कि विभागों को लेकर मनमुटाव होना दूसरी अहम बात है। बड़ी बात विधायकों को यह समझाना है कि सभी की महत्वाकांक्षाएं पूरी नहीं हो सकती और सभी विधायक मंत्री नहीं बन सकते।
निश्चित रूप से इससे पता चलता है कि कैबिनेट का विस्तार कर पाना मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए बेहद मुश्किल है।
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विधायकों की महत्वाकांक्षा
महाराष्ट्र की कैबिनेट में मुख्यमंत्री सहित कुल 43 मंत्री बनाए जा सकते हैं। एकनाथ शिंदे के साथ आए विधायकों में 8 पूर्व मंत्री हैं। इनमें से 4 विधायक महा विकास आघाडी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे जबकि चार विधायक राज्य मंत्री।
शिवसेना में हुई बगावत के बाद एकनाथ शिंदे के साथ आए पूर्व मंत्रियों के साथ ही विधायकों की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है और वे मंत्री पद चाहते हैं। दादा भुसे, उदय सामंत, अब्दुल सत्तार, शंबुराज देसाई जैसे बड़े नेता ठाकरे सरकार में मंत्री रहे थे और वे कैबिनेट विस्तार के इंतजार में हैं।
क्योंकि एकनाथ शिंदे-बीजेपी की सरकार में बीजेपी के पास शिंदे गुट से कहीं ज्यादा विधायक हैं ऐसे में निश्चित रूप से बीजेपी अपने ज्यादा से ज्यादा नेताओं को मंत्रिमंडल में एडजस्ट करवाना चाहती है।
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वेट एंड वॉच पॉलिसी
मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले विधायकों की बड़ी तादाद को देखते हुए बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने इस मामले में वेट एंड वॉच पॉलिसी अपना ली है। पार्टी चाहती है कि पहले शिंदे गुट के अंदर जो बेचैनी का माहौल है वह खत्म हो।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “बहुत सारी दिक्कतें हैं, शिंदे गुट के साथ 50 विधायक हैं, इसमें से 40 विधायक शिवसेना के हैं और हर कोई मंत्री बनना चाहता है।”
बीजेपी के एक चुनावी प्रबंधक ने अखबार से कहा कि अगर हम कर्नाटक, मध्य प्रदेश और बिहार में बनी जोड़-तोड़ और गठबंधन वाली सरकारों को देखें तो कैबिनेट विस्तार के लिए 1 महीने का वक्त ज्यादा नहीं है।
बता दें कि कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस और मध्य प्रदेश में कांग्रेस विधायकों की बगावत के बाद वहां की सरकारें गिर गई थी और बीजेपी ने इन राज्यों में अपनी सरकार बनाई थी। जबकि बिहार में बीजेपी जेडीयू व कुछ अन्य दलों के साथ सरकार में है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है और शिवसेना के दोनों गुट और बीजेपी की नजरें इस ओर भी लगी हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट में विधायकों की अयोग्यता सहित कई मसलों पर सुनवाई होनी है।
बीजेपी के एक राष्ट्रीय महासचिव ने अखबार से कहा, “अगर सरकार कैबिनेट का विस्तार कर देती है और मान लीजिए कि तीन से चार बागी विधायक उद्धव ठाकरे गुट के पास वापस चले जाते हैं तो इससे मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।”
उन्होंने कहा कि अगर शिंदे गुट दो-तिहाई बहुमत हासिल करने में सफल नहीं रहा तो न सिर्फ इससे मुसीबत बढ़ेगी बल्कि शिंदे-फडणवीस सरकार की बुनियाद भी हिल जाएगी।
बीजेपी के एक पूर्व मंत्री ने कहा, “मुश्किल केवल शिंदे गुट की ही नहीं है। बीजेपी के पास 106 विधायक हैं इसलिए हमारी पार्टी भी सहायक की भूमिका में नहीं दिखना चाहती। बीजेपी के सहयोग के बिना शिंदे गुट महाराष्ट्र में सरकार नहीं चला सकता।”
अमित शाह की भूमिका
एक सूत्र ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कैबिनेट के विस्तार में अहम भूमिका निभाने जा रहे हैं। शाह इस मामले में मंत्री बनने वाले उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने और विभागों के बंटवारे को लेकर काम कर रहे हैं।
कैबिनेट विस्तार के बाद विभागों के बंटवारे को लेकर भी रार देखने को मिलेगी क्योंकि गृह, वित्त, पीडब्ल्यूडी, राजस्व जैसे बड़े विभागों को बीजेपी और शिंदे गुट दोनों ही लेना चाहेंगे।
एकनाथ शिंदे और बीजेपी ने मिलकर महाराष्ट्र में सरकार तो बना ली है लेकिन कैबिनेट का विस्तार सहित कई अहम मसले हैं जिनसे पार पाना दोनों के लिए आसान नहीं है।
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