एनसीपी नेता अजीत पवार पार्टी से बाग़ावत कर बीजेपी की सरकार बनाने क्यों चले गए? वह भी वैसे समय में जब वह एनसीपी के विधायक दल के नेता चुन लिए गए थे, शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनने वाली थी और उनको कोई बड़ा पद मिलने की उम्मीद थी। ऐसे समय में क्यों चले गए जब उनको बीजेपी में शामिल होने के लिए विधायकों का पर्याप्त समर्थन भी नहीं था और ऐसे में बीजेपी की सरकार पर ही तलवार लटकती दिखने वाली थी? क्या अजीत पवार सिर्फ़ उप-मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी के साथ चले गए? बहुत संभव था कि शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी सरकार में भी उन्हें उपमुख्यंत्री का पद मिलता। क्या इसकी वजह कोई और है? शिवसेना नेता संजय राउत ने आरोप लगाया है कि अजीत पवार ईडी से डरे हुए हैं। कई और नेताओं ने भी ऐसे ही आरोप लगाए। तो क्या सच में ऐसा है?
कई रिपोर्टों में कहा गया है कि अजीत पवार को बीजेपी का साथ देने में दो तरह के फ़ायदे होंगे और इसलिए ही उन्होंने बीजेपी का साथ दिया है। एक यह कि उप-मुख्यमंत्री का पद तो ही है, दूसरा माना जा रहा है कि इससे उन्हें एन्फ़ोर्समेंट डाटरेक्टरेट यानी ईडी से राहत मिल सकती है। बता दें कि महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक यानी एमएससीबी घोटाले में ईडी ने इसी साल सितंबर महीने में अजीत पवार सहित अन्य 70 के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है। यह घोटाला क़रीब 25 हज़ार करोड़ रुपये का है।
2007 और 2011 के बीच कथित रूप से एमएससीबी को 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुक़सान पहुँचाने की बात भी सामने आई थी। अजीत पवार उस समय बैंक के निदेशक थे। आरोप लगाया गया कि सहकारी चीनी कारखानों के लिए क़र्ज़ बाँटने में अनियमितताएँ बरती गई थीं।
इस बात का ज़िक्र अजीत के चाचा शरद पवार ने भी इसी साल सितंबर महीने में तब किया था जब यह ख़बर आई थी कि अजीत ने विधायक पद से इस्तीफ़ा दे दिया। तब 28 सितंबर की एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, शरद पवार ने कहा था कि अजीत के बेटे ने उन्हें बताया कि ईडी की तरफ़ से मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनका (शरद पवार) नाम लेने पर अजीत 'बेचैन' थे।
सिंचाई घोटाले में भी अजीत का नाम?
वैसे, अजीत पवार के ख़िलाफ़ यही एकमात्र केस नहीं है। उनका नाम सिंचाई घोटाले में भी आया था। माना जाता है कि महाराष्ट्र में 1999 से 2009 के बीच कथित तौर पर 70 हजार करोड़ रुपये का सिंचाई घोटाला हुआ। यह घोटाला राजनेताओं, नौकरशाहों और कॉन्ट्रैक्टर्स की मिलीभगत से हुआ। पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र एंटी-करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी ने अजीत पवार को इस घोटाले में आरोपी बनाया था। यह कार्रवाई तब हुई जब महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार थी। इस मामले की जाँच जारी है।
बहरहाल, हाल के घटनाक्रमों में जब बीजेपी को लगा कि शिवसेना के साथ उसकी बात नहीं बन पा रही है तो इसने अजीत पवार में अपनी संभावनाएँ देखीं। यह संभावना इसलिए भी दिखी क्योंकि अजीत के अपने चाचा और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से कई मुद्दों पर मतभेद थे। पार्टी में विरासत को लेकर भी मतभेद की ख़बरें थीं। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले राजनीति में आ गई हैं। रिपोर्टों के अनुसार ऐसे में अजीत पवार को शायद लगता है कि पार्टी की कमान उनके हाथ नहीं आए।
तो क्या इन्हीं परिस्थितियों में शिवसेना के संजय राउत ने आरोप लगाए हैं कि अजीत पवार ईडी से डरे हुए हैं?
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