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प्रतीकात्मक तसवीर

महाराष्ट्र: पानी से भी सस्ता होगा तो सड़कों पर ही दूध बहाएँगे किसान!

‘हमारा देश कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था और यहाँ दूध-दही की नदियाँ बहा करती थीं।’ बड़े बुजुर्गों के मुँह से आपने भी यह बात कई बार सुनी होगी लेकिन इस युग में देश का किसान पानी से सस्ता दूध बेचने को मजबूर है, क्या यह आपको पता है? आप शहरों या महानगरों में रहते होंगे तो आपको इस बात पर यक़ीन नहीं होगा लेकिन वस्तु स्थिति यही है। महाराष्ट्र में दुग्ध उत्पादक किसान 17 से 25 रुपये प्रति लीटर से दूध बेचने को मजबूर हैं, भले आप रोज़ सुबह इसी दूध को 50 रुपये या उससे अधिक भाव में खरीदते हों। लिहाज़ा प्रदेश में सड़कों पर, मंदिरों में अभिषेक कर दूध बहाया जा रहा है।

देश का किसान पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहा था और अब कोरोना जैसी महामारी ने जीवन जीने के उसके जज्बे पर भारी आघात किया है। महाराष्ट्र देश में सबसे ज़्यादा किसान आत्महत्या से पीड़ित राज्य की श्रेणी में आता है। औद्योगीकरण और शहरीकरण के चलते यहाँ का किसान अपनी खेती को व्यावसायिक रूप देने की जद्दोजहद में लगा रहता है लेकिन हर दूसरे या तीसरे साल पड़ने वाली अकाल की छाया उसके जीवन में अंधकार कर जाती है। अब ऐसे में लाखों दूध उत्पादक किसानों पर नया संकट खड़ा हो गया है। 

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राज्य सरकार का कहना है कि वह किसानों के साथ है और जो अलग-अलग संगठनों से अलग-अलग माँग आ रही है उसमें बीच का रास्ता तलाशने में जुटी है। जबकि किसान नेता राजू शेट्टी ने इसके लिए केंद्र सरकार की नीतियों को ज़्यादा ज़िम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि इस परिस्थिति में राज्य सरकार पाँच रुपये प्रति लीटर से सब्सिडी तुरंत प्रभाव से किसानों को भेजे ताकि उन्हें दिलासा मिले।

साल 2018 में जब प्रदेश में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार थी, जुलाई महीने की इन्हीं तारीख़ों में दुग्ध उत्पादक किसानों ने ऐसा ही आंदोलन किया था। उस समय मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुजरात से रेलवे के द्वारा दूध की गाड़ियाँ मँगवाई थीं लेकिन किसानों ने सभी को ठप कर सरकार को उनकी माँगें मानने को मजबूर कर दिया था। 

उस समय दूध की दर 25 रुपये प्रति लीटर देने पर सरकार राज़ी हुई थी और आज दो साल बाद किसान यह दर बढ़ाकर 30 रुपये करने की माँग कर रहे हैं और 5 रुपये प्रति लीटर दूध की सब्सिडी सीधे उनके खाते में स्थानांतरित किये जाने की माँग कर रहे हैं। कोरोना की वजह से जारी लॉकडाउन की वजह से दूध की क़ीमतों में भारी गिरावट आ गयी है। 
दूध उत्पादक संघ किसानों को 17 से 25 रुपये प्रति लीटर के अंदर ही दूध का भाव दे रहे हैं जिसकी वजह से प्रदेश के क़रीब 47 लाख किसानों के समक्ष जीवनयापन का संकट खड़ा हो गया है।

फ़ैसले में अड़चन क्या?

दुग्ध उत्पादकों की समस्या पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों को मिलकर निर्णय लेना है और शायद इसी वजह से भी यह अड़चन बढ़ रही है। प्रदेश में एक करोड़ 19 लाख लीटर गाय के दूध का रोज़ाना उत्पादन होता है जबकि 11 लाख लीटर भैंस का दूध। दो साल पहले जब दूध की क़ीमतें बढ़ाई गयी थीं तो केंद्र सरकार ने दूध के पाउडर का आयात खोल दिया और आज क़रीब 10000 टन दूध पाउडर आयात किया जा रहा है। यह आयात ऐसी परिस्थिति में किया जा रहा है जबकि महाराष्ट्र में ही हर दिन डेढ़ लाख लीटर दूध से बना पाउडर अतिरिक्त बचता है। यही नहीं, केंद्र सरकार ने रबड़ी, आम्रखंड, श्रीखंड और घी जैसे दूध के उत्पाद के ऊपर 12 प्रतिशत जीएसटी लगा दी है, जबकि एग्रीकल्चर प्रोडक्ट पर जीएसटी है ही नहीं। इस निर्णय से दूध की क़ीमतें प्रभावित होती हैं, साथ ही जानवरों के रखरखाव और महँगाई के कारण दूध उत्पादन की लागत भी बढ़ रही है। 

महाराष्ट्र में स्वाभिमानी शेतकरी (किसान) संगठन के प्रमुख और पूर्व सांसद राजू शेट्टी विगत कई वर्षों से किसानों तथा दूध उत्पादकों के मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। किसानों के संघर्ष को लेकर ही पिछली बार उन्होंने बीजेपी सरकार का साथ छोड़ा था। इस बार मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समर्थित दुग्ध उत्पादक शेतकरी (किसान) संघर्ष समिति भी आंदोलन में उनके साथ है। लेकिन दोनों की माँगों में थोड़ा अंतर है जिसको लेकर सरकार भी दुविधा में है। 

दुग्ध संघों की अलग-अलग माँगें

राजू शेट्टी का संगठन पाँच रुपये प्रति लीटर दूध की दर बढ़ाए जाने की माँग कर रहा है, जबकि किसान संघर्ष समिति 10 रुपये प्रति लीटर। यह अंतर दूध पाउडर दरों में दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर भी है। और दोनों संगठन इसमें क्रमशः 30 रुपये व 50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से अनुदान की माँग कर रहे हैं। मंगलवार को इस संबंध में प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी विकास मंत्री सुनील केदार के साथ इन संगठन के नेताओं से वार्ता भी हुई, लेकिन माँगों में विविधता के कारण कुछ ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका। 

मंत्री केदार ने कहा कि डेयरी किसानों की विभिन्न माँगों पर निर्णय कैबिनेट की बैठक में लिया जाएगा और इस बात पर ज़ोर दिया कि किसान परेशान नहीं हों। आज प्रदेश में 52 लाख लीटर दूध अतिरिक्त हो रहा है जो लॉकडाउन की वजह से ग्राहकों तक पहुँच नहीं पा रहा।

सरकार की तरफ़ से लॉकडाउन में जो उपाय किये गए हैं उनमें निजी दुग्ध उत्पादक संघ या डेयरी को अलग किया गया है जिनकी संख्या क़रीब 78 फ़ीसदी के आसपास है। सरकार की शर्तों के अनुरूप जो दूध की खरीदारी हो रही है वह क़रीब 10 लाख लीटर प्रतिदिन की है। यह संख्या प्रदेश के कुल दूध उत्पादन का 10 फ़ीसदी भी नहीं है। लिहाज़ा किसानों को बहुत नुक़सान हो रहा है।  किसान अपने दूध का भाव 30 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से चाहते हैं जिसकी वजह से महानंदा जैसी बड़ी डेयरी अपने क़रीब 80 फ़ीसदी किसानों का दूध वापस लौटा दे रही है। वही हाल गोकुल डेयरी के भी हैं। 

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गोकुल दूध उत्पादक संघ के अध्यक्ष रवींद्र आपटे कहते हैं कि वे वर्तमान में गाय का दूध 26 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से खरीदते हैं लेकिन किसानों की माँग 30 रुपये है। लेकिन आज की परिस्थितियों में हमें दूध के उत्पाद बेचने में बहुत परेशानी आ रही है। दूध पाउडर की दर 280 से घटकर 160 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गयी है। मक्खन 325 से 200 रुपये हो गया है। ऐसे में प्रति लीटर पर 8 से 10 रुपये का नुक़सान हो रहा है। आज उनके पास 2600 टन मक्खन और 2150 टन दूध पाउडर बचा हुआ है लेकिन भाव की वजह से बहुत परेशानी हो रही है।

महाराष्ट्र में दूध किसानों के इस आंदोलन ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। इस आंदोलन को हमेशा राजू शेट्टी और दूध उत्पादक किसान संघर्ष समिति ही लीड किया करते थे लेकिन इस बार विपक्ष में होने की वजह से भारतीय जनता पार्टी भी इसमें कूदने की तैयारी में है। पार्टी संगठन ने कहा कि यदि सरकार नहीं मानी तो 1 अगस्त से वे आंदोलन करेंगे। दरअसल, महाराष्ट्र में शुगर लॉबी और दूध उत्पादक संघ लॉबी, राजनीतिक पार्टियों के क़ब्ज़े में हैं। इनके अधिकतर संचालक या मालिक विधायक और मंत्री हैं। लिहाज़ा जब किसानों का मुद्दा उठता है तो राजनीति गरमाने लगती है। एक बार फिर यह मुद्दा गरमाया है और देखना है उद्धव ठाकरे सरकार इस मामले को कैसे सुलझाती है।
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संजय राय
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