हिंदूवादी संगठन सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाए जाने का मामला एक बार फिर चर्चा में है। इस बार यह चर्चा मुंबई उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार से पूछे गए सवाल की वजह से है। अदालत ने सरकार से पूछा है कि किसी भी संगठन पर प्रतिबंध लगाए जाने की क्या प्रक्रिया है? इस मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को होने वाली है।
सनातन संस्था पर पाबंदी लगाने का यह कोई नया मुद्दा नहीं है। महाराष्ट्र के ठाणे, नवी मुंबई, पनवेल, नाला सोपारा में हुए बम ब्लास्ट और डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, गौरी लंकेश की हत्याओं के मामले में इस संस्था का नाम जुड़ने लगा था। उसके बाद जब 2018 में मुंबई के नाला सोपारा में एक घर से विस्फोटक मिले और उससे सनातन संस्था का नाम जुड़ा तो विपक्ष में बैठी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस की तरफ़ से यह माँग उठी कि सनातन संस्था पर पाबंदी लगाई जाए। उस समय विधानसभा में गृह राज्यमंत्री दीपक केसरकर, जो शिवसेना के खाते से मंत्री थे, ने जवाब दिया था कि राज्य सरकार ने इस संस्था पर पाबंदी लगाने के लिए नया प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है।
केसरकर ने कहा था कि पुराने प्रस्ताव में कुछ खामियाँ थीं लिहाज़ा उन्हें सुधार कर नया प्रस्ताव भेजा गया। लेकिन 2018 को क़रीब दो साल हो गए। इस दौरान प्रदेश में सत्ता परिवर्तन भी हो गया। तब सनातन संस्था पर पाबंदी लगाने की माँग करने वाली कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस आज शिवसेना के साथ प्रदेश की सत्ता में बैठी हैं। महाराष्ट्र में नयी सत्ता स्थापित हुई उस समय भी कांग्रेस के सांसद हुसैन दलवाई ने यह माँग उठाई थी कि सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाया जाए।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या अब उद्धव ठाकरे सरकार सनातन संस्था पर पाबंदी लगाएगी? राजनीतिक पार्टियों के इन आश्वासनों के बीच साल 2018 में ही अरशद अली अंसारी ने एक याचिका मुंबई हाई कोर्ट में दाखिल की थी। उसने याचिका में कहा कि 2018 में उसने राज्य सरकार से माँग की थी कि ग़ैर कानूनी तथा हिंसा की गतिविधियाँ चलाने वाली सनातन संस्था के ख़िलाफ़ बंदी की कार्रवाई की जाए।
अली ने बुधवार को अदालत में कहा कि उसने सरकार से जो माँग की थी उसका जवाब उसे आज तक नहीं मिला है। लिहाज़ा इस मामले में उच्च न्यायालय ने जब राज्य सरकार से सवाल किया तो राज्य सरकार के वकील ने कहा कि प्रतिबंध लगाने का निर्णय केंद्र सरकार की तरफ़ से किया जाता है।
अदालत ने केंद्र सरकार के वकील से पूछा कि किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाने की क्या प्रक्रिया है? केंद्र सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि यह निर्णय राज्य सरकार की रिपोर्ट पर केंद्रीय गृह मंत्रालय लेता है।
राज्य सरकार ने पहले ही इस मामले में अपना प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है, लेकिन केंद्र की तरफ़ से कोई निर्णय उस पर नहीं हुआ है। अब केंद्र और राज्य में वैसे भी भीमा कोरेगाँव की जाँच को लेकर रिश्तों में खटास चल रही है। ऐसे में क्या केंद्र सरकार सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाएगी, यह एक बड़ा सवाल है। वैसे 4 मार्च को इस मामले की अगली सुनवाई है और केंद्र की तरफ़ से अदालत में क्या जवाब दिया जाएगा, इस पर सबकी नज़र रहेगी।
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