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महाराष्ट्र: चुनाव प्रबंधन में मज़बूत कौन- बीजेपी या कांग्रेस?

कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने कभी कहा था कि चुनाव काम से नहीं मैनेजमेंट से जीता जाता है। बीस साल बीत गये इस बात को। बीजेपी ने तो ये बात गांठ बांध ली और कांग्रेस इसे भूल गयी। इसलिए आज महाराष्ट्र के चुनाव में चुनाव प्रबंधन में भाजपा सबसे आगे दिख रही है और कांग्रेस सबसे पीछे। चुनाव परिणामों पर इसका खासा असर दिखाई देगा। बात करते हैं किसका कैसा है प्रबंधन और कौन कर रहा है।

भाजपा की पूरी तैयारी

लोकसभा चुनाव में हाथ जलाने के बाद अब भाजपा ने सारी ग़लतियां सुधारने का मन बना लिया है और चुनाव प्रबंधन के सारे इंतजाम कर लिये हैं। भाजपा ने लोकसभा चुनाव के एक महीने बाद ही महाराष्ट्र के लिए दो बड़े नेताओं अश्विनी वैष्णव और भूपेंद्र यादव की ड्यूटी लगा दी थी जिन्होंने आने के साथ ही विधानसभावार चुनाव परिणामों की समीक्षा की और उसी के हिसाब से बिसात बिछाना शुरू कर दिया। ये भाजपा की ही समझदारी का परिणाम है कि लोकसभा में कम सीटें मिलने के बाद भी भाजपा को अपनी महायुति में विधानसभा के लिए सबसे ज्यादा 154 सीट मिल गयी। इतना ही नहीं, उसने एकनाथ शिंदे की शिवसेना से अपने 15 और अजित पवार गुट से 6 लोगों को एडजस्ट भी कर दिया। जाहिर है ये सब चुनाव परिणाम के बाद भाजपा का साथ देंगे।

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भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सर्वे की पूरी जिम्मेदारी एक्सिस माय इंडिया को दी थी जिसका नुक़सान उनको समझ में आ गया। इसलिए इस बार एक्सिस माय इंडिया का इस्तेमाल तो किया गया इसके अलावा वराही. जारविस और बाकी तीन और एजेंसियों के सर्वे भी कराये जाने की ख़बर है। इसके आधार पर ही सीटों और उम्मीदवारों का चयन किया गया। मीडिया को इन सबसे दूर रखने के लिए पार्टी मुख्यालय से हटाकर दूर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में एक नया मीडिया रुम बना दिया गया। 

संघ का पूरा साथ मिल रहा 

लोकसभा के पहले जेपी नड्डा ने ये कहकर ग़लती कर दी थी कि बीजेपी को अब संघ की ज़रूरत नहीं लेकिन लोकसभा चुनाव के धक्के से बाद भाजपा ने तुरंत दत्तात्रेय होसबोले और बीएल संतोष के साथ राजनाथ सिंह और अमित शाह की बैठक करायी और संघ को कमान सौंप दी गयी, संघ के कहने पर ही सह कार्यवाह अतुल लिमये को महाराष्ट्र भाजपा की पूरी कमान दे दी गयी। अब अतुल लिमये ही संघ और भाजपा में समन्वय बनाये हुए हैं। भाजपा और संघ ने मिलकर राज्य में कुल मिलाकर 60 हजार सभायें करने की तैयारी की। इतना ही नहीं, इस बार चुनाव की तारीख़ भी छठ के बारह दिन बाद और बुधवार को रखी गयी ताकि मुंबई के लोग छुट्टी पर ना जाएँ। 

भाजपा का पूरा जोर इस बात पर है कि किसी तरह हर अपने वोटर को निकाला जाये। इसके लिए भाजपा के पन्ना प्रमुख से लेकर संघ के दो से तीन स्वयंसेवकों को काम दिया गया है। पर्दे के पीछे का सारा इंतजाम करने के लिए गुजरात के विधायकों और नेताओं को लगाया गया है।
धन बल और बाकी इंतजाम की बात हम नहीं करेंगे क्योंकि इसमें भाजपा के मुकाबले कोई नहीं है।

एकनाथ शिंदे की शिवसेना…

भाजपा के दूसरे सहयोगी एकनाथ शिंदे की तैयारी का काम गुजरात से ही आये गो बनाना की टीम के शालिभद्र और रॉबिन शर्मा की टीम कई दिनों कर रही है वहीं प्रतीक शर्मा जो कभी कांग्रेस का काम करते थे वो अब यहां सोशल मीडिया का काम संभाल रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस में ही काम कर चुके और मिलिंद देवड़ा के खास रहे डेनियल को सीएम की मीडिया टीम का प्रमुख बनाया गया है। ठाणे में एक मराठी कलाकार विजू माने की टीम विज्ञापन बनाने का काम कर रही है। वहीं पर वार रुम भी बनाया गया है। शिंदे मुक्त हस्त से खर्च कर रहे हैं इसलिए उनका प्रचार दिख रहा है लेकिन चुनावी प्रबंधन में अभी उनकी टीम की पकड़ बनना बाकी है। खुद शिंदे को ही सारा काम देखना पड़ रहा है। वही बीजेपी के साथ तालमेल और प्रचार दोनों कर रहे हैं। बाकी सारा काम उनके बेटे श्रीकांत शिंदे की टीम संभाल रही है। भाजापा ने राष्ट्रीय कवरेज और प्रचार का काम एक पीआर एंजेसी को दिया है। 

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एनसीपी अजित पवार…

महायुति के तीसरे घटक एनसीपी के चुनाव प्रबंधन का भार अजित पवार के बेटे पार्थ पवार ने कांग्रेस के कर्नाटक में रणनीतिकार रहे नरेश अरोड़ा को सौंप दिया है। अरोड़ा के कहने पर ही अजित पवार का पूरा फोकस महिला वोटर पर है और उनके कहने पर ही अजित पवार की पार्टी ने गुलाबी जैकेट पहनना शुरू कर दिया है। बाकी एक और मंत्री अदिति तटकरे की टीम अलग से है जो सिर्फ उनके लिए ही काम कर रही है। एक पीआर एजेंसी भी प्रचार में और अजित पवार के इंटरव्यू कराने में मदद कर रही है। लेकिन अजित पवार की पार्टी  का प्रचार के अलावा चुनावी प्रबंधन पूरी तरह से कैंडिडेट पर निर्भर नजर आ रहा है अजित पवार चाहकर भी करप्शन के मुद्दे से हट नहीं पा रहे हैं।

कांग्रेस के नेता मुंबई में जमे

हरियाणा चुनाव से सबक़ लेते हुए राहुल गांधी ने इस बार कांग्रेस नेताओं की एक पूरी फौज लगा दी है लेकिन उनमें से ज्यादातर मुंबई में जमे हैं और कांग्रेस का चुनावी प्रबंधन सबसे खराब चल रहा है। किसी को नहीं पता कि कौन फैसला लेगा और कौन सुधार करेगा। मुद्दों को लेकर भी राय यही कि जो राहुल गांधी की टीम करेगी वही फॉलो करना है। राहुल गांधी की तरफ़ से रणनीतिकार सुनील कोनूगोलू की टीम ही सर्वे और प्रचार का पूरा काम संभाल रही है लेकिन जमीनी पकड़ नहीं होने के कारण वो भी ग़लत फ़ैसले ले रहे हैं। यहाँ तक कि उनको लोकल अख़बार और यूटयूबर तक की पहुंच नहीं है।

हरियाणा चुनाव के इंतज़ार में कांग्रेस ने देर से काम करना शुरू किया। जब हार गये तो मोराल गिर गया और अब उसे उठाने में लगे हैं।
यूपी कांग्रेस के प्रभारी रहे अविनाश पांडे को मुंबई में जिम्मेदारी दी गयी है और उनके साथ ही सीनियर नेता अशोक गहलोत को लगाया गया है ताकि कुछ सीनियर दिखे। पहला हफ्ता तो बागियों को मनाने में चला गया और अब समय बहुत कम बचा है। इतना ही नहीं, पार्टी के सीनियर प्रवक्ता पवन खेड़ा, सुरेंद्र राजपूत और सुप्रिया श्रीनेत को मुंबई बिठाया गया है लेकिन पार्टी के ज्यादातर सीनियर नेता इस बार चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए दिल्ली से आये नेता मुंबई में ही बैठकर अपना काम पूरा कर रहे हैं। कांग्रेस में सबसे बड़ी कमी धन के इंतजाम और इलेक्शन मैनेजमेंट की है। एक के बाद एक सीनियर नेता को भेजा जा रहा है लेकिन उनके पास करने को बहुत कुछ नहीं है। कांग्रेस हवा के भरोसे ही जीत की उम्मीद कर रही है।
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शिवसेना ठाकरे गुट…

शिवसेना ठाकरे गुट ने भी सोशल मीडिया और प्रचार के लिए आदित्य ठाकरे के कहने पर एक पीआर एजेंसी की सेवा ली है। आदित्य की टीम के प्रचार संभालने वाले वरुण सरदेसाई खुद चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए अब दूसरों पर ज़िम्मेदारी दी गयी है। मीडिया का काम हर्षल प्रधान को दिया गया है तो बाक़ी सब इंतज़ाम की तैयारी अनिल परब और अनिल देसाई के जिम्मे है। ठाकरे की शिवसेना भी धनबल की कमी से जूझ रही है इसलिए प्रचार मूलत: लोकल नेताओं पर दिया गया है। उद्धव ठाकरे के जोर देने के बाद भी टिकट का वितरण टलता रहा इसलिए उनको कम समय मिल रहा है फिर भी उद्धव ठाकरे ने कम से कम 46 सभायें करने की प्लानिंग की है। उनके पास भी प्रचारक के नाम पर उद्धव और आदित्य ही प्रमुख चेहरा हैं। चुनाव प्रबंधन में ठाकरे की टीम भी कम पड़ती नजर आ रही है।

bjp or congress election management better in maharashtra polls - Satya Hindi

एनसीपी शरद पवार…

84 साल के हो चुके शरद पवार के बारे में बारामती के एक किसान का कहना है जिथे मह्तारा तिथे चांगभल। यानी जिधर ये बूढ़ा व्यक्ति खड़ा है हवा उसी तरफ की बह रही है। महाविकास आघाड़ी में सबसे कम 87 सीट लड़ रहे शरद पवार की हवा पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा  में जमकर बह रही है। पवार ने लोकसभा चुनाव में सबसे बेहतर स्ट्राईक रेट दिया था और चुनाव के तुरंत बाद ही विधानसभा की तैयारी भी शुरू कर दी। शऱद पवार ने खुद ही कैंडिडेट का इंटरव्यू लिया और सबसे बेहतर उम्मीदवार को उतारा है। यहां तक कि अपने भतीजे अजित पवार को बारामती में ही उलझाये रखना ये पवार का ही मास्टर स्ट्रोक है। पवार के यहाँ पर सुप्रिया सुले की लीडरशिप में उनकी ही पार्टी की सोशल मीडिया टीम और मीडिया टीम है। पार्टी के प्रदेश प्रमुख जयंत पाटिल ने भी अपनी एक टीम बनायी है। लोकल होने के कारण उनका पूरा जोर मराठी इंफ्लूँएंसरों को यूज करने और नेशनल को केवल शरद पवार या सुप्रिया का इंटरव्यू देने की रणनीति पर काम हो रहा है। शरद पवार ने धनबल और लोकल चुनाव प्रबंधन के लिए हर सीट पर दो अपने मित्र रखे हैं जो पूरी मदद कर रहे हैं। इस तरह का पवार का प्रचार पूरी तरह लोकलाइज्ड हो गया है फिर भी असरदार है।

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संदीप सोनवलकर
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