छह महीने की रस्साकसी के बाद शिवसेना पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह एकनाथ शिंदे
गुट को सौंप दिया गया है। चुनाव आयोग ने शुक्रवार की शाम दिये अपने फैसले में पार्टी
का चुनाव चिन्ह और नाम शिंदे गुट को देने का फैसला किया। आयोग के फैसले का आधार सांसदों
और विधायकों की संख्या बना।
चुनाव आयोग के फैसले के बाद शिंदे गुट पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह इस्तेमाल
करता रहेगा। उद्धव ठाकरे अस्थाई तौर पर आवंटित किया गया मशाल चुनाव चिन्ह इस्तेमाल करते रहेंगे, जबकि पार्टी का नया नाम उन्हें चुनाव आयोग के पास रजिस्टर कराना होगा।
चुनाव आयोग के फैसले के बाद उद्धव ठाकरे ने चुनाव और केंद्र की मोदी सरकार
पर हमला बोला है। प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उद्धव ने कहा कि 'गद्दार
हमेशा गद्दार' ही रहता है। चुनाव आयोग का यह फैसला लोकतंत्र की हत्या है।'
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उद्धव ने कहा कि मैंने चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट का फैसला
आने तक इंतजार करने को कहा थ, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आगे भविष्य में कोई भी विधायकों
या सांसदों को खरीदकर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन सकता है।' चुनाव
आयोग ने जो फैसला दिया है, वो लोकतंत्र के लिए घातक है। प्रधानमंत्री
को अब लालकिले से घोषणा कर देनी चाहिए कि लोकतंत्र खत्म हो गया है।
यह गलत फैसला है, सीधे-सीधे चोरी
है. एक या दो महीने में बीएमसी के चुनाव की तारीखों का भी ऐलान कर दिया जाएगा। ठाकरे ने कहा, 'हम सुप्रीम कोर्ट में लड़ रहे हैं। देश में सरकार की दादागीरी चल रही है।
हिम्मत है तो चुनाव मैदान में आइये, चुनाव लड़िए। वहां जनता बताएगी कि कौन असली है और कौन नकली
शिवसेना का गठन उद्धव के पिता बाला साहब ठाकरे ने 1966 में मराठी मानुष के नाम
पर की थी. जो शुरुआत से ही अपने हिंदुत्ववादी विचारों को लेकर आगे बढ़ती रही।
बालासाबह की मौत से पहले वह ही पार्टी के सर्वेसर्वा रहे। शिवसेना और भाजपा बहुत
लंबे समय तक महाराष्ट्र में हिंदुत्व की राजनीति के सहारे एक दूसरे के साथ बने रहे।
महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा को पैर जमाने का मौका मिलने में शिवसेना और बालासाहब ठाकरे का बड़ा योगदान रहा। शिवसेना और बालासाहब की हैसियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कई चुनाव जीतने के बाद भी वे कभी मुख्यमंत्री नहीं बने।
2019 के चुनाव से पहले भाजपा और शिवसेना भी साथ ही हुआ करते थे। लेकिन 2019 के
चुनाव में गठबंधन को लेकर बात नहीं बनने के कारण शिवसेना गठबंधन से बाहर आ गई और उसने
एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी का निर्माण किया और ठाकरे परिवार
से पहली बार उद्धव मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने ढाई साल के
करीब सरकार भी चलाई। लेकिन बाद में एकनाथ शिंदे ने पार्टी से बगावत कर भाजपा के
साथ सरकार बना ली। जिसकी अंतिम परिणति आज ठाकरे परिवार से पार्टी का नाम और सिंबल
छिन जाने के रूप में हुई।
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