महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और एक वक़्त में मोदी-शाह की जोड़ी के चहेते देवेंद्र फडणवीस की क्या बीजेपी आलाकमान के दरबार में सियासी हैसियत कम हो रही है। यह बात महाराष्ट्र की सियासत में बीते कुछ वक़्त में हुए राजनीतिक घटनाक्रमों के विश्लेषण से पता चलती है। हुआ ये है कि महाराष्ट्र में फडणवीस के राजनीतिक विरोधियों का क़द बीजेपी आलाकमान ने बढ़ाया है और इसे लेकर अंदरखाने चर्चा है कि आख़िर ऐसा करने के पीछे क्या वजह है।
पहले बीजेपी ने विनोद तावड़े को सचिव से प्रमोशन देकर पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया। फिर चंद्रशेखर बावनकुले को महाराष्ट्र की विधान परिषद में भेज दिया।
इस ख़बर को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा। साल 2014 तक यानी केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन से पहले महाराष्ट्र में गोपीनाथ मुंडे, नितिन गडकरी और एकनाथ खडसे बड़े नेता थे। मुंडे का निधन हो गया, गडकरी केंद्रीय मंत्रिमंडल में चले गए और खडसे महाराष्ट्र की विधानसभा में विरोधी दल के नेता थे।
लेकिन कुछ समय बाद खडसे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और फडणवीस ने उनका इस्तीफ़ा ले लिया। खडसे को साल भर के भीतर क्लीन चिट भी मिल गयी लेकिन फडणवीस ने उन्हें मंत्रिमंडल में वापस नहीं लिया।
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने खडसे को टिकट ही नहीं दिया और कहा जाता है कि फडणवीस ने ही उन्हें किनारे लगाया था। एकनाथ खडसे की ही तरह वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर बावनकुले, विनोद तावड़े, प्रकाश मेहता, दिलीप कांबले का भी टिकट काट दिया गया था। ये सभी नेता फडणवीस सरकार में मंत्री थे।
कहा जाता है कि फडणवीस का क़द इतना ऊंचा हो गया था कि 2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के दौरान गडकरी भी अपने क़रीबियों को टिकट नहीं दिला सके थे। गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे को भी फडणवीस से सियासी अदावत के चलते प्रदेश अध्यक्ष का पद नहीं मिल सका था। लेकिन बीजेपी ने पंकजा की नाराज़गी को समझते हुए उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाने के साथ ही मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य का प्रभारी भी बनाया है।
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद पंकजा मुंडे, एकनाथ खडसे, चंद्रशेखर बावनकुले आदि ने बग़ावती सुर बुलंद किये थे लेकिन हाईकमान ने तब मामला शांत करा दिया था। लेकिन खडसे ने अक्टूबर, 2020 में बीजेपी छोड़ दी और वे एनसीपी में शामिल हो गए।
खडसे राज्य में ओबीसी आबादी का बड़ा चेहरा हैं और निश्चित रूप से बीजेपी को इस बात का अहसास हुआ कि खडसे के जाने और पंकजा मुंडे सहित बाक़ी नेताओं की नाराज़गी उसे भारी पड़ सकती है। बीजेपी को इस बात का भी अहसास हुआ है कि तावड़े और बावनकुले का टिकट काटा जाना ग़लत था। बावनकुले को फडणवीस का करीबी माना जाता है।
महाराष्ट्र में कुछ महीने बाद बीएमसी के चुनाव होने हैं और विधानसभा चुनाव के बाद इस चुनाव को सबसे बड़ा चुनाव माना जाता है।
बीजेपी ने जिस तरह फडणवीस के विरोधियों का सियासी क़द बढ़ाया है, उससे लगता है कि पार्टी फडणवीस को 2024 के चुनाव में चेहरा नहीं बनाना चाहती।
कहा जाता है कि राव साहब दानवे को भी फडणवीस ने किनारे लगाने की कोशिश की थी। लेकिन दानवे मोदी सरकार में मंत्री हैं।
महा विकास अघाडी सरकार के नेता लगातार इस बात को कहते हैं कि वे 25 साल तक महाराष्ट्र की सत्ता में रहेंगे। ऐसे में बीजेपी हाईकमान महाराष्ट्र जैसे अहम राज्य की सत्ता से ख़ुद को लंबे वक़्त तक दूर नहीं रखना चाहता और अपनी ग़लतियों को सुधारते हुए उसने उन नेताओं को सियासी अहमियत देना शुरू किया है, जिन्हें फडणवीस के राज में दरकिनार कर दिया गया था।
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